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ठाणं (स्थान)
१००७
१. महावीर के तीर्थ से अनुत्तरोपपातिक विमानों में उत्पन्न होने वाले दस मुनियों का वर्णन ।
२. अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होने वाले जीवों का आयुष्य, विक्रिया आदि का वर्णन ' ।
दस मुमुक्षुओं का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है
१. ऋषिदास - यह राजगृह का निवासी था । इसकी माता का नाभ भद्रा था। इसने ३२ कन्याओं के साथ विवाह किया तथा प्रव्रज्या ग्रहण कर, मासिक संलेखना से देहत्याग कर सर्वार्थसिद्ध में उत्पन्न हुआ ।
२. धन्य - काकंदी में भद्रा नामक सार्थवाह रहती थी । उसके एक पुत्र था। उसका नाम था धन्य । उसका विवाह ३२ कन्याओं के साथ हुआ। भगवान् महावीर से धर्म श्रवण कर वह दीक्षित हो गया । प्रव्रज्या लेकर वह तपोयोग में संलग्न हो गया। उसने बेले-बेले (दो-दो दिन के उपवास) की तपस्या और पारण में आचाम्ल प्रारंभ किया। विकट तपस्या के कारण उसका शरीर केवल ढांचा मात्र रह गया। एक बार भगवान् महावीर ने मुनि धन्य को अपने चौदह हजार शिष्यों में 'दुष्कर करनी' करने वाला बताया ।
स्थान १० : टि० ४६
३. सुनक्षत्र -- यह काकंदी का निवासी था। इसकी माता का नाम भद्रा था। भगवान् महावीर से प्रव्रज्या ग्रहण कर इसने ग्यारह अंगों का अध्ययन किया और अनेक वर्षों तक श्रामण्य का पालन किया ।
४. कार्तिक भगवती १८३८ ५४ में हस्तिनागपुरवासी कार्तिकसेठ का वर्णन है । उसने प्रव्रज्या ग्रहण की और वह मरकर सौधर्म कल्प में उत्पन्न हुआ । वृत्तिकार का कथन है कि वह कोई अन्य है और प्रस्तुत सूत्र में उल्लिखित कार्तिक कोई दूसरा होना चाहिए। इसका विवरण प्राप्त नहीं है।
५. सट्ठाण [ स्वस्थान ] - विवरण अज्ञात है ।
६. शालिभद्र - यह राजगृह का निवासी था। इसके पिता का नाम गोभद्र और माता का नाम भद्रा था । शालिभद्र ने ३२ कन्याओं के साथ विवाह किया और बहुत ऐश्वर्यमय जीवन जीया। इसके पिता गोभद्र मरकर देवयोनि में उत्पन्न हुए और शालिभद्र के लिए विविध भोग सामग्री प्रस्तुत करने लगे ।
एक बार नेपाल का व्यापारी रत्नकंबल बेचने वहां आया। उनका मूल्य अधिक होने के कारण किसी ने उन्हें नहीं खरीदा। राजा ने भी उन्हें खरीदने से इन्कार कर दिया।
हताश होकर व्यापारी अपने देश लौट रहा था । भद्रा ने सारे कंबल खरीद लिए। कंबल सोलह थे और भद्रा की पुत्र- वधुएं ३२ थीं। उसने कंबलों के बत्तीस टुकड़े कर उन्हें पोंछने के लिए दे दिए।
राजा ने यह बात सुनी। वह कुतूहलवश शालिभद्र को देखने आया । माता ने कहा- पुत्र ! तुम्हें देखने स्वामी घर आए हैं।' स्वामी की बात सुन उसे वैराग्य हुआ और जब भगवान् महावीर राजगृह आए तब वह दीक्षित हो गया।
प्रस्तुत सूत्र में इसी शालिभद्र का उल्लेख होना संभव है, किन्तु उपलब्ध अनुत्तरोपपातिक सूत्र में इस नाम का अध्ययन प्राप्त नहीं है । तत्त्वार्थवार्तिक से भी अनुत्तरोपपातिक के 'शालिभद्र' नामक अध्ययन की पुष्टि होती है। *
७. आनंद - भगवान् के एक शिष्य का नाम 'आनंद' था। वह बेले बेले की तपस्या करता था। एक बार वह पारणा के दिन गोचरी के लिए निकला । गोशाल ने उससे बातचीत की। भिक्षा से निवृत्त हो आनंद भगवान् के पास आया और सारी बातें उन्हें कही ।
इसका विशेष विवरण प्राप्त नहीं है ।
आनंद नामक मुनि का एक उल्लेख निरयावलिका के 'कप्पवडसिया' के नौंवें अध्ययन में प्राप्त होता है। किन्तु वहाँ उसे दशवें देवलोक में उत्पन्न माना है तथा महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होने की बात कही है। अतः यह प्रस्तुत सूत्र में उल्लिखित आनंद से भिन्न है ।
८. तेतली - ज्ञाताधर्मकथा [ १|१४] में तेतलीपुत्र के दीक्षित होने और सिद्धगति प्राप्त करने की बात मिलती है।
१. तत्वार्थराजवार्तिक १।२० ।
२. स्थानांगवृत्ति पत्र ४८३ यो भगवत्यां श्रूयते सोऽन्य एव अयं पुनरन्योऽनुत्तर सुरेषूपपन्न इति ।
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३. स्थानांगवृत्ति पत्र ४८३ सोऽयमिह सम्भाव्यते, केवलमनुत्तरोपपातिका नाधीत इति ।
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