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ठाणं (स्थान)
स्थान १०: टि०११
में स्वाध्याय का निषेध है किन्तु जो स्वाभाविक होते हैं उनमें स्वाध्याय का वर्जन नहीं होता। अमुक गर्जन आदि देवकृत हैं अथवा स्वाभाविक इसका निर्णय नहीं किया जा सकता। इसलिए स्वाभाविक गर्जन आदि में भी स्वाध्याय आदि का वर्जन किया जाता है।
इसी प्रकार सूर्य के अस्त होने पर (एक मुहर्त तक), आधी रात में सूर्योदय से एक मुहर्त पूर्व और मध्यान्ह में भी स्वाध्याय वजित है।
चैत्र की पूर्णिमा, आषाढ़ की पूर्णिमा, आसोज की पूर्णिमा और कार्तिक की पूर्णिमा तथा उनके साथ आने वाली प्रतिपदा को भी स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। क्योंकि इन चार तिथियों में बड़े उत्सवों का आयोजन होता है। साथ-साथ जिस देश में जो-जो महान उत्सव जितने दिन तक होते हैं, उतने दिनों तक स्वाध्याय का वर्जन करना चाहिए। जिस उत्सव में अनेक प्राणियों का वध होता हो, उस महोत्सब के आरम्भ से लेकर पूर्ण होने तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए।
४. व्युद्ग्रह-दो राजा परस्पर लड़ते हों, दो सेनापति लड़ते हों, मल्लयुद्ध होता हो, दो ग्रामों के बीच कलह होता हो, अथवा लोग परस्पर लड़ते हों-मारपीट करते हों तथा रजःपर्व [होली जैसे पर्व ] के दिनों में भी स्वाध्याय का वर्जन करना चाहिए।
राजा की मृत्यु के पश्चात् जब तक दूसरे राजा का अभिषेक नहीं हो जाए, तब तक स्वाध्याय का वर्जन करना चाहिए। क्योंकि लोगों के मन में, विशेषतः राजवर्गीय लोगों के मन में यह विचार उत्पन्न हो सकता है कि आज हम तो विपत्ति से गुजर रहे है और ये पठन-पाठन कर रहे हैं। राजा की मृत्यु का इन्हें शोक नहीं है।
इन सभी व्युद्ग्रहों में, जितने काल तक व्युद्ग्रह रहे उतने दिन तक, तथा व्युद्ग्रह के उपशान्त होने पर एक अहोरात्र तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए।
ग्राम का स्वामी, ग्राम का प्रधान, बहुपरिवार वाले व्यक्ति अथवा शय्यातर की मृत्यु होने पर [अपने उपाश्रय से यदि सात घर के भीतर हों तो] एक अहोरात्र तक अस्वाध्यायिक रहता है। ऐसी वेला में स्वाध्याय आदि करने पर लोगों में गर्हा होती है, अप्रीति होती है।
५. शरीर सम्बन्धी-शारीरिक अस्वाध्याय के दो प्रकार हैं--(१) मनुष्य सम्बन्धी, (२) तिर्यञ्च सम्बन्धी।
मनुष्य या तिर्यञ्च का कलेवर, रुधिर आदि पड़ा हो तो स्वाध्याय का वर्जन करना चाहिए। कुछ विशेष
प्रकृति में अनेक प्रकार की विचित्र घटनाएं घटित होती हैं। इन घटनाओं की अद्भुतता तथा ग्रह, उपग्रह और नक्षत्रों में होने वाले अस्वाभाविक परिवर्तनों को शुभ-अशुभ मानने की प्रवृत्ति समूचे संसार में रही है। इसके साथ-साथ विभिन्न प्रकार की वृष्टियों, आकाशगत अनेक दृश्यों एवं बिजली से सम्बन्धित घटनाओं से भी शुभ-अशुभ की कल्पनाएं होती हैं।
ग्रीस तथा रोम में भूकम्प, रक्तवर्षा, पाषाणवर्षा तथा दुग्धवर्षा को अत्यन्त अशुभ माना गया है। जापान में भूकम्प, बाढ़ तथा आंधी को युद्ध का सूचक माना जाता रहा है। बेबीलोन में वर्ष के प्रथम मास में नगर पर धूलि का गिरना तथा भूकम्प अशुभ माने जाते हैं। ईरान में मेघ गर्जन, बिजली की चमक तथा धूलि मेघों को अशुभ माना जाता है। दक्षिण पूर्वी अफ्रीका में अशनिवृष्टि, करकावृष्टि को अशुभ का द्योतक माना जाता रहा है।
इङ्गलैण्ड के देहातों में कड़क के साथ बिजली का चमकना ग्राम के प्रमुख व्यक्ति की मृत्यु का सूचक माना जाता है।
1. Dictionary of Greek and Roman anti
quities, Page, 417. 2. Encyclopedia of Religion and Ethics, Vol.
4, Page 806. 3. The Book of the Zodiac, page 119.
4. The wild Rue, Pages 99-100. 5. The History of the Mankind, Vol. I
Page 56. 6. Encylopedia of Superstitions, Page 196.
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