SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श. ८ : उ. ३ : सू. २२१ ७८ भगवई कहलाता है। अस्थि का अर्थ बीज अथवा गुठली हैं। प्रस्तुत आगम में वनस्पति के संख्येयजीविक, असंख्येयजीविक बहुबीजक-जिस फल में बहुत बीज होते हैं, वह बहबीजक अथवा और अनंतजीविक-ये तीन भेद किए गए हैं। प्रज्ञापना, जीवाजीवाभिगम अनेकास्थिक कहलाता है। और उत्तराध्ययन में वनस्पति के मुख्य भेद दो किए गए हैं-प्रत्येक दशवैकालिक में बहुबीजक के अर्थ में बहु अठियं का प्रयोग शरीरी और साधारण शरीरी। देखें तालिकामिलता है। (भगवती ८/२१६-२२१) वनस्पति संख्येयजीविक वृक्ष असंख्येयजीविक वृक्ष अनंतजीविक वृक्ष एक अस्थि वाले बहुबीज वाले (प्रज्ञापना १/३३-४७) वनस्पति प्रत्येक वनस्पति साधारण वनस्पति साधारण वनस्पति १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० ११ १२ वृक्ष गुच्छ गुल्म लता वल्ली पर्वज तृण वलय हरित औषधि जलरुह कुहण एक अस्थि वाले बहुबीज वाले (उत्तराध्ययन ३६/९३-९९) वनस्पति प्रत्येक वनस्पति साधारण वनस्पति वृक्ष गुच्छ गुल्म लता पर्वज कुहुण जलरुह औषधि हरित वल्ली तृण लता-वलय (जीवाजीवाभिगम १/६८-७२) वनस्पति प्रत्येक वनस्पति साधारण वनस्पति वृक्ष गुच्छ गुल्म लंता वल्ली पर्वज तृण वलय हरित औषधि जलरुह कुहण बहबीज वाले एक अस्थि वाले १. दसवे. ५३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy