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________________ ठाणं (स्थान) १००३ स्थान १० : टि०४६ कन्याओं से किया। पिता की मृत्यु के पश्चात् वह चोरों का अधिपति हुआ। वह लूट-खसोट करने लगा। जनता त्राहि-त्राहि करने लगी। पुरिमताल की जनता अपने राजा महाबल के पास गई और सारी बात कही। राजा ने युक्ति से अभग्नसेन को पकड़वाया। उसके तिल-तिल मांस का छेदन कर उसे खिलाया और उसे उसी का रक्त पिलाकर उसकी कदर्थना की। वह मरकर नरक गया। प्रस्तुत सूत्र में अध्ययन का 'अंड' नाम पूर्वभव के व्यापार के आधार पर किया गया है और विपाक सूत्र में अग्रिमभव के नाम के आधार पर 'अभग्नसेन' रखा है। ४. शकट--शाखांजनी नगर में सुभद्रा नाम का सार्थवाह रहता था। उसकी भार्या का नाम भद्रा था। उसके पुत्र का नाम 'शकट' था। यूवा अवस्था में वह सूदर्शना नाम की गणिका में अनुरक्त हो गया। एक बार वहाँ के अमात्य सुषेण ने उसे वहां से भगा कर स्वयं सुदर्शना गणिका के साथ भोग भोगने लगा। एक बार शकट पुनः वहां आया और गणिका के साथ भोग भोगने लगा। अमात्य ने यह देखा। उसने गणिका और शकट को पकड़वा कर मरवा डाला। वह नरक में गया। ५. ब्राह्मण-प्राचीन काल में सर्वतोभद्र नाम का नगर था। वहां जितशत्र नाम का राजा राज्य करता था। उसके पुरोहित का नाम महेश्वरदत्त था। राजा ने अपने शत्रुओं पर विजय पाने के लिए यज्ञ प्रारम्भ किया। उस यज्ञ में अनेक ब्राह्मण नियुक्त किए गए। महेश्वरदत्त उसमें प्रमुख था । उस यज्ञ में प्रतिदिन चारों वर्ण का एक-एक लड़का, अष्टमी आदि में दो-दो लड़के, चातुर्मास में चार-चार छह मास में आठ-आठ और वर्ष में सोलह-सोलह तथा प्रतिपक्ष की सेना आने पर आठ सौ-आठ सौ लड़कों की बलि दी जाती थी। इस प्रकार का पाप-कर्म कर महेश्वरदत्त नरक में उत्पन्न हुआ। वहां से निकल कर वह कौशाम्बी नगरी में सोमदत्त पुरोहित की भार्या वसुदता के गर्भ में पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ। उसका नाम बृहस्पतिदत्त रखा। कुमार बृहस्पतिदत्त वहां से राजा उदयन का पुरोहित हआ। यह रनिवास में आने-जाने लगा। उसके लिए कोई प्रतिबन्ध नहीं था। एक बार राजा ने उसे पद्मावती रानी के साथ सहवास करते देख लिया। अत्यन्त क्रुद्ध होकर राजा ने उसे मरवा डाला। ६. नंदोषेण–प्राचीन काल में सिंहपुर नाम का नगर था। वहां सिंहरथ राजा राज्य करता था। दुर्योधन उसका काराध्यक्ष था। वह चोरों को बहुत कष्ट देता था और उन्हें विविध प्रकार की यातनाएं देता था। उस क्रूरता के कारण वह मरकर नरक में गया। वहां से निकल कर वह मथुरा नगरी के राजा श्रीदाम के यहां पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ। उसका नाम नदिषेण (नंदिवर्द्धन) रखा। एक बार उसने राजा को मारकर स्वयं राजा बनने का षडयंत्र रचा। षडयंत्र का पता लगने पर राजा ने उसे राजद्रोह के अपराध के कारण दंडित किया। राजा ने उसे पकड़वाकर नगर के प्रमुख चौराहे पर भेजा। वहां राजपुरुषों ने उसे गरम पिघले हुए लोहे से स्नान कराया; गरम सिंहासन पर उसे बिठाया और क्षारतेल से उसका अभिषेक किया और मरकर नरक में गया। ७. शौरिक...पुराने जमाने में नंदीपुर नाम का नगर था। वहां मित्र नाम का राजा राज्य करता था। उसके रसोइए का नाम श्रीक था। वह हिंसा में रत, मांसप्रिय और लोलुपी था। मरकर वह नरक में गया। वहां से निकलकर वह शौरिक नगर में शौरिकदत्त नाम का मछुआ हुआ। उसे मछलियों का मांस बहुत प्रिय था। एक बार उसके गले में मछली का कांटा अटक गया। उसे अतुल वेदना हुई। उस तीव्र वेदना में मरकर वह नरक में गया। विपाक सूत्र में यह आठवां अध्ययन है और सातवां अध्ययन है.---."उंबरदत्त' । ८. उंबरदत्त—प्राचीन काल में विजयपुर नगर में कनकरथ नाम का राजा राज्य करता था। उसके वैद्य का नाम धन्वन्तरी था। वह मांसप्रिय और मांस खाने का उपदेश देता था। मरकर वह नरक में गया। वहां से निकलकर वह पाडलीषण्ड नगर के सार्थवाह सागरदत्त के यहां पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ। उसका नाम उदुम्बर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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