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ठाणं (स्थान)
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स्थान १० : टि०११
४. विद्युत्-बिजली का चमकना ।
५. निर्घात-बादलों से आच्छादित या अनाच्छादित आकाश में व्यन्तरकृत महान् गर्जन की ध्वनि । यहां गजित और विद्युत् की भांति निर्धात भी स्वाभाविक पौद्गलिक परिणति होना चाहिए। इस आधार पर इसका अर्थ होगा--- प्रचण्ड शब्द युक्त वायु।
६. यूपक-इसका अर्थ है-चन्द्र-प्रभा और सन्ध्या-प्रभा का मिश्रण। व्यवहारभाष्य में इसका अर्थ संध्याच्छेदावरण [संध्या के विभाग का आवरण] किया है।'
इसकी भावना यह है कि शुक्ल पक्ष की द्वितीया, तृतीया और चतुर्थी को चन्द्रमा संध्यागत होता है इसलिए संध्या का यथार्थ ज्ञान नहीं हो पाता । फलतः रात्रि में स्वाध्याय-काल का ग्रहण नहीं किया जा सकता। अतः उस समय कालिक सूत्रों का अस्वाध्यायिक रहता है।
कई आचार्यों का अभिमत है कि शुक्लपक्ष की प्रतिपदा, द्वितीया और तृतीया-इन तीन तिथियों में, सूर्य के उदय और अस्त के समय, ताम्रवर्ण जैसे लाल और कृष्णश्याम अमोघ मोघा [आकाश में प्रलम्ब श्वेत श्रेणियां होते हैं, उन्हें यूपक कहा जाता है। कुछ आचार्य इसमें अस्वाध्यायिक नहीं मानते और कुछ मानते हैं। जो मानते हैं उनके अनुसार यूपक में दो प्रहर तक अस्वाध्यायिक रहता है।"
७. यक्षादिप्त--स्थानांगवृत्ति में इसका अर्थ स्पष्ट नहीं है। व्यवहार भाष्य की वृत्ति के अनुसार इसका अर्थ हैकिसी एक दिशा में कभी-कभी दिखाई देने वाला विद्युत् जैसा प्रकाश।
८. धूमिका-यह महिका का ही एक भेद है। इसका वर्ण धूम की तरह काला होता है। ६. महिका-तुषारापात, कुहासा। ये दोनों [धूमिका और महिका] कार्तिक आदि गर्भ मासों [कार्तिक, मृगशिर, पौष और माघ] में गिरती हैं। १०. रज उद्घात स्वाभाविक रूप से चारों ओर धल का गिरना।
प्रस्तुत स्थान के इक्कीसवें सूत्र में औदारिक अस्वाध्याय के दस भेद बतलाए हैं। उनमें प्रथम तीन-अस्थि, मांस और रक्त की विचारणा द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से इस प्रकार की है।
(१) द्रव्य से-अस्थि, मांस और शोणित । क्वचित्, चर्म, अस्थि, मांस और शोणित । (२) क्षेत्र से—मनुष्य संबंधी हो तो सौ हाथ और तिर्यञ्च सम्बन्धी हो तो साठ हाथ । (३) काल से-मनुष्य सम्बन्धी-मृत्यु का एक अहोरात्र । लड़की उत्पन्न हो तो आठ दिन । लड़का उत्पन्न हो तो सात दिन। हड्डियां यदि सौ हाथ के भीतर स्थित हों तो मनुष्य की मृत्यु दिन से लेकर बारह वर्षों तक । यदि हड्डियां चिता में दग्ध या वर्षा से प्रवाहित हों तो अस्वाध्यायिक नहीं होता। यदि हड्डियां भूमि से खोदी गई हों तो अस्वाध्यायिक होता है। तिर्यञ्च सम्बन्धी हो तो जन्म-काल से तीसरे प्रहर तक । यदि बिल्ली चहे आदि का घात करती हो तो एक अहोरात्र तक अस्वाध्यायिक रहता है।
(४) भाव से-नंदी आदि सूत्रों के अध्ययन का वर्जन। ४. अशुचिसामन्त-रक्त, मूत्र और मल की गन्ध आती हो और वे प्रत्यक्ष दीखते हों तो अस्वाध्यायिक होती है।
१. स्थानांगवृत्ति, पत्न ४५१ : निर्घात:-साधे निरभ्रे वा गगने
व्यन्तरकृतो महाजितध्वनिः । २. स्थानांगवृत्ति, पन ४५१ : संध्या प्रभा चन्द्रप्रभा च यद् युगपद्
भवतस्तत् जुयगोत्ति भणितम् । ३. व्यवहारभाष्य ७।२८६ ।
संज्झाच्छेयोवरणो उ जुवतो......।
४. स्थानांगवृत्ति, पत्न ४५१ । ५. व्यवहारभाष्य ७।२८६, वृत्तिपत्र ४६ । ६. व्यवहारभाष्य ७।२८४ वृत्ति पन ४६ : यक्षालिप्तं नाम
एकस्यांदिशि अन्तरान्तरा यद् दृश्यते विद्युत् सदृशः प्रकाशः । ७. व्यवहारभाष्य ७।२७८ वृत्ति पत्र ४८ : गर्भमासो नाम काति
कादि यावत् माघमासः ।
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