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ठाणं (स्थान)
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स्थान १०: टि०१४
५. आपी (राप्ती ?)-राप्ती का उद्गम नेपाल राज्य के उत्तरी ऊंची पर्वतमाला से होता है। यह बरहज (?) के पास घाघरा नदी में जा मिलती है।
६. कोशी—इसके दो नाम और हैं-कौशिकी और सप्त-कौशिकी। सम्भव है, इसका नाम किसी ऋषिकन्या के आधार पर पड़ा हो। नेपाल के पूर्वी भाग में हिमालय से निकली हुई अनेक नदियों के योग से इसका निर्माण हुआ है। यह कुल ३०० मील लम्बी है, परन्तु भारत में केवल ८४ मील तक प्रवाहित होकर, कोलगांव से कुछ उत्तर में गंगा में जा मिलती है। यह नदी अपने वेग, बाढ़ और मार्ग बदलने के लिए प्रसिद्ध है।
७. मही—यह एक छोटी नदी है जो पटना के पास हाजीपुर में गंगा से मिलती है। गण्डक नदी भी वहीं गंगा में मिलती है।
८. शतद्रु-इसको 'सतलज' भी कहते हैं। यह नौ सौ मील लम्बी है। इसका उद्गम स्थल मानसरोवर है। यह अनेक धाराओं से मिलती हुई पीठनकोट के पास सिन्धु नदी में जा मिलती है।
वितस्ता-इसका वर्तमान नाम झेलम है। यह नदी कश्मीर घाटी के उत्तरपूर्व में सीमास्थित पहाड़ों से निकल कर उत्तर-पश्चिम की ओर प्रवाहित होती है। कई छोटी नदियों को साथ लिए, कश्मीर और पंजाब में बहती हुई, यह नदी झंग जिले में चिनाब नदी में जा मिलती है और उसके साथ सिन्धू में जा गिरती है। इसकी लम्बाई ४५० मील है।
१०. विपासा-इसे वर्तमान में व्यास कहते हैं। यह २६० मील लम्बी है और पंजाब की पांचों नदियों में सबसे छोटी है। यह कपूरथला की दक्षिण सीमा पर सतलज नदी में जा मिलती है। कहा जाता है कि व्यास की सुन्दर स्तुति सुनकर इस नदी ने सुदामा की सेना को रास्ता दिया था। अतः इसका नाम व्यास पड़ा।
११. ऐरावती—इसका प्राचीन नाम परुष्णी' भी था। वर्तमान में इसे 'रावी' कहते हैं। यह हिमालय के दक्षिण अञ्चल से निकलकर कश्मीर और पंजाब में बहती है। यह ४५० मील लम्बी है। यह सरायसिन्धू से कुछ ही आगे बढ़ने पर चिनाब नदी में जा मिलती है।
१२. चन्द्रभागा—इसको वर्तमान में 'चिनाब' कहते हैं। चन्द्रा और भागा-इन दो नदियों से मिलकर यह नदी बनी है। यह अनेक नदियों को अपने साथ मिलाती हुई मुल्तान की दक्षिणी सीमा पर सतलज नदी में जा मिलती है। इसकी लम्बाई लगभग ६०० मील है।
१४. (सू० २७)
१. चंपा-यह अंग जनपद की राजधानी थी। इसकी आधुनिक पहिचान भागलपुर से २४ मील दूर पर स्थित 'चम्पापुर' और चम्पानगर से की है।
देखें उत्तराध्ययनः एक समीक्षात्मक अध्ययन, पृष्ठ ३८०, ३५१।
२. मथुरा-यह सूरसेन देश की राजधानी थी। वर्तमान मथुरा के नैऋत्य कोण में पांच माइल पर बसे हुए महोली गांव से इसकी पहचान की गई है।
मद्रास प्रान्त में 'बैगई' नदी के किनारे बसे हुए गाँव को भी मथुरा कहा जाता था। वहां पांड्यराज की राजधानी थी। वर्तमान में जो 'मदुरा' नाम से प्रसिद्ध है, उसका प्राचीन नाम मथुरा था।
३. वाराणसी-यह काशी जनपद की राजधानी थी। नौवें चक्रवर्ती महापद्म यहाँ से प्रवजित हुए थे। देखें--उत्तराध्ययनः एक समीक्षात्मक अध्ययन, पृष्ठ ३७६, ३७७ । ४. श्रावस्ती-यह कुणाल जनपद की राजधानी थी। इसकी आधूनिक पहचान सहेर-महेर से की जाती है। तीसरे चक्रवर्ती 'मघवा' यहां से प्रवजित हुए थे। देखें-उत्तराध्ययनः एक समीक्षात्मक अध्ययन, पृष्ठ ३८४, ३८५। ५. साकेत-यह कोशल जनपद की राजधानी थी। प्राचीन काल में यह जनपद दो भागों में विभक्त था-उत्तर
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