________________
ठाणं (स्थान)
९६७
स्थान १० : टि० ११
५. श्मशानसामन्त-शवस्थान के समीप अस्वाध्यायिक होता है। ६-७. चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहण-चन्द्र ग्रहण में जघन्यतः आठ प्रहर और उत्कृष्टतः बारह प्रहर तक अस्वाध्यायिक रहता है। सूर्यग्रहण में जघन्यतः बारह प्रहर और उत्कृष्टतः सोलह प्रहर तक अस्वाध्यायिक रहता है। इनका विस्तार इस प्रकार है
१. जिस रात्री में चन्द्रग्रहण होता है उसी रात्री के चार प्रहर और दूसरे दिन के चार प्रहर-इस प्रकार जघन्यतः आठ प्रहर का अस्वाध्यायिक होता है। यदि प्रातःकाल में चन्द्रग्रहण होता है और चन्द्रग्रहण-काल में अस्त हो जाता है तो उस दिन के चार प्रहर, उस रात के चार प्रहर और दूसरे दिन के चार प्रहर-इस प्रकार बारह प्रहर होते हैं।
२. यदि सूर्य ग्रहण-काल में ही अस्त होता है तो उस रात्री के चार प्रहर, चार दूसरे दिन के और चार प्रहर उस रात्री के इस प्रकार जघन्यतः बारह प्रहर होते हैं।
___ यदि सूर्य-ग्रहण प्रातःकाल ही प्रारम्भ हो जाता है तो उस दिन-रात के चार-चार प्रहर तथा दूसरे दिन-रात के चारचार प्रहर-इस प्रकार उत्कृष्टत: १६ प्रहर होते हैं।
कई यह मानते हैं कि सूर्य-ग्रहण जिस दिन होता है वह दिन और रात अस्वाध्याय-काल है तथा चन्द्रग्रहण जिस रात में होता है और उसी रात में समाप्त हो जाता है, तो वह रात और जब तक दूसरा चन्द्र उदित नहीं हो जाता तब तक अस्वाध्याय काल है।
व्यवहार भाष्य में चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण को सदैव अस्वाध्याय । (अन्तरिक्ष अस्वाध्याय) में गिनाया है। स्थानांग सूत्र में वे औदारिक वर्ग में गृहीत हैं । वृत्तिकार ने बताया है कि ये यद्यपि अन्तरिक्ष से संबंधित हैं फिर भी इनके विमान पृथिवीकायिक होने के कारण इन्हें औदारिक माना है।
अन्तरिक्ष वर्ग में उक्त उल्का आदि आकस्मिक होते हैं और चन्द्र आदि के विमान शाश्वत होते हैं। इस विलक्षणता के कारण ही उन्हें दो भिन्न वर्गों में रखा गया है। किन्तु पाठ का अवलोकन करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि आन्तरिक्ष वर्ग वाले सूत्र में दस की संख्या पूर्ण हो जाती है, अतः चन्द्रोपराग और सूर्योपराग भी औदारिकता को ध्यान में रखकर उनका समावेश औदारिक वर्ग में किया गया।
८. पतन----राजा, अमात्य, सेनापति, ग्रामभोगिक आदि विशिष्ट व्यक्तियों का मरण।
दंडिक के मर जाने पर, जब तक क्षोभ नहीं मिट जाता तबतक अस्वाध्यायिक रहता है। दूसरे दण्डिक की नियुक्ति हो जाने पर भी एक अहोरात्र तक अस्वाध्याय-काल रहता है। इसी प्रकार दूसरे-दूसरे विशिष्ट व्यक्तियों के मर जाने पर भी एक अहोरात्र का अस्वाध्याय काल जानना चाहिए।
६. राज-व्युद्ग्रह-राजा आदि के परस्पर विग्रह हो जाने पर जब तक विग्रह उपशान्त नहीं होता तब तक अस्वाघ्याय-काल रहता है।
वृत्तिकार ने सेनापति, ग्राममहत्तर, प्रसिद्ध स्त्री-पुरुष आदि के परस्पर कलह हो जाने पर भी अस्वाध्याय-काल माना है।'
व्यवहार भाष्य के वृत्तिकार ने यह भी बताया है कि जब दो ग्रामों के बीच परस्पर वैमनस्य हो जाने पर नवयुवक अपने-अपने ग्राम का पक्ष लेकर पथराव करते हैं अथवा हाथापाई करते हैं, तब स्वाध्याय नहीं करना चाहिए तथा मल्लयुद्ध आदि प्रवर्तित होते समय भी अस्वाध्याय-काल रहता है। व्युद्ग्रह के प्रारंभ से लेकर उपशान्त न होने तक अस्वाध्याय-काल है। जब सारा वातावरण भयमुक्त हो जाता है तब भी एक अहोरात्र तक अस्वाध्याय-काल रहता है।"
१. व्यवहारभाष्य, सप्तमभाग वृत्ति पत्र ४६,५०। २. वही, वृत्तिपन ५०। ३. स्थानांगवृत्ति, पत्र ४५२ ।।
४. वही, पन ४५२ । ५. व्यवहारभाष्य, सप्तमभाग, पन ५१ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org