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ठाणं (स्थान)
१८०. दुविहा रइया पण्णत्ता, तं जहा - पढमसमओववण्णगा चेव, अपढसमओववणगा चेव
जाव वेमाणिया ।
१८१. दुविहा णेरड्या पण्णत्ता, तं जहा - आहारगा चैव,
अणाहारगा चेव ।
एवं जाव वेमाणिया । १८२. दुविहारइया पण्णत्ता, जहा - उस्सासगा चेव, गोउस्सासगा चेव
जाव वेमाणिया ।
जहा - पज्जत्तगा चेव,
अपज्जत्तगा चैव
नोउच्छ्वासक - जिनके उच्छ्वासपर्याप्त पूर्ण न हुई हो ।
१८३. दुविहा णेरड्या पण्णत्ता, तं द्विविधा नैरयिकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - १८३. नैरयिकों से वैमानिक पर्यन्त सभी दण्डक
जहा – सइंदिया चेव,
के दो-दो प्रकार हैं
अणिदिया चेव
सइन्द्रिय ।
जाव वेमाणिया ।
यावत् वैमानिकाः ।
अनिन्द्रिय ।
१८४. दुविहा णेरइया पण्णत्ता, तं द्विविधा नैरयिकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - १८४. नैरयिकों से वैमानिक पर्यन्त सभी दण्डकों
के दो-दो प्रकार हैं
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स्थान २ : सूत्र १८०-१८७
द्विविधा नैरयिकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - १८०. नैरयिकों से वैमानिक पर्यन्त सभी दण्डकों प्रथमसमयोपपन्नकाश्चैव, के दो-दो प्रकार हैंअप्रथमसमयोपपन्नकाश्चैव
प्रथमसमयोपपन्नक |
यावत् वैमानिकाः ।
अप्रथमसमयोपपन्नक |
द्विविधा नैरयिकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - १८१. नैरयिकों से वैमानिक पर्यन्त सभी दण्डको आहार काश्चैव के दो-दो प्रकार हैं—
अनाहारकारचैव ।
आहारक ।
एवम् — यावत् वैमानिकाः ।
अनाहारक
तं द्विविधा नैरयिकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा — १८२. नैरयिकों से वैमानिक पर्यन्त सभी दण्डकों के दो-दो प्रकार हैं- उच्छ्वासक -----
उच्छ्वासपर्याप्ति से पर्याप्त ।
जाव वेमाणिया ।
१८५. दुविहा रइया पण्णत्ता, तं जहा - सण्णी चेव, असण्णी चेव ।
एवं - पंचेंदिया सव्वे विलदिय वज्जा जाव वाणमंतरा ।
मिच्छद्दिट्टिया चेव । एगिदियवज्जासव्वे |
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उच्छ्वासकाश्चैव,
नोउच्छ्वास काश्चैव यावत् वैमानिकाः ।
सेन्द्रियाश्चैव, अनिन्द्रियाश्चैव
पर्याप्तकाश्चैव, अपर्याप्तकाश्चैव
पर्याप्तक ।
यावत् वैमानिकाः ।
अपर्याप्तक ।
द्विविधा नैरयिकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - १८५. विकलेन्द्रियों को छोड़कर नैरयिक से संज्ञिनश्चैव, असंज्ञिनश्चैव 1 वानमन्तर तक के सभी दण्डकों के दो-दो प्रकार हैं
एवम् – पञ्चेन्द्रियाः सर्वे विकलेन्द्रियवर्जाः यावत् वानमन्तराः ।
संज्ञी, असंज्ञी । "
पण्णत्ता, तं द्विविधा नैरयिकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा — १८६. एकेन्द्रिय को छोड़कर नैरयिक आदि सभी
१८६. दुविहा णेरइया
जहा - भासगा चेव,
दण्डकों के दो-दो प्रकार हैं
अभासगा चेव ।
भाषक - भाषापर्याप्ति-युक्त ।
एवमेगिदियवज्जासच्वे ।
एवं एकेन्द्रियवर्जाः सर्वे ।
अभाषक - भाषापर्याप्ति-रहित ।
१८७. दुविहारइया पण्णत्ता, तं जहा — द्विविधा नेरयिकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - १८७. एकेन्द्रिय को छोड़कर नैरयिक आदि सभी
समद्दियाव
दण्डकों के दो-दो प्रकार हैं
भाषकाश्चैव,
अभाषकाश्चैव ।
सम्यग्दृष्टिकाश्चैव,
मिथ्यादृष्टिकाश्चैव ।
एकेन्द्रियवर्णाः सर्वे ।
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सम्यग्दृष्ट |
मिथ्यादृष्टि |
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