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ठाणं (स्थान)
स्थान २ : सूत्र २७१-२७२ २७१. जंबुद्दीवे दोवे मंदरस्स पव्वयस्स जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य उत्तर- २७१. जम्बूद्वीप द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तरउत्तर-दाहिणे णं दो कुराओ दक्षिणे द्वौ कुरू प्रज्ञप्तौ--
दक्षिण में दो कुरु हैं-देवकुरु-दक्षिण में। पण्णत्ताओ—बहुसमतुल्लाओ जाव, बहुसमतुल्यौ यावत्,
उत्तरकुरु-उत्तर में । वे दोनों क्षेत्रदेवकुरा चेव, उत्तरकुरा चेव। देवकुरुश्चैव,
प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा सदृश हैं। नगरउत्तरकुरुश्चैव।
नदी आदि की दृष्टि से उनमें कोई विशेष तत्थ णं दो महतिमहालया महा- तत्र द्वौ महातिमहान्तौ माद्रुमौ । (भेद) नहीं है । कालचक्र के परिवर्तन की दुमा पण्णत्ताप्रज्ञप्तौ
दृष्टि से उनमें नानात्व नहीं है । वे बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता बहुसमतुल्यौ अविशेषौ अनानात्वौ लम्बाई, चौड़ाई, संस्थान और परिधि में अण्णमण्णं णाइवटुंति आयाम- अन्योन्यं नातिवर्तेते आयाम- एक-दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते। विक्खंभुच्चत्तोव्वेह-संठाण- विष्कम्भोच्चत्वोद्वेध-संस्थान-परिणा- वहां (देवकुरु में) कूटशाल्मली और परिणाहेणं, तं जहाहेन, तद्यथा
सुदर्शना जम्बू नाम के दो अतिविशाल कूडसामली चेव, जंबू चेव कूटशाल्मली चैव, जम्बू चेव सुदर्शना। महाद्रुम हैं। वे दोनों प्रमाण की दृष्टि से सुदंसणा।
तत्र द्वौ देवौ महधिकौ महाद्युतिको सर्वथा सदृश हैं। उनमें कोई विशेष (भेद) तत्थ णं दो देवा महड्डिया ___ महानुभागौ महायशसौ महाबलौ महा- नहीं है। कालचक्र के परिवर्तन की दृष्टि *महज्जुइया महाणुभागा महायसा सोख्यौ पल्योपमस्थितिको परिवसतः, से उनमें नानात्व नहीं है। वे लम्बाई, महाबला महासोक्खा पलि- तद्यथा--
चौड़ाई, ऊंचाई, गहराई, संस्थान और ओवमद्वितीया परिवसंति तं, गरुडश्चैव वेणदेवः,
परिधि में एक-दूसरे का अतिक्रमण नहीं जहा_गरुले चेव वेणुदेवे, अणाढिते अनादृतश्चैव, जम्बूद्वीपाधिपतिः । करते। उन पर महान् ऋद्धि वाले, महान् चेव जंबुद्दीवाहिवती।
द्युति वाले, महान् शक्ति वाले, महान् यश वाले, महान् बल वाले, महान् सुख को भोगने वाले और एक पल्योपम की स्थिति वाले दो देव रहते हैं-कूट शाल्मली पर सुपर्णकुमार जाति का वेणुदेव और सुदर्शना
पर जम्बूद्वीप का अधिकारी 'अनादृत देव'। पव्वय-पदं २७२. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य उत्तर- २७२. जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत के उत्तरउत्तर-दाहिणे णं दो वासहर- दक्षिणे द्वौ वर्षधरपर्वतौ प्रज्ञप्तौ
दक्षिण में दो वर्षधर पर्वत हैं-क्षुल्लहिमपव्वया पण्णत्ता
बहुसमतुल्यौ अविशेषौ अनानात्वौ वान्–दक्षिण में। शिखरी-उत्तर में। बहसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अन्योन्यं नातिवर्तेते आयाम
वे दोनों क्षेत्र प्रमाण की दृष्टि से सर्वथा अण्णमण्णं णातिवटैंति आयाम- विष्कम्भोच्चत्वोद्वेध-संस्थान-परिणा- सदृश हैं। उनमें कोई विशेष (भेद) नहीं विक्खंभुच्चत्तोव्वेह-संठाण- हेन तद्यथा
है। कालचक्र के परिवर्तन की दृष्टि से परिणाहेणं, तं जहाक्षुल्लहिमवाँश्चैव, शिखरी चैव,
उनमें नानात्व नहीं है। वे लम्बाई, चौड़ाई, चुल्लहिमवंते चेव, सिहरिच्चेव।
ऊंचाई, गहराई, संस्थान और परिधि में एक-दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते।
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