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ठाणं (स्थान)
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स्थान १० : टि० ४५
आचारांग नियुक्ति में संज्ञा के चौदह प्रकार मिलते हैं१. आहार संज्ञा, २. भय संज्ञा, ३. परिग्रह संज्ञा, ४. मैथुन संज्ञा, ५. सुख-दुःख संज्ञा, ६. मोह संज्ञा, ७. विचिकित्सा संज्ञा, ८. क्रोध संज्ञा, ६. मान संज्ञा १०. माया संज्ञा, ११. लोभ संज्ञा, १२. शोक संज्ञा, १३. लोक संज्ञा, १४. धर्म संज्ञा ।
प्रस्तुत प्रसंग में कुछ मनोवैज्ञानिक तथ्य भी ज्ञातव्य हैं । मनोविज्ञान ने मानसिक प्रतिक्रियाओं के दो रूप माने हैंभाव (Feeling) और संवेग [Emotion].
भाव सरल और प्राथमिक मानसिक प्रतिक्रिया है। संवेग जटिल प्रतिक्रिया है।
भय, क्रोध, प्रेम, उल्लास, ह्रास, ईर्ष्या आदि को संवेग कहा जाता है। उसकी उत्पत्ति मनोवैज्ञानिक परिस्थिति में होती है और वह शारीरिक और मानसिक यंत्र को प्रभावित करता है।
संवेग के कारण बाह्य और आन्तरिक परिवर्तन होते हैं । बाह्य परिवर्तनों में ये तीन मुख्य हैं१. मुखाकृति अभिव्यंजन (Facial expression) २. स्वराभिव्यंजन (Vocal expression) ३. शारीरिक स्थिति (Bodily posture) आन्तरिक परिवर्तन१. श्वास की गति में परिवर्तन (Changes in respiration) २. हृदय की गति में परिवर्तन (Changes in hcart beat) ३. रक्तचाप में परिवर्तन (Changes in blood pressure) ४. पाचनक्रिया में परिवर्तन (Changes in gastro intestinal or digestvie function) ५. रक्त में रासायनिक परिवर्तन (Chemical Changes in blood)
६. त्वक प्रतिक्रियाओं तथा मानस-तरंगों में परिवर्तन (Changes in psychogalvanic responses and Brain waves)
७. ग्रन्थियों की क्रियाओं में परिवर्तन (Changes in the activities of the glands)
मनोविज्ञान के अनुसार संवेग का उद्गम स्थान हाइपोथेलेमस (Hypothalamus) माना जाता है। यह मस्तिष्क के मध्य भाग में होता है। यही संवेग का संचालन और नियन्त्रण करता है। यदि इसको काट दिया जाए तो सारे संवेग नष्ट हो जाते हैं।
भाव रागात्मक होता है । उसके दो प्रकार हैं-सुखद और दुःखद । उसकी उत्पत्ति के लिए बाह्य उत्तेजना आवश्यक नहीं होती।
४५. (सू० ११०)
दशा---यह शब्द दस से निष्पन्न हुआ है। जिसके ग्रन्थ में दस अध्ययन हैं उसे दशा कहा गया है। इसका अर्थ हैशास्त्र । प्रस्तुत सूत्र में दस दशाओं [दस अध्ययन वाले शास्त्रों का उल्लेख है और इसके अगले सूत्र में उनके अध्ययनों के नाम हैं।
१. कर्म विपाक दशा-ग्यारहवें अंग का प्रथम श्रुतस्कंध । इसमें अशुभ कर्मों के विपाक का प्रतिपादन है। २. उपासकदशा-यह सातवां अंग है । इसमें भगवान् महा दौर के प्रमुख दस उपासकों-श्रावकों का वर्णन है।
१. आचारांग नियुक्ति गाथा ३६ :
आहार भय परिगह मेहण सुखदख मोह वितिगिरुछा।
कोह माण माया लोहे सोगे लोगे य धम्मोहे ॥ २. स्थानांगबत्ति, पत्र ४८० : दशाधिकाराभिधायकत्वादृशाः...
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