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________________ ठाणं (स्थान) कालानुभव-पदं ३१६. जंबुद्दीवे दीवे दोसु कुरासु मणुया सया सुसमसुसममुत्तमं इड्डि पत्ता विहरति, पच्चणुभवमाणा तं जहा देवकुराए चेव, उत्तरकुराए चेव । ३१७. जंबुद्दीवे दीवे दोसु वासेसु मणुया सया सुसममुत्तमं इड्डि पत्ता पच्चणुभवमाणा विहरति तं जहा— हरिवासे चैव, रम्मगवासे चेव । ३१८. जंबुद्दीवे दीवे दोसु वासेसु मणुया सया सुसम सममुत्तममिड पत्ता पच्चणुभवमाणा विहरति तं जहा – हेमवए चेव, हेरण्णवए च । ३१६. जंबुद्दीवे दीवे दोसु खेत्ते मणुया सया दूसमसममुत्तममिड पत्ता पच्चणुभवमाणा विहरति, तं जहा - पुब्वविदेहे चेव, अवरविदेहे चेव । ३२०. जंबुद्दीवे दीवे दोसु वासेसु मणुया छव्विहंपि कालं पच्चणुभवमाणा विहरति, तद्यथा— भरहे चेव, एरवते चैव । चंद-सूर-पदं ३२१. जंबुद्दी ____ दो चंदा पभासिसु वा पभासंति वा पभासिस्संति वा । ८७ Jain Education International कालानुभव-पदम् कालानुभव-पद जम्बूद्वीपे द्वीपे द्वयोः कुर्वो मनुजाः सदा ३१६. जम्बूद्वीप द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण सुषमसुषमोत्तमां रुद्धि प्राप्ताः और उत्तर के देवकुरु और उत्तरकुरु में प्रत्यनुभवन्तो विहरन्ति तद्यथा— रहने वाले मनुष्य सदा सुषम- सुषमा नाम देवकुरौ चैव, उत्तरकुरी चैव । के प्रथम आरे की उत्तम ऋद्धि का अनुभव करते हैं । जम्बूद्वीपे द्वीपे द्वयोः वर्षयोः मनुजाः ३१७. जम्बूद्वीप द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण सदा सुषमोत्तमां ऋद्धि प्राप्ताः प्रत्यनुभवन्तो विहरन्ति तद्यथा— हरिवर्षे चैव, रम्यकवर्षे चैव । हरि क्षेत्र तथा उत्तर में रम्यक् क्षेत्र में रहने वाले मनुष्य सदा सुषमा नाम के दूसरे आरे की उत्तम ऋद्धि का अनुभव करते हैं । चन्द्र-सूर-पदम् जम्बूद्वीपे द्वौ चन्द्रौ प्राभासिषातां वा प्रभासेते वा प्रभासिष्येते वा । ३२२ दो सूरिआ तवसु वा तवंति वा द्वौ सूयौं अताप्तां वा तपतो वा ३२२. जम्बूद्वीप द्वीप में दो सूर्य तपे थे, तपते हैं तविस्संति वा । तपिष्यतो वा । और तपेंगे। स्थान २ : सूत्र ३१६-३२२ जम्बूद्वीपे द्वीपे द्वयोः वर्षयोः मनुजाः ३१८. जम्बूद्वीप द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण में हैमवत क्षेत्र में तथा उत्तर में हैरण्यवत क्षेत्र में रहने वाले मनुष्य सदा 'सुषमदुः षमा' नाम के तीसरे आरे की उत्तम ऋद्धि का अनुभव करते हैं । ३१६. जम्बूद्वीप द्वीप में मन्दर पर्वत के पूर्व में सदा सुषमदुःषमोत्तमां ऋद्धि प्राप्ताः प्रत्यनुभवन्तो विहरन्ति तद्यथा— हैमवते चैव, हैरण्यवते चैव । पूर्व विदेह तथा पश्चिम में अपर- विदेह क्षेत्र में रहने वाले मनुष्य सदा 'दुःषम- सुषमा' नाम के चौथे आरे की उत्तम ऋद्धि का अनुभव करते हैं । ३२०. जम्बूद्वीप द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण भरत में और उत्तर- ऐरवत क्षेत्र में रहने वाले मनुष्य छह प्रकार के काल"" का अनुभव करते हैं । जम्बूद्वीपे द्वीपे द्वयोः क्षेत्रयोः मनुजाः सदा दुःषमसुषमोत्तमां ऋद्धि प्राप्ताः प्रत्यनुभवन्तो विहरन्ति तद्यथा— पूर्वविदेहे चैव, अपरविदेहे चैव । जम्बूद्वीपे द्वीपे द्वयोः वर्षयोः मनुजाः षड्विधमपि कालं प्रत्यनुभवन्तो विहरन्ति तद्यथा भरते चैव, ऐरवते चैव । For Private & Personal Use Only चन्द्र सूर-पद ३२१. जम्बूद्वीप द्वीप में दो चन्द्रमाओं ने प्रकाश किया था, करते हैं और करेंगे । www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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