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________________ ठाणं (स्थान) स्थान २ : सूत्र २६२-२६७ २९२. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य उत्तरे २६२. जम्बूद्वीप द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर उत्तरे णं णीलवंताओ वासहर- नीलवतः वर्षधरपर्वतात् केशरीद्रहात् में नीलवान् वर्षधर पर्वत के केसरीद्रह से पव्वताओ केसरिद्दहाओ दहाओ द्रहात् द्वे महानद्यौ प्रवहतः तद्यथा- सीता और नारीकान्ता नाम की दो महादो महाणईओ पवहंति, तं जहा- शीता चैव, नारीकान्ता चैव। नदियां प्रवाहित होती हैं। सीता चेव, णारिकता चेव। २९३. एवं रुप्पीओ वासहरपवताओ एवम्-रुक्मिणः वर्षधरपर्वतात् २६३. जम्बूद्वीप द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर में महापोंडरीयद्दहाओ दहाओ दो महापुण्डरीकद्रहात् द्रहात् द्वे महानद्यौ रुक्मी वर्षधर पर्वत के महापौंडरीक द्रह महाणईओ पवहंति, तं जहा- प्रवहतः, तद्यथा से नरकान्ता और रूप्यकूला नाम की दो णरकंता चेव, रुप्पकला चेव। नरकान्ता चैव, रूप्यकूला चैव । महानदियां प्रवाहित होती हैं। पवाय-दह-पदं प्रपात-द्रह-पदम् प्रपात-द्रह-पद २६४. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य दक्षिणे २६४. जम्बूद्वीप द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण में दाहिणणं भरहे वासे दो पवायदहा भरते वर्षे द्वौ प्रपातद्रहौ प्रज्ञप्तौ- भरत क्षेत्र में दो प्रपात द्रह हैंपण्णत्ता—बहुसमतुल्ला, तं जहा— बहुसमतुल्यौ, तद्यथा गंगाप्रपातद्रह, सिन्धुप्रपातद्रह । गंगप्पवायद्दहे चेव, गङ्गाप्रपातद्रहश्चैव, वे दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सिंधुप्पवायद्दहे चेव। सिन्धुप्रपातद्रहश्चैव। सदृश हैं, यावत् वे लम्बाई, चौड़ाई, गहराई,संस्थान और परिधि में एक-दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते। २६५. एवं–हेमवए वासे दो पवायदहा एवम्-हैमवते वर्षे द्वौ प्रपातद्रहौ २६५. जम्बूद्वीप द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण में पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला, तं प्रज्ञप्तौ-बहुसमतुल्यौ, तद्यथा- हैमवत क्षेत्र में दो प्रपात द्रह हैंजहा–रोहियप्पायहहे चेव, रोहितप्रपातद्रहश्चैव, रोहितप्रपातद्रह, रोहितांशप्रपातद्रह। रोहियंसप्पवायदहे चेव। रोहितांशप्रपातद्रहश्चैव । वे दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं, यावत् वे लम्बाई, चौड़ाई, संस्थान और परिधि में एक-दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते। २६६. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य दक्षिणे २६६. जम्बूद्वीप द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण दाहिणे णं हरिवासे वासे दो हरिवर्षे वर्षे द्वौ प्रपातद्रहौ प्रज्ञप्तौ- में 'हरि' क्षेत्र में दो प्रपातद्रह हैंपवायदहा पण्णत्ता—बहुसमतुल्ला, बहुसमतुल्यौ, तद्यथा हरित्प्रपातद्रह, हरिकान्तप्रपातद्रह । तं जहा—हरिपवायदहे चेव, हरित्प्रपातद्रहश्चैव, वे दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा हरिकंतप्पवायदहे चेव। हरिकान्तप्रपातद्रहश्चैव। सदृश हैं, यावत् वे लम्बाई, चौड़ाई, संस्थान और परिधि में एक-दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते। २६७. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य उत्तर- २६७. जम्बूद्वीप द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर.. उत्तर-दाहिणे णं महाविदेहे दक्षिणे महाविदेहे वर्षे द्वौ प्रपातद्रही दक्षिण में महाविदेह क्षेत्र में दो प्रपात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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