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श.८ : उ. २ : सू. २०८-२१४
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भगवई
नाणपज्जव-पदं २०८. केवतिया णं भंते! आभिणिबोहियनाणपज्जवा पण्णत्ता? गोयमा! अणंता आभिणिबोहिया नाणपज्जवा पण्णत्ता।
ज्ञानपर्यव-पदम् कियन्तः भदन्त! आभिनिबोधिकज्ञानपर्यवाः प्रज्ञप्ताः? गौतम! अनन्ताः आभिनिबोधिकज्ञानपर्यवाः प्रज्ञप्ताः।
ज्ञानपर्यव-पद २०८. 'भंते! आभिनिबोधिकज्ञान के पर्यव कितने प्रज्ञप्त हैं? गौतम! आभिनिबोधिकज्ञान के पर्यव अनन्त हैं।
२०९. भंते ! श्रुतज्ञान के पर्यव कितने प्रज्ञप्त
२०९. केवतिया णं भंते! सुयनाण- कियन्तः भदन्त ! श्रुतज्ञानपर्यवाः प्रज्ञसाः? पज्जवा पण्णत्ता? एवं चेव॥
एवं चैव।
गौतम ! श्रुतज्ञान के पर्यव अनन्त प्रज्ञप्त हैं।
२१०. एवं जाव केवलनाणस्स। एवं मइअण्णाणस्स सुयअण्णाणस्स॥
एवं यावत् केवलज्ञानस्य। एवं मतिः अज्ञानस्य, श्रुत-अज्ञानस्य।
२१०. इसी प्रकार अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान, केवलज्ञान तथा मति अज्ञान और श्रुत अज्ञान के पर्यव भी अनन्त प्रज्ञप्त हैं।
२११. केवतिया ण भंते! विभंगनाण- कियन्तः भदन्त! विभंगज्ञानपर्यवाः २११. भंते! विभंगज्ञान के पर्यव कितने पज्जवा पण्णत्ता? प्रज्ञप्साः?
प्रज्ञप्त है? गोयमा! अणंता विभंगनाणपज्जवा गौतम! अनन्ताः विभंगज्ञानपर्यवाः गौतम ! विभंगज्ञान के पर्यव अनन्त प्रज्ञप्त पण्णत्ता।
प्रज्ञताः ।
ज्ञान पर्यवों का अल्प बहुत्व-पद २१२. भंते ! इन आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुत
ज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञान के पर्यवों में कौन किससे अल्प, बहु, तुल्य अथवा विशेषाधिक है?
नाणपज्जवाणं अप्पाबइयत्त-पदं ज्ञानपर्यवाणाम् अल्पबहुकत्व-पदम् २१२. एतेसि णं भंते! आभिणि- एतेषां भदन्त! आभिनिबोधिकज्ञानबोहियनाणपज्जवाणं, सुयनाण-पज्ज- पर्यवाणां, श्रुतज्ञानपर्यवाणां, अवधिज्ञान- वाणं, ओहि-नाणपज्जवाणं, केवलन- पर्यवाणां, मनःपर्यवज्ञानपर्यवाणां, केवलगणपज्जवाण य कयरे कयरेहितो अप्पा ज्ञानपर्यवाणां च कतरे कतरेभ्यः अल्पाः वा? बहया वा? तुल्ला वा? वा? बहकाः वा? तुल्याः वा? विसेसाहिया वा?
विशेषाधिकाः वा? गोयमा! सव्वत्थोवा मणपज्जवनाण- गौतम! सर्वस्तोकाः मनःपर्यवज्ञानपर्यवाः, पज्जवा, ओहिनाणपज्जवा अणंतगुणा, अवधिज्ञानपर्यवाः अनन्तगुणाः, श्रुतज्ञानसुयनाणपज्जवा अणंतगुणा, आभिणि- पर्यवाः अनन्तगुणाः, आभिनिबोधिकबोहियनाण-पज्जवा अणंतगुणा, ज्ञानपर्यवाः अनन्तगुणाः, केवलज्ञानपर्यवाः केवलनाण-पज्जवा अणंतगुणा॥ अनन्तगुणाः।
गौतम! मनःपर्यवज्ञान के पर्यव सबसे अल्प हैं। अवधिज्ञान के पर्यव उससे अनंतगुण हैं। श्रुतज्ञान के पर्यव उससे अनंतगुण, आभिनिबोधिकज्ञान के पर्यव उनसे अनंत- गुण, केवलज्ञान के पर्यव उनसे अनन्तगुण हैं।
२१३. भंते! इन मति अज्ञान, श्रुतअज्ञान
और विभंगज्ञान के पर्यवों में कौन किससे अल्प, बहु, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं?
२१३. एएसि णं भंते! मइअण्णाणपज्ज- एतेषां भदन्त ! मति-अज्ञानपर्यवाणां, श्रुत- वाणं, सुयअण्णाणपज्जवाणं, विभंग- अज्ञानपर्यवाणां, विभंगज्ञानपर्यवाणां च नाणपज्जवाण य कयरे कयरेहिंतो कतरे कतरेभ्यः, अल्पाः वा ? बहुकाः वा? अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? तुल्याः वा ? विशेषाधिकाः वा? विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा विभंगनाण- गौतम! सर्वस्तोकाः विभंगज्ञानपर्यवाः, पज्जवा, सुयअण्णाणपज्जवा अणंत- श्रुत-अज्ञानपर्यवाः अनन्तगुणाः, मति- गुणा, मइ-अण्णाणपज्जवा अणंतगुणा॥ अज्ञान-पर्यवाः अनन्तगुणाः।
गौतम ! विभंगज्ञान के पर्यव सबसे अल्प हैं। श्रुत अज्ञान के पर्यव उनसे अनंतगुण, मति अज्ञान के पर्यव उनसे अनंतगुण हैं।
२१४. एएसि णं भंते! आभिणि- एतेषां भदन्त ! आभिनिबोधिकज्ञानपर्यवाणां बोहियनाणपज्जवाणं जाव केवल-नाण- यावत् केवलज्ञानपर्यवाणाम् मति-
२१४. भंते! इन मतिज्ञान पर्यवों यावत् केवलज्ञान के पर्यवों तथा मति अज्ञान,
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