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ठाणं (स्थान)
स्थान २ : सूत्र ३३१-३३५
३३१. धायइसंडे दोवे पच्चत्थिमद्धे णं धातकीषण्डे द्वीपे पाश्चात्याधै मन्दरस्य ३३१. धातकीषंडद्वीप के पश्चिमार्द्ध में मन्दर
मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे पर्वतस्य उत्तर-दक्षिणे द्वे वर्षे प्रज्ञप्ते- पर्वत के उत्तर-दक्षिण में दो क्षेत्र हैंणं दो वासा पण्णत्ता-बहुसम- बहुसमतुल्ये यावत्, तद्यथा
भरत-दक्षिण में, ऐरवत –उत्तर में। तुल्ला जाव, तं जहा- भरतं चैव, ऐरवतं चैव ।
वे दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा भरहे चेव, एरवए चेव ।
सदृश हैं यावत् वे लम्बाई, चौड़ाई, संस्थान और परिधि में एक-दूसरे का
अतिक्रमण नहीं करते। ३३२. एवं—जहा जंबुद्दीवे तहा एत्यवि एवम्—यथा जम्बूद्वीपे तथा अत्रापि ३३२. इसी प्रकार जम्बूद्वीप द्वीप के प्रकरण में
भाणियव्वं जाव छव्विहंपि कालं भणितव्यं यावत् षड्विधमपि कालं आये हुए सूत्र २।२६९-३२० तक का पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं प्रत्युनुभवन्तो विहरन्ति, तद्यथा- वर्णन यहां वक्तव्य है। विशेष इतना ही जहा—भ रहे चेव, एरवए चेव। भरते चैव, ऐरवते चैव।
है कि यहां वृक्ष दो हैं-कूटशाल्मली, और णवरंकूडसामली चेव महा- नवरं—कूटशाल्मली चैव महाधातकी- महाधातकी। देव दो हैं-कूटशाल्मली धायईरुक्खे चेव। देवा—गरुले रुक्षश्चैव । देवौ गरुडश्चैव वेणु देवः पर गरुडकुमार जाति का वेणुदेव, चेव वेणुदेवे पियदसणे चेव। प्रियदर्शनश्चैव ।
महाधातकी पर प्रियदर्शन देव । ३३३. धायइसंडे णं दीवे. धातकीषण्डे द्वीपे..
३३३. धातकीपंड द्वीप मेंदो भरहाई, दो एरवयाई, द्वे भरते, द्वे ऐरवते, द्वे हैमवते, भरत, ऐरवत,हैमवत, हैरण्यवत, हरिवर्ष, दो हेमवयाई, दो हेरण्णवयाई, द्वे हैरण्यवते, द्वे हरिवर्षे, द्वे रम्यकवर्ष, पूर्वविदेह, अपरविदेह, देवकुरु, दो हरिवासाई, दो रम्मगदासाई, रम्यकवर्षे, द्वौ पूर्वविदेही, द्वौ अपर- देवकुरुमहाद्रुम, देवकुरुमहाद्रुमवासी देव, दो पव्वविदेहाई, दो अवर- विदेही, द्वौ देवकूरू, द्वौ देवकूरुमहाद्रमौ उत्तरकुरु, उत्तरकुरुमहाम, उत्तरकुरुविदेहाई, दो देवकुराओ, द्वौ देवकुरुमहाद्रुमवासिनौ देवौ, द्वौ महाद्रुमवासी देव-दो-दो हैं। दो देवकुरुमहदुमा, दो देवकुरुम- उत्तरकुरू, द्वौ उत्तरकुरुमहाद्रुमौ, द्वौ हदुमवासी देवा, दो उत्तरकुराओ, उत्तरकुरुमहाद्रुमवासिनी देवौ। दो उत्तरकुरुमहद्यमा, दो उत्तर
कुरुमहद्दुमवासी देवा। ३३४. दो चुल्लहिमवंता, दो महाहिम- द्वौ क्षुल्लहिमवन्तौ, द्वौ महाहिमवन्तौ, ३३४. क्षुल्लहिमवान्, महाहिमवान्, निषध,
वंता, दो णिसढा, दो णीलवंता, द्वौ निषधौ, द्वौ नीलवन्तौ, द्वौ रुक्मिणी, नीलवान्, रुक्मी और शिखरी---ये दो रुप्पी, दो सिहरी। द्वौ शिखरिणौ।
वर्षधर पर्वत दो-दो हैं। ३३५. दो सद्दावाती, दो सद्दावातिवासी द्वौ शब्दापातिनौ, द्वौ शब्दापाति- ३३५. शब्दापाती, शब्दापातिवासी स्वाति देव,
साती देवा, दो वियडावाती, वासिनौ स्वातिदैवौ, द्वौ विकटापातिनौ, विकटापाती, विकटापातिवासी प्रभास दो वियडावातिवासी पभासा द्वौ विकटापातिवासिनौ प्रभासौ दैवौ, देव, गंधापाती, गंधापातिवासी अरुण देवा, दो गंधावासी, दो गंधा- द्वौ गन्धापातिनौ, द्वौ गन्धापाति- देव, माल्यवत्पर्याय, माल्यवत्पर्यायवासी वातिवासी अरुणा देवा, दो माल- वासिनौ अरुणौ देवौ, द्वौ माल्यवत्- पद्म देव-ये वृत्तवताढ्य पर्वत तथा वंतपरियागा, दो मालवंत- पर्यायौ, द्वौ माल्यावत्पर्यायवासिनौ उन पर रहने वाले देव दो-दो हैं । परियागवासी पउमा देवा। पद्मौ देवौ ।
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