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________________ ठाणं (स्थान) ६२ स्थान २ : सूत्र ३३६-३३६ ३३६. दो मालवंता, दो चित्तकूडा, द्वौ माल्यवन्तौ, द्वे चित्रकूटे, द्वे पक्ष्म- ३३६. माल्यवान्, चित्रकूट, पक्ष्मकूट, नलिनकूट, दो पम्हकूडा, दो गलिणकूडा, कूटे, द्वे नलिनकूटे, द्वौ एकशैलौ, द्वे एकशैल, त्रिकूट, वैश्रमणकूट, अंजन, दो एगसेला, दो तिकडा, त्रिकूटे, द्वे वैश्रमणकूटे, द्वौ अञ्जनौ, द्वौ मातांजन, सौमनस, विद्युत्प्रभ, अंकावती, दो वेसमणकडा, दो अंजणा, माताञ्जनौ, द्वौ सोमनसौ, द्वौ विद्युत्- पक्ष्मावती, आसीविष, सुखावह, चन्द्र दो मातंजणा, दो सोमणसा, प्रभौ, द्वे अंकावत्यौ, द्वे पक्ष्मावत्यौ, द्वौ । पर्वत, सूर्य पर्वत, नाग पर्वत, देव पर्वत, दो विज्जुप्पभा, दो अंकावती, आसीविषौ, द्वौ सुखावहौ, द्वौ चन्द्र- गंधमादन, इषुकार पर्वत, दो पम्हावती, दो आसीविसा, पर्वतौ, द्वौ सूर्यपर्वतौ, द्वौ नागपर्वतो, क्षुल्लहिमवत्कूट, वैश्रमणकूट, दो सुहावहा, दो चंदपव्वता, द्वौ देवपर्वतौ, दो गन्धमादनौ, द्वौ महाहिमवत्कूट, वैडूर्यकूट, निषघकूट, दो सूरपव्वता, दो णागपव्वता, इषुकारपर्वतो, द्वे क्षुल्लहिमवत्कूटे, रुचककूट, नीलवत्कूट, उपदर्शनकूट, दो देवपव्वता, दो गंधमायणा, द्वे वैश्रमणकूटे, द्वे महाहिमवत्कूटे, द्वे रुक्मीकूट, मणिकांचनकूट, शिखरीकूट, दो उसुगारपव्वया, दो चुल्ल- वैडूर्यकूटे, द्वे निषधकूटे, द्वे रुचककूटे, तिगिछिकूट-ये सभी कूट दो-दो हैं। हिमवंतकूडा, दो वेसमणकूडा, द्वे नीलवत्कूटे, द्वे उपदर्शनकूटे, द्वे दो महाहिमवंतकूडा, दो वेरु- रुक्मिकूटे, द्वे मणिकाञ्चनकूटे, द्वे लियकूडा, दो णिसढकूडा, शिखरिकूटे, द्वे तिगिछिकूटे। दो रुयगकूला, दो णीलवंतकूडा, दो उवदंसणकूडा, दो रुप्पिकूडा, दो मणिकंचणकूडा, दो सिहरि कूडा, दो तिगिछिकडा। ३३७. दो पउमद्दहा, दो पउमद्दह- द्वौ पद्मद्र हौ, द्वे पद्मद्रहवासिन्यौ श्रियौ ३३७. पद्मद्रह, पद्मद्रहवासिनी श्री देवी, वासिणीओ सिरीओ देवीओ, देव्यौ, __ महापद्मद्रह, महापद्मद्रहवासिनी ह्री दो महापउमद्दहा, दो महापउम- द्वौ महापद्मद्र हौ, द्वे महापद्मद्रहवासि- देवी, तिगिछिद्रह, तिगिछिद्रहवासिनी दहवासिणीओ हिरीओ देवीओ, न्यौ ह्रियो देव्यौ, धृति देवी, केशरीद्रह, केशरीद्रहवासिनी एवं जाव दो पुंडरीयद्दहा, एवं यावत् द्वौ पौण्डरीकद्रहौ, द्वे कीर्ति देवी, महापौंडरीकद्रह, महापौंडदो पोंडरीयद्दहवासिणीओ पौण्डरीकद्रहवासिन्यौ लक्ष्म्यौ देव्यौ। रीकद्रहवासिनी बुद्धि देवी, पौंडरीकद्रह, लच्छीओ देवीओ। पौंडरीकद्रहवासिनी लक्ष्मी देवी-ये सभी द्रह और द्रहवासिनी देवियां दो दो हैं। ३३८. दो गंगप्पवायहहा जाव दो रत्ता- द्वौ गंगाप्रपातद्रहौ यावत् द्वौ रक्तवती- ३३८. गंगा, सिन्धु, रोहित, रोहितांश, हरित, वती पवातदहा। प्रपातद्रहौ। हरिकान्त, सीता, सीतोदा, नरकान्त, नारीकान्त, सुवर्णकूल, रुप्यकूल,रक्त और रक्तवती-ये सभी प्रपातद्रह दो-दो हैं। ३३९. दो रोहियाओ जाव दो रुप्प- द्वे रोहिते यावत् द्वे रुप्यकले, द्वे ३३६. रोहिता, हरिकान्ता, हरित, सीतोदा, कुलाओ, दो गाहवतीओ, ग्राहवत्यौ, द्वे द्रहवत्यौ, द्वे पङ्कवत्यौ, द्वे सीता, नारीकान्ता, नरकान्ता, दो दहवतीओ, दो पंकवतीओ, तप्तजले, द्वे मत्तजले, द्वे उन्मत्तजले, रुप्यकूला, ग्राहवती, द्रहवती, पंकवती, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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