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ठाणं (स्थान)
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स्थान १० : टि० १२-१३
अफ्रीका और पोलण्ड' तथा रोम एव चीन में उल्कादर्शन को अशुभ माना जाता है। इस्लाम धर्म में उल्का को भूत-पिशाच तथा दैत्य के रूप में माना गया है। अथर्ववेदसंहिता में भूकम्प, भूमि का फटना, उल्का, धूमकेतु, सूर्यग्रहण आदि को अशुभ माना है। ब्राह्मण ग्रन्थों में धूलि, मांस, अस्थि एवं रुधिर की वर्षा, आकाश में गन्धर्व-नगरों का दर्शन अशुभ के द्योतक माने
बाल्मीकि रामायण में रुधिरवृष्टि को अत्यन्त अशुभ माना गया है।
इसी प्रकार उत्तरवर्ती संस्कृत काव्यों में भूप्रकम्पन, उल्कापात, रुधिरवृष्टि, करकवृष्टि, दिग्दाह, महावात, वज्रपात, धूलिवर्षा आदि-आदि को अशुभ माना गया है।
लगता है, इन लौकिक मान्यताओं के आधार पर अस्वाध्यायिक की मान्यता का प्रचलन हुआ है। अस्वाध्यायिक के विशेष विवरण के लिए देखें• व्यवहार भाष्य ७।२६६-३२० ।
निशीथभाष्य गाथा ६०७४-६१७६ ।
• आवश्यकनियुक्ति गाथा १३६५-१३७५ । १२. (सू० २४)
देखें-दसवेआलियं ८।१५ के टिप्पण ।
१३. (सू० २५)
प्रस्तुत सूत्र में गंगा-सिंधू में मिलने वाली दस नदियों के नामोल्लेख हैं। प्रथम पांच गंगा में और शेष पांच सिंधू में मिलने वाली नदियां हैं। उनका परिचय इस प्रकार है----
१. गंगा-इसका उद्गम स्थल हिमालय में गंगोत्री है। यह १५२० मील लम्बी है। यह पश्चिमोत्तर बिहार और बंगाल में बहती हुई बंगाल की खाड़ी में जा मिलती है।
२. सिंधू-इसका उद्गम-स्थल कैलाश पर्वत का उत्तरीय अंचल है। इसकी लम्बाई १८०० मील है और यह भारत के पश्चिम-उत्तर और पश्चिम-दक्षिण में बहती हुई अरब समुद्र में जा मिलती है। प्राचीन समय में यह नदी जिन क्षेत्रों से होकर बहती थी उसे सप्तसिन्धु कहते थे क्योंकि इसमें उस समय छह अन्य नदियां मिलती थीं। उनमें शतद्र आदि पांच नदियां तथा छठी नदी सरस्वती थी।
३. यमुना-यह गंगा में मिलने वाली सबसे लम्बी नदी है। उद्गम से संगम तक इसकी लम्बाई ८६० मील है। इसका उद्गम हिमालय के यमुनोत्री से हुआ है। यह प्रायः विन्ध्य क्षेत्र के पार्वत्य प्रान्तों की उत्तरी सीमा तथा संयुक्त प्रान्त के उपजाऊ मैदानों में बहती हुई इलाहाबाद (प्रयाग) के पास गंगा में जा मिलती है। इसका जल स्वच्छ तथा कुछ हरा है।
४. सरयू-इसे घाघरा, घग्घर भी कहते हैं। यह ६०० मील लम्बी है और छपरे से १४ मील पूर्व गंगा में जा मिलती है।
1. The Golden Bough, Part 3, Page, 65-66. 2. Encyclopedia of Religion and Ethics,
Vol. X, Page 371. 3. The Golden Bough, Part 3, Page 53. ४. अथर्ववेद-संहिता १९९८ ।
५. षट्विंशब्राह्मण प्रपाठक ५, खंड ८ । ६. (क) बाल्मीकि रामायण, अरण्यकाण्ड २३१
तस्मिन् याते जनस्थानादशिवं शोणितोदकम् ।
अभ्यवर्षन् महामेघस्तुमुलो गर्दभारुणः ।। (ख) वही, युद्धकांड ३५२२५, २६; ५१।३३, ५७।३८%
६६।४१; १०८२१ ।
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