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ठाणं (स्थान)
स्थान २: सूत्र २८८-२६१
तत्थ णं दो देवयाओ महिड्डियाओ तत्र द्वे देवते महर्धिके यावत् । चौड़ाई, गहराई संस्थान और परिधि में जाव पलिओवमद्वितीयाओ परि- पल्योपमस्थितिके परिवसतः तद्यथा- एक-दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते। वसंति तं जहाश्रीश्चैव, लक्ष्मीश्चैव।
वहां महान् ऋद्धि वाली यावत् एक सिरी चेव, लच्छी चेव।
पल्योपम की स्थिति वाली दो देवियां रहती हैं
पद्मद्रह में श्री, पौंडरीकद्रह में लक्ष्मी। २८८. एवं—महाहिमवंत-रुप्पीसु एवम्-महाहिमवत् रुक्मिणोः वर्षधर- २८८, जम्बूद्वीप द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण वासहरपव्वएसु दो महदहा पर्वतयोः द्वौ महाद्रहौ प्रज्ञप्तौ
में महाहिमवान् वर्षधर पर्वत पर महापण्णत्ता—बहुसमतुल्ला जाव, तं बहुसमतुल्यौ यावत्, तद्यथा
पद्मद्रह और उत्तर में रुक्मी वर्षधर पर्वत पर जहा—महापउमद्दहे चेव, महापद्मद्रहश्चैव,
महापौंडरीकद्रह नाम के दो महान् द्रह हैं। महापोंडरीयद्दहे चेव। महापुण्डरीकद्रहश्चैव ।
वे दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा तत्थ णं दो देवताओ हिरिच्चेव तत्र द्वे देवते ह्रीश्चैव, बुद्धिश्चैव । सदृश हैं, यावत् वे लम्बाई, चौड़ाई, बुद्धिच्चेव।
गहराई, संस्थान और परिधि में एकदूसरे का अतिक्रमण नहीं करते। वहां दो देवियां रहती हैं--महापद्मद्रह में ह्री और
महापौंडरीक द्रह में बुद्धि। २८६. एवं—णिसढ-णीलवंतेसु तिगि- एवम् –निषध-नीलवतोः तिगिञ्छिद्रह- २८६. जम्बूद्वीप द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण छिद्दहे चेव, केसरिदहे चेव। श्चैव केसरीद्रहश्चैव।।
में निषध वर्षधर पर्वत पर तिगिछिद्रह तत्थ णं दो देवताओ धिती चेव, तत्र द्वे देवते धृतिश्चैव, कीर्तिश्चैव ।
और उत्तर में नीलवान् वर्षधर पर्वत पर कित्ती चेव।
केसरीद्रह नाम के दो महान् द्रह हैं यावत् वहां एक पल्योपम की स्थिति वाली दो देवियां रहती हैंतिगिछि द्रह में धृति, केसरी द्रह में कीति ।
महाणदी-पदं महानदी-पदम्
महानदी-पद २६०. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य दक्षिणे २६०. जम्बूद्वीप द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण में
दाहिणे णं महाहिमवंताओ वासहर- महाहिमवतः वर्षधरपर्वतात् महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के महापद्मद्रह पव्वयाओ महापउमद्दहाओ दहाओ महापद्मद्रहात् द्रहात् द्वे महानद्यौ । से रोहित। और हरिकान्ता नाम की दो दो महाणईओ पवहंति, तं जहा.- प्रवहतः, तद्यथा
महानदियां प्रवाहित होती हैं। रोहियच्चेव, हरिकंतच्चेव। रोहिता चैव, हरिकान्ता चैव । २६१. एवं—णिसढाओ वासहरपव्वताओ एवम्-निषधात् वर्षधरपर्वतात् २६१. जम्बूद्वीप द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण
तिगिछिद्दहाओ दहाओ दो तिगिञ्छिद्र हात् द्रहात् द्वे महानद्यौ में निषध वर्षधर पर्वत के तिगिछि द्रह से महाणईओ पवहंति, तं जहा- प्रवहतः, तद्यथा
हरित् और सीतोदा नाम की दो महाहरिच्चेव, सीतोदच्चेव। हरिच्चैव, शीतोदा चैव।
नदियां प्रवाहित होती हैं।
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