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भगवई
श.८: उ. ३ : सू. २२२,२२३
जीविक
वाले
गूलर,
भगवती
प्रज्ञापना
जीवाजीवाभिगम |संख्येय
संख्यय | असंख्येय जीविक
असंख्येय जीविक संख्येयजीविक वृक्ष
असंख्येयजीविक वृक्ष जीविक एक अस्थिवाले बहुबीज वाले एक अस्थि बहुबीज वलय एक अस्थि बहुबीज वलय
वाले वनस्पति वाले वाले वनस्पति ताल, तमाल, अरणी नीम, आम, जामुन, हडसंधारी, हड़जोड़ी नीम हड़संधारी ताल- | नीम, आम | हड़संधारी ततली, साल, कोसम, साल ढेरा तेंदू, आबनूस, कैथ, आम हड़जोड़ी तमाल | जामुन, हड़जोड़ी प्रज्ञापनावत् सालकल्याण | अंकोल, पीलू, लिसोड़ा, आमड़ा, बिजौरा, यावत् यावत् अरणी | कोसम | तेंदू, चीड़,जावित्री,केवड़ा, सलइ, शाल्मली. बेल, आंवला, कायफल कुड़ा | यावत् | साल, कंदली, भोजपत्र, काली तुलसी, मौलसिरी, कटहल, अनार, अशोक |कदम | खजूर | ढेरा, अखरोट, हींग, ढाक, कंटक, करंज पीपल, गुलर बड़
नारियल अंकोल, आंवला, लवंग, सुपारी, | जियापोता, रीठा, बेहड़ा | खेजरी, तून, पीपर, भगवती भगवती भगवती | पीलू, | कटहल, खजूर, नारियल, | हरड़, मिलावा, कायविडंग| शतावरी, पाकर, |सूत्रवत् सूत्रवत् सूत्रवत् | लिसोड़ा, | अनार, गंभीरी, धाय कठूमर, धनिया,
खेजड़ी, चिरौजी, पोई घघरबेल, तिलिया,
प्रज्ञापनावत् कठूमर, महानीम-वकायन, बड़हर, गुण्डतृण
जायफल, तिलिया, निर्मली, सीसम, सिरस, घतिवन
सेहुंड, |
बड़हर विजयसार, जायफल, कैथ, लौय धौं,
कायफल, लोध, धौं सुलतान, चंपा, सेहुंड चंदन, अर्जुन,
अशोक कायफल, अशोक। धाराकदंब,
कुडाकदम
अनंतजीविक वनस्पति के लिए देखें भगवई ७/६६ का भाष्य। जीवपएसाणं-अंतर-पदं जीवप्रदेशानाम्-अन्तर-पदम्
जीव प्रदेशों का अन्तर-पद २२२. अह भंते! कुम्मे, कुम्मा-वलिया, अथ भदन्त ! कूर्मः, कूर्मावलिका, गोधा, २२२. 'भंते! कछुआ, कच्छुए की गोहा, गोहावलिया, गोणा, गोणा- गोधावलिका, गोणा, गोणावलिका, आवलिका, गोह, गोह की आवलिका, वलिया, मणुस्से मणुस्सावलिया, मनुष्यः, मनुष्यावलिका, महिषः, बैल, बैल की आवलिका, मनुष्य, मनुष्य महिसे, महिसा-वलिया-एएसि णं दुहा महिषावलिका-एतेषां द्विधा वा त्रिधा वा की आवलिका, भैंसा, भैंसे की वा तिहा वा संखेज्जहा वा छिन्नाणं जे संख्येयधा वा छिन्नानां ये अन्तरा ते अपि तैः आवलिका-इन जीवों के शरीर के दो, अंतरा ते विणं तेहिं जीवपएसेहिं फुडा? जीवप्रदेशः स्पृष्टाः ?
तीन अथवा संख्येय खण्डों में छिन्न हो जाने पर जो अंतराल होता है. क्या वह
उन जीव-प्रदेशों से स्पृष्ट होता है? हंता फुडा॥ हन्त! स्पृष्टाः।
हां, स्पृष्ट होता है।
२२३. पुरिसे णं भंते! अंतरे हत्थेण वा पुरुषः भदन्त ! अन्तरं हस्तेन वा पादेन वा पादेण वा अंगुलियाए वा सलागाए वा अंगुलिकया वा शलाकया वा काष्ठेन वा कटेण वा किलिंचेण वा आमुसमाणे वा किलिंचेन वा आमृशन् वा संमृशन् वा संमुसमाणे वा आलिहमाणे वा आलिखन् वा विलिखन् वा अन्यतरेण वा विलिहमाणे वा अण्णयरेण वा तिक्खेणं तीक्ष्णेण शस्त्रजातेन आछिन्दन् वा सत्थजाएणं आछिंदमाणे वा विछिंदमाणे विछिन्दन् वा अग्निकायेन वा समदह्यमानः वा, अगणिकाएण वा समोडहमाणे तेसिं तेषां जीवप्रदेशानां किंचित् आबाधां वा जीवपएसाणं किंचि आबाहं वा विबाहं विबाधां वा उत्पादयति? छविच्छेदं वा वा उप्पाएइ? छविच्छेद वा करेइ?
करोति?
२२३. भंते! कोई पुरुष जीव के छिन्न अवयवों के अंतराल का हाथ, पैर अथवा अंगुली से तथा शलाका, काष्ठ अथवा खपाची से स्पर्श, संस्पर्श आलेखन, विलेखन करता है अथवा किसी अन्य तीखे शस्त्र से उसका आच्छेदन विच्छेदन करता है अथवा अग्नि से उसको जलाता है। क्या ऐसा करता हुआ वह उन जीव-प्रदेशों के लिए किञ्चित् आबाधा अथवा विशिष्ट बाधा उत्पन्न
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