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________________ ठाणं (स्थान) ७१ स्थान २: सूत्र २२५-२३३ २२५. दोहि ठाणेहं पोग्गला विद्धसंति, द्वाभ्यां स्थानाभ्यां पुद्गलाः विध्वंसते, २२५. दो स्थानों से पुद्गल विध्वंस को प्राप्त तं जहातद्यथा होते हैंसई वा पोग्गला विद्धंसंति, स्वयं वा पुद्गलाः विध्वंसते, स्वयं अपने स्वभाव से पुद्गल विध्वंस परेण वा पोग्गला विद्धंसंति। परेण वा पुद्गलाः विध्वंसंते। को प्राप्त होते हैं। दूसरे निमित्तों से पुद्गल विध्वंस को प्राप्त होते २२६. दुविहा पोग्गला पण्णत्ता, त जहा द्विविधाः पदगलाः प्रज्ञप्ताः, तदयथा- २२६. पुद्गल दो प्रकार के हैंभिण्णा चेव, भिण्णा चैव। भिन्नाश्चैव, अभिन्नाश्चैव । भिन्न, अभिन्न । २२७. दुविहा पोग्गला पण्णत्ता, तं जहा- द्विविधाः पदगलाः प्रज्ञप्ता:, तद्यथा- २२७. पुद्गल दो प्रकार के हैंभेउरधम्मा चेव, भिदुरधर्माणश्चैव, भिदुर धर्मवाले, णोभेउरधम्मा चेव। नोभिदुरधर्माणश्चैव। नोभिदुर धर्मवाले। २२८. दुविहा पोग्गला पण्णत्ता, ते जहा- द्विविधाः पदगला: प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- २२८. पुद्गल दो प्रकार के हैंपरमाणुपोग्गला चेव, परमाणुपुद्गलाश्चैव, परमाणु पुद्गल, णोपरमाणुपोग्गला चेव। नोपरमाणुपुद्गलाश्चैव । नोपरमाणु पुद्गल (स्कन्ध)। २२६. दुविहा पोग्गला पण्णता, त जहा- द्विविधाः पूदगलाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- २२६. पुद्गल दो प्रकार के हैंसुहुमा चेव, बायरा चेव। सूक्ष्माश्चैव, बादराश्चैव । सूक्ष्म बादर। २३०. दुविहा पोग्गला पण्णत्ता, तं जहा- द्विविधाः पदगलाः प्रज्ञप्ताः, तदयथा- २३०. पुद्गल दो प्रकार के हैंबद्धपासपुट्ठा चेव, बद्धपार्श्वस्पष्टाश्चैव, बद्धपार्श्वस्पृष्ट, णोबद्ध पासपुट्ठा चेव। नोबद्धपार्श्वस्पृष्टाश्चैव। नोबद्धपार्श्वस्पृष्ट ।" २३१. दुविहा पोग्गला पण्णता, तं जहा- द्विविधाः पुदगलाः प्रज्ञप्ताः, तदयथा- २३१. पुद्गल दो प्रकार के हैंपरियादितच्चेव, पर्यादत्ताश्चैव, पर्यादत, अपरियादितच्चेव। अपर्यादत्ताश्चैव। अपर्यादत। २३२. दुविहा पोग्गला पण्णता, ते जहा- द्विविधाः पदगलाः प्रज्ञप्ताः, तदयथा- २३२. पुद्गल दो प्रकार के हैंअत्ता चेव, आत्ताश्चैव, आत्त-जीव के द्वारा गृहीत, अणत्ता चेव। अनात्ताश्चैव । अनात्त--जीव के द्वारा अगृहीत । २३३. दुविहा पोग्गला पण्णत्ता, तं जहा- द्विविधाः पदगलाः प्रज्ञप्ताः, तदयथा- २३३. पुद्गल दो प्रकार के हैंइट्ठा चेव, अणिट्ठा चेव । इष्टाश्चैव, अनिष्टाश्चैव। अनिष्ट । •कता चेव, अकता चेव। अकान्त। कान्ताश्चैव, अकान्ताश्चैव। पिया चेव, अपिया चेव। प्रियाश्चैव, अप्रियाश्चैव। अप्रिय। मणुण्णा चेव, अमणुण्णा चेव। मनोज्ञाश्चैव, अमनोज्ञाश्चैव । मनोज्ञ, अमनोज्ञ। मणामा चेव, अमणामा चेव । मन 'आमा' श्चैव, अमन 'आमा' श्चैव। मन के लिए प्रिय, मन के लिए अप्रिय । कान्त, प्रिय, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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