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________________ ठाणं (स्थान) ७५ ८. शाश्वत अशाश्वत - द्रव्य के शाश्वत, अशाश्वत का विचार । ६. तथाज्ञान- द्रव्य का यथार्थ विचार | १०. अतथाज्ञान- द्रव्य का अयथार्थ विचार । १६. उत्पात पर्वत (सू० ४७ ) नीचे लोक से तिरछे लोक में आने के लिए चमर आदि भवनपति देव जहां से ऊर्ध्वगमन करते हैं उन्हें उत्पात पर्वत कहा जाता है। २०. अनन्तक ( सू० ६६) जिसका अन्त नहीं होता उसे अनन्त कहा जाता है। प्रस्तुत सूत्र में उसका अनेक संदर्भों में प्रयोग किया गया है। संदर्भ के साथ प्रत्येक शब्द का अर्थ भी आंशिक रूप में परिवर्तित हो जाता है। नाम और स्थापना के साथ अनन्त शब्द का प्रयोग किसी विशेष अर्थ का सूचक नहीं है। इनमें नामकरण और आरोपण की मुख्यता है, किन्तु 'अनन्त' के अर्थ की कोई मुख्यता नहीं है । वृत्तिकार ने नामकरण के विषय में एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। सामयिक भाषा ( आगमिक संकेत ) के अनुसार वस्त्र का नाम अनन्तक है ।' द्रव्य के साथ अनन्त का प्रयोग द्रव्यों की व्यक्तिश: अनन्तता का सूचक है। गणना के साथ अनन्त शब्द के प्रयोग का संबंध संख्या से है। जैन गणित में गणना के तीन प्रकार हैं-संख्यात, असंख्यात और अनन्त । संख्यात की गणना होती है । असंख्यात की गणना नहीं होती, पर वह सान्त होता है । अनन्त की न गणना होती है और न उसका अन्त होता है । प्रदेश के साथ अनन्त शब्द द्रव्य के अवयवों का निर्धारण करता है । जीव के प्रदेश असंख्य होते हैं । आकाश और अनन्तप्रदेशी पुद्गलस्कंधों के प्रदेश अनन्त होते हैं। एकतः और उभयतः इन दोनों के साथ अनन्त शब्द का प्रयोग काल-विस्तार को सूचित करता है । पांचवें स्थान (सूत्र - २१७) में वृत्तिकार ने एकत: अनन्तक का अर्थ - आयाम लक्षणात्मक अनन्त ( एक श्रेणीक क्षेत्र) और उभयतः अनन्त का अर्थ — आयाम और विस्तार लक्षणात्मक अनन्त ( प्रतर क्षेत्र ) किया है। ' तथा सूत्र की व्याख्या में एकत: अनन्तक का उदाहरण-अतीत या अनागत काल और उभयतः अनन्तक का उदाहरण – सर्वकाल दिया है। वस्तुतः इनमें कोई विरोध नहीं है । इनकी व्याख्या देश और काल – दोनों दृष्टियों से की जा सकती है । देशविस्तार और सर्वविस्तार के साथ अनन्त शब्द का प्रयोग दिग् और क्षेत्र के विस्तार को सूचित करता है। पांचवें स्थान में वृत्तिकार' ने देश विस्तार का अर्थ दिगात्मक विस्तार तथा प्रस्तुत सूत्र में उसका अर्थ एक आकाश प्रतर किया है। " इस प्रकार विभिन्न संदर्भों के साथ अनन्त शब्द विभिन्न अर्थों की सूचना देता है । यह अनन्त शब्द की निक्षेप पद्धति का एक उदाहरण है। १. स्थानांगवृत्ति, पत्र ३२९ : नामानन्तकं अतनष्कमिति यस्य नाम, यथा समयभाषया वस्त्रमिति । २. स्थानांगवृत्ति, पत्र ३२६ : एकत: - एकेनांशेनायामलक्षणेनानन्तकमेकतोऽनन्तकम् — एकश्रेणीक क्षेत्रं द्विधा - आयामविस्ताराभ्यामनन्तकं द्विधानन्तकं – प्रतरक्षेत्रम् । ३. स्थानांगवृत्ति, पत्र ४५६ एकतोऽनन्तकमतीताद्धा अनागताद्धा वा, द्विधाऽनन्तकं सर्वाद्धा । Jain Education International स्थान १० : टि०१६-२० ४. स्थानांगवृत्ति, पत्र ३२९ : क्षेत्रस्य यो रुचकापेक्षया पूर्वाधन्यतरदिग्लक्षणो देशस्तस्य विस्तारो - विष्कम्भस्तस्य प्रदेशापेक्षया अनन्तकं देशविस्तारानन्तकम् । ५. स्थानांगवृत्ति, पत्र ४५६ : देशविस्तारानन्तकं एक आकाशप्रतरः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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