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________________ ठाणं (स्थान) ४८. ( सू० ११३ ) १००६ प्रस्तुत सूत्र में अन्तकृतदशा के दस अध्ययनों के नाम दिये गये हैं। वर्तमान में उपलब्ध इस सूत्र के आठ वर्ग हैं। पहले दो वर्गों में दस-दस, तीसरे में तेरह, चौथे-पांचवें में दस-दस, छठे में सोलह सातवें में तेरह और आठवें में दस अध्ययन हैं । वृत्तिकार के अनुसार नमि आदि दस नाम प्रथम दस अध्ययनों के नाम हैं। ये नाम अन्तकृत साधुओं के हैं, किन्तु वर्तमान में उपलब्ध अन्तकृतदशा के प्रथम वर्ग के अध्ययन-संग्रह में ये नाम नहीं पाए जाते। वहाँ इनके बदले ये नाम उपलब्ध होते हैं १. गौतम, ४. गम्भीर, ५. स्तिमित, ६. अचल, ६. प्रसेनजित्, १०. विष्णु । २. समुद्र, ३. सागर, ७. कांपिल्य, ८. अक्षोभ्य, इसलिए सम्भव है कि प्रस्तुत सूत्र के नाम किसी दूसरी वाचना के हैं। ये नाम जन्मान्तर की अपेक्षा से भी नहीं होने चाहिए, क्योंकि उनके विवरणों में जन्मान्तरों का कथन नहीं हुआ है । छठे वर्ग के सोलह उद्देशकों में 'विकर्मा' और 'सुदर्शन' ये दो नाम आए हैं। ये दोनों यहाँ आए हुए आठवें और पांचवें नाम से मिलते हैं। चौथे वर्ग में जाली और मयाली नाम आये हैं जो कि प्रस्तुत सूत्र में जमाली और भगाली से बहुत निकट हैं । तत्त्वार्थवार्तिक में अन्तकृतदशा के विषयवस्तु के दो विकल्प प्रस्तुत हैं - ( १ ) प्रत्येक तीर्थंकर के समय में होने वाले उन दस-दस केवलियों का वर्णन है जिन्होंने दस-दस भीषण उपसर्ग सहन कर सभी कर्मों का अन्त कर अन्तकृत हुए थे । (२) इसमें अर्हत् और आचार्यों की विधि तथा सिद्ध होने वालों की अन्तिम विधि का वर्णन है। महावीर के तीर्थ में अन्तकृत होने वालों के दस नाम ये हैं-नमि, मतंग, सोमिल, रामपुत्र, सुदर्शन, यमलीक, वलीक, किष्कम्बल, पाल और अम्बष्ठपुत्र । प्रस्तुत सूत्र के कुछ नाम इनसे मिलते हैं । स्थान १० : टि० ४८-४६ ४६. [सू० ११४] अनुत्तरोपपातिक दशा के तीन वर्ग हैं। प्रथम वर्ग में दस, दूसरे में तेरह और तीसरे में दस अध्ययन हैं। प्रस्तुत सूत्र में दस अध्ययनों के नाम हैं- ये सम्भवतः तीसरे वर्ग के होने चाहिए। वर्तमान में उपलब्ध अनुत्तरोपपातिक सूत्र के तीसरे वर्ग के दस अध्ययनों के प्रथम तीन नाम प्रस्तुत सूत के प्रथम तीन नामों से मिलते हैं । उनमें क्रम-भेद अवश्य है। शेष नाम नहीं मिलते। उपलब्ध अनुत्तरोपपातिक के तीसरे वर्ग के दस अध्ययनों के नाम इस प्रकार हैं ३. ऋषिदास, ४. पेल्लक, ५. रामपुत्र, १. धन्य, २. सुनक्षत्र, ६. चन्द्रमा, ७. प्रोष्ठक पेढालपु ६. पोट्टिल, १०. विल्ल [ वेल्ल ] | प्रस्तुत सूत्र के नाम तथा अनुत्तरोपपातिक के नाम किन्हीं दो भिन्न-भिन्न वाचनाओं के होने चाहिए। तत्त्वार्थ राजवार्तिक में ये दस नाम इस प्रकार हैं-ऋषिदास, वान्य, सुनक्षत्र, कार्तिक, नन्द, नन्दन, शालिभद्र, उभय, वारिषेण और चिलातपुत्र । विषयवस्तु के दो विकल्प हैं ८. Jain Education International १. स्थानांगवृत्ति, पत्र ४८३ : इह चाष्टौ वर्गास्तव प्रथमवर्गे दशाध्ययनानि तानि चामूनि 'नमी' त्यादि सार्द्ध रूपकम्, एतानि च नमोत्यादिकान्यन्तकृत्साधनामानि अन्तकृद्दशाङ्ग प्रथमवर्गेऽध्ययनसंग्रहेनोपलभ्यन्ते यतस्तत्राभिधीयते "गोयम, १ समृद्द, २ सागर, ३ गंभीरे, ४ देव होइ थिमिए ५ य । अयले ६ कंपिल्ले ७ खलु अक्खोभ = पसेणई विष्ह १०|| इति ततो वाचनान्तरापेक्षाणीमानीति संभावयामः, न च जन्मान्तरनामापेक्षयैतानि भविष्यन्तीति वाच्यं, जन्मान्तराणां तत्वानभिधीयमानत्वादिति ॥ २. तत्त्वार्थराजवार्तिक १२० । ३. वृत्तिकार ने पोट्टिके इय' पाठ मानकर उसका संस्कृत रूप 'पोष्ठक इति' दिया है। प्रकाशित पुस्तक में पिट्टिमाइय' पाठ और उसका अर्थ 'पृष्टिमातृक' मिलता है। ४. इसके स्थान पर 'धन्य' पाठान्तर दिया हुआ है। वस्तुतः मूलपाठ धन्य ही होना चाहिए। ऐसा होने पर दोनों परम्पराओं में एक ही नाम हो जाता है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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