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________________ ठाणं (स्थान) ६४ स्थान २ : सूत्र १८८-१९३ १८८. दुविहा रइया पण्णत्ता, तं द्विविधा नै रयिकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- १८८. नैरयिक आदि सभी दण्डकों के दो-दो जहा परित्तसंसारिता चेव, परीतसंसारिकाश्चैव, प्रकार हैं--परीतसंसारी-वे जीव अणंतसंसारिता चेव अनन्तसंसारिकाश्चैव जिनके भव सीमित हो गए हों। जाव वेमाणिया। यावत् वैमानिकाः। अनन्तसंसारी-वे जीव जिनके भव सीमित न हों। १८६. दुविहा गेरइया पण्णत्ता, तं द्विविधा नैरयिकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- १८६. नैरयिक दो प्रकार के हैंजहासंख्येयकालस्थितिकाश्चैव, संख्येयकालसमय की स्थिति वाले। संखेज्जकालसमयट्टितया चेव, असंख्येयकालस्थितिकाश्चैव। असंख्येयकालसमय की स्थिति वाले। असंखेज्जकालसमयट्ठितिया चेव। एवम् –पञ्चेन्द्रियाः एकेन्द्रियविक- इसी प्रकार एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय एवं-पंचेंदिया एगिदियविलि- लेन्द्रियवर्जाः यावत् वानमन्तराः। को छोड़कर वानमन्तर पर्यन्त सभी दियवज्जा जाव वाणमंतरा। पञ्चेन्द्रिय जीव दो-दो प्रकार के हैं। १६०. दुविहा गेरइया पण्णत्ता, तं द्विविधा नैरयिकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- १६०. नैरयिक आदि सभी दण्डकों के दो-दो जहा-सुलभबोधिया चेव, सुलभबोधिकाश्चैव, प्रकार हैं-सुलभवोधिक, दुलभबोधिया चेव दुर्लभबोधिकाश्चैव दुर्लभबोधिक। जाव वेमाणिया। यावत् वैमानिकाः। १६१. दुविहा गेरइया पण्णत्ता, तं द्विविधा नै रयिकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- १६१. नरयिक आदि सभी दण्डकों के दो-दो जहा-कण्हपक्खिया चेव, कृष्णपाक्षिकाश्चैव, प्रकार हैंसुक्कपक्खिया चेव शुक्लपाक्षिकाश्चैव कृष्णपाक्षिक शुक्लपाक्षिक। जाव वेमाणिया। यावत् वैमानिकाः। १९२. दुविहा गेरइया पण्णत्ता, तं द्विविधा नैरयिकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-- १६२. नैरयिक आदि सभी दण्डकों के दो-दो जहा—चरिमा चेव, चरमाश्चैव, प्रकार हैं-चरम, अचरिमा चेव अचरमाश्चैव अचरम । जाव वेमाणिया। यावत् वैमानिकाः। आहोहि-णाण-दसण-पदं अधोऽवधि-ज्ञान-दर्शन-पदम् अधोऽवधि-ज्ञान-दर्शन-पद १९३. दोहि ठाणेहिं आया अहेलोगं द्वाभ्यां स्थानाभ्यां आत्मा अधोलोकं १९३. दो स्थानों से आत्मा अधोलोक को जानताजाणइ पासइ, तं जहाजानाति पश्यति, तद्यथा देखता है१. समोहलेणं चेव अप्पाणेणं आया १. समवहतेन चैव आत्मना आत्मा वैक्रिय आदि समुद्घात करके आत्मा अहेलोगं जाणइ पासइ, अधोलोकं जानाति पश्यति, अवधिज्ञान से अधोलोक को जानता देखता है। २. असमोहतेणं चेव, अप्पाणेणं २. असमवहतेन चैव आत्मना वैक्रिय आदि समुद्घात न करके भी आया अहेलोगं जाणइ पासइ। आत्मा अधोलोकं जानाति आत्मा अवधिज्ञान से अधोलोक को पश्यति। जानता-देखता है। १,२. आहोहि समोहतासमोहतेणं १,२. अधोवधिः समवहताऽ सम- अधोवधि (नियत क्षेत्र को जानने वाला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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