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________________ ठाणं (स्थान) ७८ स्थान २ : सूत्र २७३-२७५ २७३. एवं—महाहिमवंते चेव, रुप्पिच्चेब। एबम्-महाहिमवांश्चैव, रुक्मी चैव। २७३. इसी प्रकार महाहिमवान्, रुक्मी, निषध एवं_णिसढे चेव, णीलवंते चेव। एवम्-निषधश्चैव, नीलवाश्चैव । और नीलवान् पर्वत की स्थिति क्षुल्लहिम वान् और शिखरी के समान हैमहाहिमवान्, निषध-दक्षिण में । रुक्मी, नीलवान-उत्तर में। २७४. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य उत्तर- २७४. जम्बूद्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण में उत्तर-दाहिणे णं हेमवत- दक्षिणे हैमवत-हैरण्यवतयोः वर्षयोः द्वौ हैमवत क्षेत्र में शब्दापाती नाम का वृत्त हेरण्णवतेसु वासेसु दो वट्टवेयड- वृत्तवैताढ्यपर्वतौ प्रज्ञप्तौ वैताढय पर्वत है और उत्तर में ऐरण्यवत पव्वता पण्णत्ता—बहुसमतुल्ला बहुसमतुल्यौ अविशेषौ अनानात्वौ । क्षेत्र में विकटापाती नाम का वृत्त वैताढ्य अविसेसमणाणत्ता 'अण्णमण्णं अन्योन्यं नातिवर्तते आयाम- पर्वत है। णातिवटुंति आयाम-विक्खं- विष्कम्भोच्चत्वोद्वेध-संस्थान-परिणाहेन, वे दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा भुच्चत्तोब्वेह-संठाण-परिणाहेणं तं तद्यथा सदृश हैं। उनमें कोई विशेष (भेद) नहीं जहा शब्दापाती चैव, विकटापाती चैव । है। कालचक्र के परिवर्तन की दृष्टि से उनमें सद्दावाती चेव, वियडावाती चेव। तत्र द्वौ देवौ महद्धिको नानात्व नहीं है। वे लम्बाई, चौड़ाई, तत्थ णं दो देवा महिड्डिया जाव यावत् पल्योपमस्थितिको परिवसतः, ऊंचाई, गहराई, संस्थान और परिधि में पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तं तद्यथा एक-दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते। जहा-साती चेव, पभासे चेव। स्वातिश्चैव, प्रभासश्चैव। उन पर महान् ऋद्धि वाले यावत् एक पल्योपम की स्थिति वाले दो देव रहते हैं—शब्दापाती पर स्वातीदेव और विकटापाती पर प्रभासदेव। २७५. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य उत्तर- २७५. जम्बूद्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण में उत्तर-दाहिणे णं हरिवास- दक्षिणे हरिवर्ष-रम्यकयोः वर्षयोः द्वौ हरि क्षेत्र में गन्धापाती नाम का वृत्त रम्मएसु वासेसु दो वट्टवेयड्पव्वया वृत्तवैताढ्यपर्वतौ प्रज्ञप्तौ वैताढ्य पर्वत है और उत्तर में रम्यक् पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला जाव, तं बहुसमतुल्यौ यावत्, तद्यथा क्षेत्र में माल्यवत्पर्याय नाम का वृत्त जहा_गंधावाती चेव, गंधापाती, चैव, माल्यवत्पर्यायश्चैव । वैताढ्य पर्वत है। मालवंतपरियाए चेव। तत्र द्वौ देवो महििद्धको यावत् वे दोनों क्षेत्र-प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा तत्थ णं दो देवा महिडिया जाव पल्योपमस्थितिको परिवसतः, सदृश हैं, यावत् वे लम्बाई, चौड़ाई, पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तद्यथा ऊंचाई, गहराई, संस्थान और परिधि में तं जहा...अरुणे चेव, पउमे चेव। अरुणश्चैव, पद्मश्चैव। एक-दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते। उन पर महान् ऋद्धिवाले यावत् एक पल्योपम की स्थिति वाले दो देव रहते हैं--गंधापाती पर अरुणदेव । माल्यवत्पर्याय पर पद्मदेव। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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