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________________ भगवई श.८ : उ. ३ : सू. २१९,२२१ पूइयनिंबारग सेण्हा, पोदकी निम्बारकः श्लक्ष्णकः, तह सीसवा य असणे य। तथा शिंशपाः चाशनं च। पुण्णाग नागरुक्खे, पुन्नागः नागरुक्षः, सीवण्णि तहा असोगे य॥३॥ श्रीपर्णी तथा अशोकश्च॥३॥ जे यावण्णे तहप्पगारा। एएसि णं ये यावदन्ये तथाप्रकाशः। एतेषां मूलान्यपि मूला वि असंखेज्जजीविया, कंदा वि असंख्येयजीवितानि, कन्दाः स्कन्धाः खंधा वि तया वि साला वि पवाला वि। अपि त्वक् अपि, साला अपि प्रवालाः पत्ता पत्तेय-जीविया। पुप्फा अणेग- अपि। पत्राणि प्रत्येकजीवितानि। फलानि जीविया। फला एगट्ठिया। सेत्तं एकास्थिकानि। तत एतत् एकास्थिकाः। एगट्टिया॥ ये तथा इस प्रकार के अन्य असंख्येय जीविक वृक्ष एक अस्थिवाले हैं। इनके मूल भी असंख्येय जीव वाले हैं। स्कंध, त्वचा, शाखा और प्रवाल भी असंख्येय जीव वाले हैं। पत्र प्रत्येक जीव वाले हैं। पुष्प अनेक जीव वाले हैं। फल एक अस्थिवाले हैं। ये हैं-एक अस्थि वाले वृक्ष। २२०. से किं तं बहुबीयगा? अथ किं तत् बहुबीजकाः ? बहुबीयगा अणेगविहा पण्णत्ता, बहुबीजकाः अनेकविधाः प्रज्ञप्ताः, तं जहा तयथाअत्थिय तिंदु कविढे, अस्थिकतिन्दुक कपित्था, अंबाडग माउलिंग बिल्ले य। आम्रातक मातुलिंगबिल्वाश्च। आमलग फणस दाडिम, आमलकपनसदाडिमाः, आसोत्थे उंबर वडे य॥१॥ अश्वत्थः उदुम्बरः वटश्च॥१॥ नग्गोह नंदिरुक्खे, न्यग्रोधः नन्दिरुक्षः पिप्परि सयरी पिलुक्खरुक्खे य। पिप्पली शतावरी प्लक्षरूक्षश्च । काउंबरी कुत्थंभरि, काकोदुम्बरिका कुस्तुम्भरी, बोधव्वा देवदाली य॥२॥ बोधव्या देवदाली च॥२॥ तिलए लउए छत्तोह, तिलकः लकुचः छत्रौघः, सिरीसे सत्तिवण्ण दहिवण्णे। शिरीषः सप्तपर्णः दधिपर्णः। लोद्ध धव चंदणज्जुण, लोधः धवः चन्दनार्जुनौ, नीमे कुडए कयंबे य॥३॥ नीमः कुटजः कदम्बश्च॥३॥ जे यावण्णे तहप्पगारा। एएसिणं ये चान्ये तथाप्रकारः। एतेषां मूलान्यपि मूला वि असंखेज्जजीविया, कंदा वि असंख्येयजीवितानि, कन्दाः अपि खंधा वि तया वि साला वि पवाला वि। स्कन्धाः अपि त्वक अपि साला अपि पत्ता पत्तेयजीविया। पुप्फा अणेग- प्रवालाः अपि। पत्राणि प्रत्येकजीवितानि। जीविया। पुष्पाणि अनेकजीवितानि। फलानि फला बहुबीयगा। सेत्तं बहुबीयगा। सेत्तं बहुबीजकानि। तत् एतत् बहुबीजकाः। तत् असंखेज्जजीविया॥ एतत् असंख्येयजीविताः। २२०. बहुबीज वाले वृक्ष कौनसे हैं? बहुबीज वाले वृक्ष अनेक प्रकार के प्राप्त हैं, जैसेहडसंधारी-हृडजोड़ी, तेंदु-आबनूस, कैथ, आमड़ा, विजौरा, बेल, आंवला. कटहल्ल, अनार, पीपल, गूलर, बड़, खेजड़ी, तून, पीपर, शतावरी, पाकर, कटूमर, धनिया, धधर बेल, तिलिया, बडहर, गुण्डतृण, सिरस, छतिवन, कैथ, लोध, धौं, चंदन, अर्जुन, नीम, धाराकदम्ब, कुड़ा-कदम। ये तथा इस प्रकार के अन्य असंख्येय जीविक बहुबीज वाले हैं। इनके मूल भी असंख्येय जीव वाले हैं। कंद, स्कंध, त्वचा, शाखा और प्रवाल भी असंख्येय जीव वाले हैं। पत्र प्रत्येक जीव वाले हैं। पुष्प अनेक जीव वाले हैं। फल बहुबीज वाले हैं। ये वृक्ष बहुबीज वाले जीव हैं। ये हैं असंख्येय जीव वाले वृक्ष। २२१.से किं तं अणंतजीविया? अथ किं तत अनन्तजीविताः ? २२१. अनंत जीव वाले वृक्ष कौनसे हैं? अणंतजीविया अणेगविहा पण्णत्ता, तं अनन्तजीविताः अनेकविधाः प्रज्ञप्ताः, अनंत जीव वाले वृक्ष अनेक प्रकार के प्रज्ञप्त जहा-आलुए, मूलए, सिंगबेरे-एवं तद्यथा-आलुकः. मूलकः, शृंगबेरम्-एवं हैं, जैसे-आलू, मूली, अदरक, इसी प्रकार जहा-सत्तमसए जाव सिउंढी, मुसुंढी। यथा-सप्तमशते यावत् सिउण्ढी, मुषुण्ढी। सातवे शतक (भगवती ७/६६) में यावत् जे यावण्णे तहप्पगारा। सेत्तं ये चान्ये तथाप्रकारः। तत् एतत् योहर, काली मुसली। ये तथा इस प्रकार अणंतजीविया॥ अनन्तजीविताः। के अन्य अनंत जीव वाले वृक्ष हैं। ये हैं भाष्य अनंत जीव वाले वृक्ष। १. सूत्र २१६-२२१ ही उद्धृत है, ऐसा संक्षिप्त पाठ के अध्ययन से प्रतीत होता है। प्रस्तुत वनस्पति का प्रकरण प्रस्तुत आगम के अतिरिक्त प्रज्ञापना, आलापक के विवरण के लिए देखें वनस्पति कोष।' उत्तराध्ययन और जीवाजीवाभिगम में उपलब्ध है। प्रज्ञापना में यह शब्द विमर्श विषय विस्तार से वर्णित है। प्रस्तुत आगम में यह प्रकरण प्रज्ञापना से एकास्थिक-जिस फल में एक बीज होता है, वह एकास्थिक १. भ. वृ.८/१६-२१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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