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ठाणं (स्थान)
स्थान २: सूत्र १६५-१६६
१६५. तसकाए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा- त्रसकायः द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- १६५. नसकाय दो प्रकार के हैंभवसिद्धिए चेव, भवसिद्धिकश्चैव,
भवसिद्धिक-मुक्ति के लिए योग्य। अभवसिद्धिए चेव। अभवसिद्धिकश्चैव।
अभवसिद्धिक-मुक्ति के लिए अयोग्य । १६६. थावरकाए दुविहे पण्णत्ते, तं स्थावरकायः द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- १६६. स्थावरकाय दो प्रकार के हैंजहा-भवसिद्धिए चेव, भवसिद्धिकश्चैव,
भवसिद्धिक और अभवसिद्धिए चेव। अभवसिद्धिकश्चैव।
अभवसिद्धिक।
करें।
दिसादुगे करणिज्ज-पदं दिशाद्विके करणीय-पदम्
दिशाद्विक में करणीय-पद १६७. दो दिसाओ अभिगिझ कप्पति द्वे दिशे अभिगृह्य कल्पते निर्ग्रन्थानां १६७. निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियां पूर्व और उत्तर
णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा वा निर्ग्रन्थीनां वा प्रव्राजयितुम्-- इन दो दिशाओं की ओर मुंह कर प्रव्रजित पवावित्तए
प्राचीनाञ्चैव, पाईणं चेव, उदीणं चेव। उदीचीनाञ्चैव। १६८. 'दो दिसाओ अभिगिज्झ कप्पति द्वे दिशे अभिगृह्य कल्पते निर्ग्रन्थानां १६८. निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियां पूर्व और उत्तर णिग्गंथाणं वा णिग्गंथीण वा- वा निर्ग्रन्थीनां वा
इन दो दिशाओं की ओर मुंह करमुंडावित्तए सिक्खावित्तए मुण्डयितुं शिक्षयितुं उपस्थापयितुं मुंडित करें,शिक्षा दें,महाव्रतों में आरोपित उवट्ठावित्तए संभुंजित्तए संभोजयितुं संवासयितुं स्वाध्यायमुद्देष्टुं करें,भोजन-मंडली में सम्मिलित करें, संवासित्तए सज्झायमुद्दिसित्तए स्वाध्यायं समुद्देष्टुं स्वाध्यायं अनुज्ञातुं
संस्तारक-मंडली में सम्मिलित करें, सज्झायं समुद्दिसित्तए आलोचयितुं प्रतिक्रमितुं निन्दितुं गर्हितुं
स्वाध्याय का उद्देश दें, स्वाध्याय का सज्झायमणुजाणित्तए आलोइत्तए व्यतिवर्तयितुं विशोधयितुं अकरणतया समुद्देश दें, स्वाध्याय की अनुज्ञा दें, पडिक्कमित्तए णिदित्तए गरहित्तए अभ्युत्थातुं यथार्ह प्रायश्चित्तं तपःकर्म आलोचना करें, प्रतिक्रमण करें, विउट्टित्तए विसोहित्तए प्रतिपत्तुम्
निदा करें, गर्दा करें, व्यतिवर्तन करें, अकरणयाए अब्भुत्तिए प्राचीनाञ्चैव, उदीचीनाञ्चैव । विशोधि करें, सावद्य-प्रवृत्ति न करने के अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म
लिए उठे, यथायोग्य प्रायश्चित्त रूप तपः पडिवज्जित्तए
कर्म स्वीकार करें। *पाईणं चेव, उदीणं चेव । १६६. दो दिसाम्रो अभिगिझ कप्पति द्वे दिशे अभिगृह्य कल्पते निर्ग्रन्थानां १६६. जो निम्रन्थ और निर्ग्रन्थियां अपश्चिम
णिग्गंधाण वा णिग्गंथीण वा वा निर्ग्रन्थीनां वा अपश्चिम- मारणान्तिक-संलेखना की आराधना से अपच्छिम-मारणंतियसलेहणा- मारणान्तिकसंलेखना-जोषणा
युक्त हैं, जो भक्त-पान का प्रत्याख्यान जूसणा-जूसिवाणं भत्तपाणपडिया- जूषितानां भक्तपानप्रत्याख्यातानां कर चुके हैं, जो प्रायोपगत अनशन से इक्खिताणं पाओवगताणं कालं प्रायोपगतानां कालं अनवकाङ्क्षतां युक्त हैं, जो मरणकाल की आकांक्षा नहीं अणवकखमाणाणं विहरित्तए, तं विहर्तु, तद्यथा
करते हुए विहर रहे हैं, वे पूर्व और उत्तर जहा -- पाईणं चेव, उदीणं चेव। प्राचीनाञ्चैव उदीचीनाञ्चैव । इन दो दिशाओं की ओर मुंह कर रहें।
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