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ठाणं (स्थान)
दो असोयाओ, दो विगयसोगाओ, दो विजयाओ, दो वैजयंतीओ, दो जयंतीओ, दो अपराजियाओ, दो चक्कराओ, दो खग्गपुराओ, दो अवज्झाओं, दो अउज्झाओ। ३४२. दो भद्द सालवणा, दो णंदणवणा, दो सोमणसवणा, दो पंडगवणाई | ३४३. दों पंडुकंबल सिलाओ, दो अतिपंडुकंबल सिलाओ, दो रत्तकंबल - सिलाओ, दो अइरत्तकंबलसिलाओ ।
३४४. दो मंदरा, दो मंदरचूलिआओ। ३४५. धायइडस्स णं दीवस्स वेदिया
।
दो गाउयाई उड्डमुच्चत्तेणं पण्णत्ता ३४६. कालोदस्स णं समुद्दस्स वेइया दो गाउयाई उड्डू उच्चतेणं पण्णत्ता ।
पुक्खरवर-पदं
३४७. पुक्खरवर दीवडपुर स्थिमद्धे णं मंदरस पव्वयस्स उत्तर- दाहिणे णं दो वासा पण्णत्ता बहुसम - तुल्ला जाव, तं जहाभ रहे चेव, एरवए चेव ।
३४८. तहेव जाव
पण्णत्ताओ
देवकुरा चेव, उत्तरकुरा चेव । तत्थ णं दो महतिमहालया महद्दुमा पण्णत्ता, त जहाकूडसामली चेव, पउमरुक्खे चेव । देवा—गरुले चेव वेणुदेवे, पउमे चेव जाव छव्विहंपि कालं पच्चणुभवमाणाविहरति ।
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द्वे भद्रशालवने, द्वे नंदनवने, द्वे सौमन- ३४२. भद्रशालवन, नंदनवन, सौमनसवन और सवने, द्वे पण्डकवने । पंडकवन- ये वन दो-दो हैं ।
द्वे पाण्डुकम्बलशिले, द्वे अतिपाण्डुकम्बलशिले, द्वे रक्तकम्बलशिले, द्वे अतिरक्त कम्बलशिले ।
३४३. पांडुकंबलशिला, अतिपांडुकंबल शिला, रक्तकंबलशिला, अतिरक्त कंबल शिलापंडकवन की शिलाएं दो-दो हैं ।
द्वौ मन्दरौ द्वे मन्दरचूलिके ।
३४४. मन्दर और मन्दरचूलिका दो-दो हैं । धातकीषण्डस्य द्वीपस्य वेदिका द्वे ३४५. घातकीषंड द्वीप की वेदिका दो कोस ऊंची गव्यूती ऊर्ध्वमुच्चत्वेन प्रज्ञप्ता । कालोदस्य समुद्रस्य वेदिका द्वे गव्यूती ऊर्ध्वं उच्चत्वेन प्रज्ञप्ता ।
पुष्करवर-पदम्
पुष्करवरद्वीपार्धपौरस्त्यार्थे मन्दरस्य पर्वतस्य उत्तर दक्षिणे द्वे वर्षे प्रज्ञप्तेबहुसमतुल्ये यावत्, तद्यथाभरतं चैव, ऐरवतं चैव ।
दो कुराओ तथैव यावत् द्वौ कुरू प्रज्ञप्ती - देवकुरुश्चैव, उत्तरकुरुश्चैव । तत्र द्वौ महातिमहान्तौ महाद्रुमौ प्रज्ञप्तौ तद्यथाकूटशाल्मली चैव पद्मरुक्षश्चैव । देवौ — गरुडश्चैव वेणुदेवः, पद्मश्चैव यावत् षड्विधमपि कालं प्रत्यनुभवत विहरन्ति ।
स्थान २ : सूत्र ३४२-३४८
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है |
३४६. कालोद समुद्र की वेदिका दो कोस ऊंची
है ।
पुष्करवर - पद
३४७. अर्द्ध पुष्करवर द्वीप के पूर्वार्द्ध में मन्दर पर्वत के उत्तर-दक्षिण में दो क्षेत्र हैंभरत - दक्षिण में, ऐरवत -उत्तर में । वे दोनों क्षेत्र प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं यावत् वे लम्बाई, चौड़ाई, संस्थान और परिधि में एक-दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते ।
३४८. इसी प्रकार जम्बूद्वीप द्वीप के प्रकरण में
आए हुए सूत्र २।२६६-२७१ तक का वर्णन यहां वक्तव्य है यावत् दो कुरु हैं -वहां दो विशाल महाद्रुम हैंकूटशाल्मली और पद्म ।
देव दो हैंकूटशाल्मली पर गरुड़ जाति का वेणुदेव, पद्म पर पद्म देव ।
छः प्रकार के काल का अनुभव करते हैं।
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