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________________ ठाणं (स्थान) १५८. चउरदियाणं दो सरीरा पण्णत्ता, तं जहा - अभंतरए चेव, बाहिरए चैव । अन्तरगे कम्मए, अट्ठिमंससोणितबद्धे बाहिरए ओरालिए ।° १५६. पंचिदियति रिक्खजोणियाणं दो सरीरगा पण्णत्ता, तं जहाअन्तरए चेव, बाहिरए चेव । अभंतरगे कम्मए, असिसोणियव्हारु छिराबद्धे बाहिरए ओरालिए । १६०. "मनुस्साणं दो सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा - अभंतरए चेव, बाहिरए चेव । अभंतर कम्मए, असिसोणियहरु छिराबद्धे बाहिरए ओरालिए । १६१. विग्गहगइसमावण्णगाणं णेरइयाणं दो सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा-तेयए चेव, कम्मए चैव । निरंतरं जाव वेमाणियाणं । १६२. रइयाणं दोहि ठार्णोह सरीरु प्पत्ती सिया, तं जहारागेण चेव, दोसेण चैव जाव वेमाणियाणं । १६३. रइयाणं सरीरगे पण्णत्ते, तं जहारागव्वित्तिए चेव, दोस व्विति चेव जाव वेमाणियाणं । दुट्ठाणणिव्वत्तिए काय-पदं १६४. दो काया पण्णत्ता, तं जहातसकाए चेव, थावरकाए चेव । Jain Education International ५६ चतुरिन्द्रियाणां द्वे शरीरे प्रज्ञप्ते, तद्यथा—आभ्यन्तरकञ्चैव, बाह्यकञ्चैव । काय-पदम् द्वौ काय प्रज्ञप्तौ तद्यथा— सकायश्चैव, स्थावर कायश्चैव । स्थान २ : सूत्र १५८-१६४ १५८. चार इन्द्रिय वाले जीवों के दो शरीर होते हैं आभ्यन्तरक कर्मक, अस्थिमांसशोणितबद्धं बाह्यकं औदारिकम् । पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां द्वे शरीरके प्रज्ञप्ते, तद्यथा आभ्यन्तरकञ्चैव, बाह्यकञ्चैव । आभ्यन्तरकं कर्मकं, अस्थिमांसशोणितस्नायुशिराबद्धं बाह्यकं श्रदारिकम् । मनुष्याणां द्वे शरीरके प्रज्ञप्ते, तद्यथा - १६०. मनुष्यों के दो शरीर होते हैंआभ्यन्तरकञ्चैव, आभ्यन्तर शरीर — कर्मक | बाह्यकञ्चैव । बाह्य शरीर-हाड, मांस, रक्त, स्नायु और शिरायुक्त औदारिक। आभ्यन्तरकं कर्मकं, अस्थिमांसशोणितस्नायुशिराबद्धं बाह्यकं औदारिकम् । विग्रहगतिसमापन्नानां नैरयिकाणां शरीर प्रज्ञप्ते, तद्यथातैजसञ्चैव, कर्मकञ्चैव । निरन्तरं यावत् वैमानिकानाम् । नैरयिकाणां द्वाभ्यां स्थानाभ्यां शरीरोत्पत्तिः स्यात्, तद्यथारागेण चैव दोषेण चैव १६१. विग्रहगति" समापन्न नैरयिकों तथा वैमानिक पर्यंत सभी दण्डकों के जीवों के दो-दो शरीर होते हैंतैजस और कर्मक | १६२. नैरयिकों तथा वैमानिक पर्यंत सभी rushi के जीवों के दो-दो स्थानों से शरीर की उत्पत्ति ( आरम्भ मात्र) होती हैराग से और द्वेष से । यावत् वैमानिकानाम् । नैरयिकाणां द्विस्थाननिर्वर्तितं शरीरकं १६३. नैरयिकों तथा वैमानिक पर्यंत सभी प्रज्ञप्तम्, तद्यथा— रागनिर्वर्तितञ्चैव दण्डकों के जीवों के दो-दो स्थानों से शरीर की निष्पत्ति (पूर्णता ) होती है दोषनिर्वर्तितञ्चैव राग से और द्वेष से । यावत् वैमानिकानाम् । For Private & Personal Use Only आभ्यन्तर शरीर - कर्मक | बाह्य शरीर - हाड, मांस और रक्तयुक्त औदारिक । १५६. पांच इन्द्रिय वाले तिर्यञ्चों के दो शरीर होते हैं आभ्यन्तर शरीर – कर्मक | बाह्य शरीर-हाड, मांस, रक्त, स्नायु और शिरायुक्त औदारिक । " काय-पद १६४. काय दो प्रकार के हैं - तसकाय और स्थावरकाय । www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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