SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ठाणं (स्थान) पासइ । १,२. आहोहि समोहतासमोहतेणं चेव अप्पाणेणं आया केवलकप्पं लोगं जाणइ पासइ | ° जाणइ पासइ, तं जहा१. विउव्वितेणं चेव अप्पाणेणं आता अहेलोगं जाणइ पासइ, १७. दोहि ठाणेह आता अहेलोगं द्वाभ्यां स्थानाभ्यां आत्मा अधोलोकं जानाति पश्यति, तद्यथा१. विकृतेन चैव आत्मना आत्मा अधोलोकं जानाति पश्यति, २. अविउव्वितेणं चैव अप्पाणं आता अहेलोगं जाणइ पासइ । १२. आहोहि विव्विया विजव्वितेणं चैव अप्पाणेणं आता अहेलोगं जाणइ पासइ । १८. दोहि ठाणेह आता तिरियलोगं जाणइ पासइ, त जहा१. विउव्वितेणं चैव अप्पाणेणं आता तिरियलोगं जाणइ पासइ, २. अविउव्वितेणं चैव अप्पाणेणं आता तिरियलोगं जाणइ पासइ । १२. आहोहि विजव्विया विउव्वितेणं चैव अप्पाणेणं आता तिरियलोगं जाणइ पासइ । १६६. दोहि ठाणेह आता उड्डलोगं जाणइ पास, तं जहा— १. विउव्विणं चेव अप्पाणेणं आता उडलोगं जाणइ पास, २. अविउन्वितेणं चैव अप्पाणेणंआता उडलोगं जाणइ पासइ । ६६ Jain Education International पश्यति । १,२. अधोऽवधिः समवहतासमवह तेन चैव आत्मना आत्मा केवलकल्पं लोकं जानाति पश्यति । २. अविकृतेन चैव आत्मना आत्मा अधोलोकं जानाति पश्यति । १२. अधोऽवधि विकृताऽविकृतेन चैव आत्मना आत्मा अधोलोकं जानाति पश्यति । द्वाभ्यां स्थानाभ्यां आत्मा तिर्यग्लोकं जानाति पश्यति, तद्यथा१. विकृतेन चैव आत्मना आत्मा तिर्यग्लोकं जानाति पश्यति, २. अविकृतेन चैव आत्मना आत्मा तिर्यग्लोकं जानाति पश्यति । १२. अधोऽवधि विकृताऽविकृतेन चैव आत्मना आत्मा तिर्यग्लोकं जानाति पश्यति । द्वाभ्यां स्थानाभ्यां आत्मा ऊर्ध्वलोकं जानाति पश्यति, तद्यथा१. विकृतेन चैव आत्मना आत्मा ऊर्ध्वलोकं जानाति पश्यति, २. अविकृतेन चैव आत्मना आत्मा ऊर्ध्वलोकं जानाति पश्यति । For Private & Personal Use Only स्थान २ : सूत्र १६६-१६६ जानता देखता है। अधोवधि (नियत क्षेत्र को जानने वाला अवधिज्ञानी) वैक्रिय आदि समुद्घात करके या किए बिना भी अवधिज्ञान से सम्पूर्ण लोक को जानता देखता है। १६७. दो स्थानों से आत्मा अधोलोक को जानता-देखता है वैक्रियशरीर का निर्माण कर लेने पर आत्मा अवधिज्ञान से अधोलोक को जानता देखता है । वैयशरीर का निर्माण किए बिना भी आत्मा अवधिज्ञान से अधोलोक को जानता देखता है । अधोवधि वैक्रियशरीर का निर्माण करके या उसका निर्माण किए बिना भी अवधिज्ञान से अधोलोक को जानता देखता है। १९८. दो स्थानों से आत्मा तिर्यगुलोक को जानता देखता है वैक्रियशरीर का निर्माण कर लेने पर आत्मा अवधिज्ञान से तिर्यग्लोक को जानता देखता है। वैक्रियशरीर का निर्माण किए बिना भी आत्मा अवधिज्ञान से तिर्यगुलोक को जानता देखता है । अधोवधि वैयिशरीर का निर्माण करके या उसका निर्माण किए बिना भी अवधिज्ञान से तिर्यग्लोक को जानता देखता है। १६६. दो स्थानों से आत्मा ऊर्ध्वलोक को जानता देखता है - वैक्रियशरीर का निर्माण कर लेने पर आत्मा अवधिज्ञान से ऊर्ध्वलोक को जानता देखता है। वैक्रियशरीर का निर्माण किए बिना भी आत्मा अवधिज्ञान से ऊर्ध्वलोक को जानता देखता है। www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy