________________
ठाणं (स्थान)
८१
स्थान २: सूत्र ३२५
दो आहुणिया, दो पाहुणिया दो द्वौ प्राहुतौ, द्वौ कनौ, द्वौ कनकौ, द्वौ कणा, दोकणगा, दो कणकणगा, कनकनकौ, द्वौ कनकवितानकौ, द्वौ । दो कणगविताणगा, दो कणग- कनकसंतानको, द्वौ सोमौ, द्वौ सहितो, संताणगा, दो सोमा, दो सहिया, द्वौ आश्वासनौ, द्वौ कार्योपगौ, द्वौ दो आसासणा, दो कज्जोवगा, दो कर्बटकौ, द्वौ अजकरको, द्वौ दुन्दुभको, । कब्बडगा दो अयकरगा, दो द्वौ शङ्खौ द्वौ शङ्खवणौं, द्वौ शङ्खदुंदुभगा, दो संखा, दो संखवण्णा, वर्णाभौ, द्वौ कसौ, द्वौ कंसवौँ, द्वौ दो संखवण्णाभा, दो कंसा, दो कंसवर्णाभौ, द्वौ रुक्मिणौ, द्वौ रुक्माकंसवण्णा, दो कंसवण्णाभा, दो भासौ, द्वौ नीलो, द्वौ नीलाभासौ, द्वौ रुप्पी, दो रुप्पाभासा, दो णीला, भस्मानौ, द्वौ भस्माराशी, द्वौ तिलौ, द्वौ । दो, णीलोभासा, दो भासा, दो तिलपुष्पवणौं, द्वौ दकी, द्वौ दकपञ्चभासरासी दो तिला, दो तिलपुप्फ- वणों, द्वौ काकी, द्वौ कर्कन्धौ, द्वौ । वण्णा, दो दगा, दो दगपंचवण्णा, इन्द्राग्नी, द्वौ धूमकेतू, द्वौ हरी, द्वौ । दो काका, दो कक्कंधा, दो पिङ्गलौ, द्वौ बुद्धौ, द्वौ शुक्रौ, द्वौ इंदग्गी, दो धूमकेऊ, दो हरी, दो बृहस्पती, द्वौ राहू, द्वौ अगस्ती, द्वौ पिंगला, दो बुद्धा, दो सुक्का, दो मानवको, द्वौ काशौ, द्वौ स्पशौं,द्वौ धुरी, बहस्सती, दो राहू, दो अगत्थी, द्वौ प्रमुखौ, द्वौ विकटौ, द्वौ विसन्धी, दोमाणवगा, दो कासा, दो फासा, द्वौ णियल्लौ, द्वौ 'पइल्लौ', दोधुरा, दो पमुहा, दो वियडा, दो द्वौ 'जडियाइलगौ', द्वौ अरुणौ, द्वौ विसंधी, दो णियल्ला, दो पइल्ला, अग्निलौ, द्वौ कालौ, द्वौ महाकालको, दो जडियाइलगा, दो अरुणा, द्वौ स्वस्तिकौ, द्वौ सौवस्तिकौ, द्वौ दो अग्गिल्ला, दो काला, वर्द्धमानको, द्वौ प्रलम्बो, द्वौ नित्यादो महाकालगा, दो सोत्थिया, लोको, द्वौ नित्योद्योती, द्वौ स्वयंप्रभी, दो सोवत्थिया,दो वद्धमाणगा, दो द्वौ अवभासौ, द्वौ श्रेयस्करौ, द्वौ क्षेमपलंबा, दो णिच्चालोगा, दो करौ, द्वौ आभंकरो, द्वौ प्रभंकरो, णिच्चुज्जोता, दो सयंपभा, दो द्वौ अपराजितौ द्वौ अरजसौ,
ओभासा, दो सेयंकरा दो खेमंकरा, द्वौ अशोको, द्वौ विगतशोको, दो आभंकरा, दो पभंकरा, दो द्वौ विमली, द्वौ विततौ, द्वौ अपराजिता, दो अरया, दो असोगा, वित्रस्तौ, द्वौ विशालौ, द्वौ शालौ, द्वौ दो विगतसोगा, दो विमला, दो सुव्रतो, द्वौ अनिवृत्ती, द्वौ एकजटिनो, वितता, दो वितत्था, दो विसाला, द्वौ द्विजटिनौ, द्वौ करकरिको, द्वौ दो साला, दो सुव्वता, दो राजार्गलौ, द्वौ पुष्पकेतू, द्वौ भावकेतू अणियट्टी, दो एगजडी, दोदुजडी, (चारं अचरन् वा चरन्ति वा दो करकरिगा, दो रायग्गला, चरिष्यन्ति वा ? )।
दो शनिश्चर, दो आहुत, दो प्राहुत, दो कन, दो कनक, दो कनकनक, दो कनकवितानक, दो कनकसंतानक, दो सोम, दो सहित, दो आश्वासन, दो कार्योपग, दो कर्बटक, दो अजकरक, दो दुन्दुभक, दो शंख, दो शंखवर्ण, दो शंखवर्णाभ, दो कंस, दो कंसवर्ण, दो कंसवर्णाभ, दो रुक्मी, दो रुक्माभास, दो नील, दो नीलाभास, दो भस्म, दो भस्मराशि, दो तिल, दो तिलपुष्यवर्ण, दो दक, दा दकपञ्चवर्ण, दो काक, दो कर्कन्ध, दो इन्द्राग्नि, दो धूमकेतु, दो हरि, दो पिंगल, दो बुद्ध, दो शुक्र, दो बृहस्पति, दो राहु, दो अगस्ति, दो मानवक, दो काश, दो स्पर्श, दो धुर, दो प्रमुख, दो विकट, दो विसन्धि, दो णियल्ल, दो पइल्ल, दो जडियाइलग, दो अरुण, दो अग्निल, दो काल, दो महाकालक, दोस्वस्तिक, दो सौवस्तिक, दो वर्द्धमानक, दो प्रलंब, दो नित्यालोक, दो नित्योद्योत, दो स्वयंप्रभ, दो अवभास, दो श्रेयस्कर, दो क्षेमंकर, दो आभंकर, दो प्रभंकर दो अपराजित, दो अरजस्, दो अशोक, दो विगतशोक, दो विमल, दो वितत, दो वित्रस्त, दो विशाल, दो शाल, दो सुव्रत, दो अनिवृत्ति, दो एकजटिन्, दो जटिन्, दोकरकरिक, दो दोराजार्गल, दो पुष्यकेतु, दो भावकेतु। इन ८८ महाग्रहो" न चार किया था, करते हैं और करेंगे।
www.jainelibrary.org
For Private & Personal Use Only
Jain Education International