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________________ ठाणं (स्थान) ७० स्थान २ : सूत्र २१८-२२४ २१८. णोआउज्जसद्दे दुविहे पण्णत्ते, नोआतोद्यशब्द: द्विविधः प्रज्ञप्तः, २१८. नोआतोद्य शब्द दो प्रकार का हैतं जहा तद्यथा भूषणशब्द नोभूषणशब्द। भूसणसद्दे चेव, णोभूसणसद्दे चेव। भूषणशब्दश्चैव, नोभूषणशब्दश्चैव । २१९. णोभूसणसद्दे दुविहे पण्णत्ते, नोभूषणशब्दः द्विविध: प्रज्ञप्तः, २१६. नोभूषणशब्द दो प्रकार का हैतं जहातद्यथा-- तालशब्द लतिकाशब्द। तालसद्दे चेव, लत्तिआसद्दे चेव। तालशब्दश्चैव, लतिकाशब्दश्चैव । २२०. दोहि ठाणेहि सदुप्पाते सिया, द्वाभ्यां स्थानाभ्यां शब्दोत्पातः स्यात्, २२०. दो कारणों से शब्द की उत्पत्ति होती हैतं जहातद्यथा जब पुद्गल संहति को प्राप्त होते हैं साहण्णंताणं चेव पोग्गलाणं संहन्यमानानां चैव पुद्गलानां तब शब्द की उत्पत्ति होती है, जैसेसदुप्पाए सिया, शब्दोत्पातः स्यात्, घड़ी का शब्द । जब पुद्गल भेद को भिज्जंताणं चेव पोग्गलाणं भिद्यमानानां चैव पुद्गलानां प्राप्त होते हैं तब शब्द की उत्पत्ति सदुप्पाए सिया। शब्दोत्पातः स्यात् । होती है, जैसे—बांस के फटने का शब्द। पोग्गल-पदं पुद्गल-पदम् पुद्गल-पद २२१. दोहि ठाणेहिं पोग्गला साहणंति, द्वाभ्यां स्थानाभ्यां पुद्गलाः संहन्यन्ते, २२१. दो स्थानों से पुद्गल संहत होते हैंतं जहातद्यथा स्वयं-अपने स्वभाव से पुद्गल संहत सई वा पोग्गला साहणंति, स्वयं वा पुद्गला: संहन्यन्ते, होते हैं। परेण वा पोग्गला साहणंति। परेण वा पुद्गला संहन्यन्ते । दूसरे निमित्तों से पुद्गल संहत होते हैं। २२२. दोहि ठाणेहि पोग्गला भिज्जति, द्वाभ्यां स्थानाभ्यां पुद्गला भिद्यन्ते, २२२. दो स्थानों से पुद्गलों का भेद होता हैतं जहातद्यथा स्वयं-अपने स्वभाव से पुद्गलों का भेद सई वा पोग्गला भिज्जंति, स्वयं वा पुद्गला भिद्यन्ते, होता है । दूसरे निमित्तों से पुद्गलों का परेण वा पोग्गला भिज्जंति। परेण वा पुद्गला भिद्यन्ते । भेद होता है। २२३. दोहि ठाणेहि पोग्गला परिपडंति, द्वाभ्यां स्थानाभ्यां पुद्गलाः परिपतन्ति, २२३. दो स्थानों से पुद्गल नीचे गिरते हैंतं जहातद्यथा स्वयं-अपने स्वभाव से पुद्गल नीचे सई वा पोग्गला परिपडंति, स्वयं वा पुद्गलाः परिपतन्ति, गिरते हैं। परेण वा पोग्गला परिपडंति। परेण वा पुद्गलाः परिपतन्ति । दूसरे निमित्तों से पुद्गल नीचे गिरते हैं। २२४. 'दोहि ठाणेहि पोग्गला परिसडंति, द्वाभ्यां स्थानाभ्यां पूदगलाः परिशटंति, २२४. दो स्थानों से पुद्गल विकृत होकर नीचे तं जहातद्यथा गिरते हैंसई वा पोग्गला परिसडंति, स्वयं वा पुद्गलाः परिशटंति, स्वयं-अपने स्वभाव से पुद्गल विकृत परेण वा पोग्गला परिसडंति। परेण वा पुद्गलाः परिशटंति । होकर नीचे गिरते हैं । दूसरे निमित्तों से पुद्गल विकृत होकर नीचे गिरते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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