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ठाणं (स्थान)
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स्थान १० : टि० १४
कोशल और दक्षिण कोशल । सरयू नदी पर बसी हई अयोध्या नगरी दक्षिण कोशल की राजधानी थी और राप्ती नदी पर बसी हुई श्रावस्ती नगरी उत्तर कोशल की राजधानी थी।
बौद्ध ग्रन्थों में यह माना गया है कि प्रसेनजित कोशल राजा बिम्बिसार से महापुण्य श्रेष्ठी धनंजय को साथ ले अपने नगर श्रावस्ती की ओर जा रहा था। उसकी इच्छा थी कि ऐसे पुण्यवान व्यक्ति को अपने नगर में बसाया जाए। जब वे श्रावस्ती से सात योजन दूर रहे तब संध्या का समय हो गया। वे वहीं रुक गए। धनंजय ने राजा प्रसेनजित से कहा- मैं नगर में बसना नहीं चाहता। यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं यहीं बस जाऊं।' राजा ने आज्ञा दे दी। धनंजय ने वहां नगर बसाया। वहां सायं ठहरा गया था, इसलिए उस नये नगर का नाम साकेत रखा गया। भरत और सगर ये दो चक्रवर्ती यहां से प्रत्नजित हुए।
६. हस्तिनापुर---यह कुरु जनपद की राजधानी थी। इसकी पहचान मेरठ जिले के मवाना तहसील में मेरठ से २२ मील उत्तर-पूर्व में स्थित हस्तिनापुर गांव से की गई है। इसका दूसरा नाम नागपुर था।
सनत्कुमार चक्रवर्ती तथा शांति, कुंथु और अर-ये तीन चक्रवर्ती तथा तीर्थकर यहां से प्रवजित हुए थे। देखें-उत्तराध्ययनः एक समीक्षात्मक अध्ययन, पृष्ठ ३७४।
७. कांपिल्य—यह पाञ्चाल जनपद की राजधानी थी। कन्निंघम ने इसकी पहचान उत्तर प्रदेश के फरुखाबाद जिले में फतेहगढ से २८ मील उत्तर-पूर्व, गंगा के समीप में स्थित 'कांपिल' से की है। कायमगंज रेलवे स्टेशन से यह केवल पांच मील दूर है। दसवें चक्रवर्ती हरिषेण यहां से प्रवजित हुए थे।
देखें-उत्तरध्ययनः एक समीक्षात्मक अध्ययन, पृष्ठ ३७३, ३७४ । ८. मिथिला-देखें उत्तराध्ययन एक समीक्षात्मक अध्ययन, पृष्ठ ३७१, ३७२, ३७३ ।
६. कौशाम्बी-यह वत्स जनपद की राजधानी थी। इसकी आधुनिक पहचान इलाहाबाद से दक्षिण-पश्चिम में स्थित 'कोसम' गांव से की है।
देखें उत्तराध्ययनः एक समीक्षात्मक अध्ययन, पृष्ठ ३७६, ३८०।
१०. राजगृह-यह मगध जनपद की राजधानी थी। महाभारत के सभापर्व में इसका नाम 'गिरिव्रज' भी दिया है। महाभारतकार तथा जैन ग्रन्थकार यहां पांच पर्वतों का उल्लेख करते हैं । किंतु उनके नामों में मतभेद है
महाभारत-वैहार [वैभार], वाहार, वृषभ, ऋषिगिरि, चैत्यक । वायुपुराण-वैभार, विपुल, रत्नकूट, गिरिव्रज, रत्नाचल । जैन--वैभार, विपुल, उदय, सुवर्ण, रत्नगिरि।
सम्भव है इन्हीं पर्वतों के कारण राजगृह को 'गिरिव्रज' कहा गया हो। जयधवला में उद्धृत श्लोकों तथा तिलोयपण्णत्ती में राजगृह का एक नाम 'पंचशैलपुर' और 'पंचशैलनगर मिलता है। उनमें कुछ पर्वतों के नाम भी भिन्न हैं
विपुल, ऋषि, वैभार, छिन्न और पांडु।'
वर्तमान में इसका नाम 'राजगिर' है। यह बिहार से लगभग १३-१४ मील दक्षिण में है। आवश्यक चूणि में यह वर्णन है कि पहले यहां क्षितिप्रतिष्ठित नाम का नगर था। उसके क्षीण होने पर जितशत्रु राजा ने इसी स्थान पर 'चनकपुर' नगर बसाया। तदनन्तर वहां ऋषभपुर नगर बसाया गया। बाद में 'कुशाग्रपुर' । इसके पूरे जल जाने के बाद श्रेणिक के पिता प्रसेनजित ने राजगृह नगर बसाया। भगवती २।११२, ११३ में राजगृह में उष्ण झरने का उल्लेख आता है और उसका नाम 'महातपोपतीरप्रभ' है। चीनी प्रवासी फाहियान और हयुयेन्सान ने अपनी डायरी में इन उष्ण झरनों को देखने का उल्लेख करते हैं । बौद्ध ग्रन्थों में इन उष्ण झरनों को 'तपोद' कहा है।
ग्यारहवें चक्रवर्ती 'जय' यहां से प्रवजित हुए थे।
१. धम्मपद, अट्टकथा । २. कषायपाहुड़ १, पृष्ठ ७३; तिलोयपण्णत्ती १।६४-६७ ।
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