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ठाणं (स्थान)
२८४. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं णीलवंते वासहरपव्वए दो कडा पण्णत्ता बहुमतुल्ला जाव, तं जहा—णीलवंतकडे चैव, वदंसणकडे चैव ।
२८५. एवं मि वासहरपव्वए दो कूडा पण्णत्ता बहुसमतुल्ला जाव, तं जहा रुप्पिकडे चेव, मणिकंचणकूडे चेव ।
२८६. एवं सिहरमि वासहरपन्वते दो कूडा पण्णत्ता - बहुसमतुल्ला जाव, तं जहा — सिहरिकूडे चेव, तिगछिकूडे चेव ।
महादह-पदं
२८७. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर- दाहिणे णं चुल्ल हिमवंत - सिहरीसु वासहरपव्वसु दो महद्दहा पण्णत्ता बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अण्णमण्णं णातिवट्टेति आयाम विक्खंभउव्वेह संठाण-परिणाहेणं, तं जहा - पउमद्दहे चेव, पोंडरीयद्द हे चैव ।
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जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य उत्तरे नीलवति वर्षधरपर्वते द्वे कूटे प्रज्ञप्तेबहुसमतुल्ये यावत्, तद्यथा— नीलवत्कूटञ्चैव, उपदर्शन कूटञ्चैव ।
एवम् रुक्मिणि वर्षधरपर्वते द्वे कूटे प्रज्ञप्ते - बहुसमतुल्ये यावत्, तद्यथारुक्मिकूटञ्चैव, मणिकाञ्चनकूटञ्चैव ।
एवम् — शिखरिणि वर्षधरपर्वते द्वे कूटे प्रज्ञप्ते - बहुसमतुल्ये यावत्, तद्यथाशिखिरिकूटञ्चैव, तिगिञ्छिकूटञ्चैव ।
महाद्रह-पदम् जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य उत्तरदक्षिणे क्षुल्लहिमवच्छिखरिणोः वर्षधरपर्वतयोः द्वौ महाद्रहौ प्रज्ञप्ती - बहुसमतुल्यौ अविशेषौ अनानात्वौ अन्योन्यं नातिवर्तते आयामविष्कम्भोद्वेध संस्थान - परिणाहेन, तद्यथापद्मद्रहश्चैव पुण्डरीकद्र हश्चैव ।
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स्थान २ : सूत्र २८४-२८७
सदृश हैं, यावत् वे लम्बाई, चौड़ाई, ऊंचाई, संस्थान और परिधि में एक-दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते । २८४. जम्बूद्वीप द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर में नीलवान् वर्षधर पर्वत के दो कूट हैंनीलवान् कूट, उपदर्शन कूट । वे दोनों क्षेत्र प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं, यावत् वे लम्बाई, चौड़ाई, ऊंचाई, संस्थान और परिधि में एक-दूसरे अतिक्रमण नहीं करते । २८५. जम्बूद्वीप द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर में रुक्मी वर्षधर पर्वत के दो कूट हैंरुक्मी कूट, मणिकाञ्चन कूट । वे दोनों क्षेत्र प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं, यावत् वे लम्बाई, चौड़ाई, ऊंचाई, संस्थान और परिधि में एक-दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते ।
२८६. जम्बूद्वीप द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर में शिखरी वर्षधर पर्वत के दो कूट हैंशिखरी कूट, तिगिछि कूट ।
दोनों क्षेत्र प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं, यावत् वे लम्बाई, चौड़ाई, ऊंचाई, संस्थान और परिधि में एक रे दूर.. का अतिक्रमण नहीं करते ।
२८७.
महाद्रह-पद
जम्बूद्वीप द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण में क्षुल्लहिमवान् वर्षधर पर्वत पर पद्मद्रह और उत्तर में शिखरी वर्षधर पर्वत पर पौंडरीक द्रह नाम के दो महान् द्रह हैंवे दोनों क्षेत्र प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं। उनमें कोई विशेष (भेद ) नहीं है | कालचक्र के परिवर्तन की दृष्टि से उनमें कोई नानात्व नहीं है। वे लम्बाई,
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