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________________ ठाणं (स्थान) १००२ स्थान १० : टि०४६ दोनों के अध्ययन से नामों का अन्तर स्पष्ट हो जाता है। विपाक सूत्र में अध्ययनों के कई नाम व्यक्ति परक और कई नाम वस्तुपरक [ घटना परक ] हैं। प्रस्तुत सूत्र में वे नाम केवल व्यक्ति परक हैं। दो अध्ययनों में क्रम भेद हैं। प्रस्तुत सूत्र में जो आठवां अध्ययन है वह विपाक का सातवां अध्ययन है और इसका जो सातवां अध्ययन है वह विपाक का आठवां अध्ययन है। सभी अध्ययनों से सम्बन्धित घटनाएं इस प्रकार है १. मृगापुत्र - प्राचीन समय में मृगगाम नाम का नगर था। वहां विजय नाम का क्षत्रिय राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम मृगा था। उसके एक पुत्र हुआ। उसका नाम मृगापुत्र रखा गया । एक बार महावीर के समवसरण में एक जात्यन्ध व्यक्ति आया। उसे देखकर गौतम ने भगवान् से पूछा- 'भदन्त ! क्या इस नगर में भी कोई जात्यन्ध व्यक्ति है ? ' भगवान् ने उन्हें मृगापुत्र की बात कही, जो जन्म से अन्धा और आकृति रहित था । गौतम के मन में कुतुहल हुआ और वे भगवान की आज्ञा ले उसे देखने के लिए उसके घर गए । गौतम का आगमन सुन मृगादेवी बाहर आई । वन्दना कर आगमन का कारण पूछा। गौतम ने कहा- 'मैं तेरे पुत्न को देखने के लिए आया हूं।' मृगावती ने भौंहरे का द्वार खोला और गौतम को अपना पुत्र दिखाया। गौतम उस अत्यन्त घृणास्पद प्राणी को देखकर आश्चर्यचकित रह गए। वे भगवान् के पास आए और पूछा --- 'भगवन् ! यह पिछले जन्म में कौन था ?' भगवन् ने कहा - 'पुराने जमाने में विजयवर्द्धमान' नाम का एक सेट (क्षुद्र गांव) था। वहां मकायी नाम का राष्ट्रकूट ( गवर्नर ) था। वह रिश्वत, भेंट आदि लेता था। लोगों को वह बहुत पीड़ित करता था। एक बार वह अनेक रोगों से ग्रस्त हुआ और मरकर नरक गया । वहाँ से च्युत होकर वह यहां मृगावती के गर्भ से पुत्ररूप में उत्पन्न हुआ है । वह केवल लोढे के आकारका इन्द्रिय-विहीन और अत्यन्त दुर्गन्धयुक्त है। यहां से मरकर यह पुन: नरक में जाएगा । २. गोत्रास - हस्तिनागपुर में भीम नाम का पशु चौर ( कूटग्राह) रहता था। उसकी भार्या का नाम उत्पला था । एक बार वह गर्भवती हुई। तीन मास पूर्ण होने पर उसे पशुओं के विभिन्न अकषायों का मांस खाने का दोहद उत्पन्न हुआ । उसने अपने पति भीम से यह बात कही। पति ने उसे आश्वासन दिया । एक रात्रि में वह भीम घर से निकला और नगर में जहां गौबाड़ा था वहां आया। उसने अनेक पशुओं के विभिन्न अवयव काटे और घर आ उन्हें अपनी स्त्री को खिलाया । दोहृद पूरा हुआ। नौ मास व्यतीत होने पर उसने एक पुत्र का प्रसव किया। जन्मते ही बालक जोर-जोर से चिल्लाने लगा। उसकी आवाज सुनकर अनेक पशु भयभीत हो, इधर-उधर दौड़ने लगे। माता-पिता ने उसका नाम “गोलास” रखा। युवा अवस्था में उसने अनेक बार गोमांस खाया, अनेक दुराचार सेवन किए और अनेक पशुओं के अवयवों से अपनी भूख शांत की । इन पाप कर्मों से वह दूसरे नरक में नारक के रूप में उत्पन्न हुआ। वहां से च्युत होकर वह वाणिज्यग्राम नगर के सार्थवाह विजय की भार्या भद्रा के गर्भ में आया। उसका नाम उज्झितक रखा गया। युवा अवस्था में वह कामध्वज गणिका में आसक्त हो गया। एक बार वह गणिका के साथ काम भोग भोग रहा था। राजा भी वहां जा पहुंचा। उसने 'उज्झितक' को देखा। उसका क्रोध उभर आया। उसने उसे पकड़ कर खूब पीटा। तिल-तिल कर उसके मांस का छेदन कर उसे खिलाया और चौराह पर उसकी विडम्बना कर उसे मार डाला । मरकर वह नरक में गया । प्रस्तुत सूत्र में इस अध्ययन का नाम पूर्वभव के नाम के आधार पर 'गोवास' रखा गया और विपाक सूत्र में अगले भव के नाम के आधार पर उज्झितक रखा गया है। ३. अंड - पुरिमतालपुर में निन्नक नाम का एक व्यापारी रहता था। वह अनेक प्रकार के अंडों का व्यापार करता था। उसके पुरुष जंगल में जाते और अनेक प्रकार के अंडे चुरा ले आते थे। इस प्रकार निन्नक ने बहुत पाप संचित किए । मरकर वह नरक में गया। वहां से निकलकर वह चोरों के सरदार विजय की पत्नी खंड श्री के गर्भ में आया। नौ मास पूर्ण होने पर खंड श्री ने पुत्र का प्रसव किया। उसका नाम 'अभग्नसेन' रखा गया। युवा होने पर उसका विवाह आठ सुन्दर १. विवागसूर्य पृष्ठ राष्ट्रकूट - A royal officer who is the head of the province is the Governer. Jain Education International २. यहां 'गौ' शब्द सामान्य पशुवाची है । इसका अर्थ है - पशुओं को त्रास देनेवाला । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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