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श. ८ : उ. २ : सू. २०४,२०५
द्रव्य
ऋजुमति
मनोवर्गणा के
मनः पर्यव अनंत अनंत ज्ञानी
प्रदेशी स्कंधों को जानतादेखता है
विपुल मति उन स्कंधों को मनः पर्यव अधिकतर विपुलज्ञानी तर, विशुद्धतर उज्ज्वलतर रूप में
जानता देखता है।
आभिनिबोधिक ज्ञान, श्रुतज्ञान अवधिज्ञान
मनः पर्यवज्ञान
कवलज्ञान
मति अज्ञान श्रुत अज्ञान
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ऋजुमति विपुलमति मनः पर्यवज्ञान में अंतर क्षेत्र
काल
नीचे की ओर इस रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊर्ध्ववर्ती क्षुल्लक प्रतर से अधस्तन क्षुल्लक प्रतर तक, ऊपर की ओर ज्योतिष्चक्र के ऊपरी तल तक, तिरछे भाग में मनुष्य क्षेत्र के भीतर अढ़ाई द्वीप समुद्र तक, पंद्रह कर्म भूमि तीस अकर्म भूमि और छप्पन अंतद्वीपों में वर्तमान पर्याप्त समनस्क पंचेन्द्रिय जीवों के मनोगत भावों को जानता देखता है।
उस क्षेत्र से अढ़ाई अंगुल अधिकतर विपुलतर, विशुद्धतर, उज्ज्वलतर क्षेत्र को जानता देखता है।
सादि सपर्यवसित
पांच ज्ञान और तीन अज्ञान की जघन्य उत्कृष्ट स्थिति
जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्न
सादि सपर्यवसित
सादि सपर्यवसित
सादि अपर्यवसित
विभंग ज्ञान
नाणी अप्पाबहुयत्त-पदं २०५ एतेसि णं भंते! जीवाणं आभिणिबोहियनाणीणं, सुयना-णीणं, ओहिनाणीण मणपज्जव नाणीणं केवलनाणीण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा ? विसेसाहिया वा ?
गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा मणपज्जवनाणी, ओहिनाणी असंखेज्ज
अनादि अपर्यवसित
अभव्य की अपेक्षा ।
अनादि सपर्यवसित
भव्य की अपेक्षा।
सादि सपर्यवसित
प्रतिपाति सम्यक्त्व की अपेक्षा । सादि सपर्यवसित
जघन्यतः पल्योपम के असंख्यातवें भाग को. उत्कृष्टतः पल्योपम के असंख्यातवें भाग अतीत और भविष्य को जानता देखता है।
उस काल अधिकतर,
खंड को उन भावों को अधिकतर, विपुलतर, विपुलतर, विशुद्धतर, उज्ज्वलतर विशुद्धतर. उज्ज्वलतर जानता देखता है जानता देखता है।
एक समय
एक समय
सादि सपर्यवसित की अपेक्षा
अंतर्मुहूर्त
एक समय
ज्ञानिनाम् अल्पबहुकत्व-पदम् एतेषां भदन्त ! जीवानाम् आभिनिबोधिकज्ञानिनां श्रुतज्ञानिनाम्, अवधिज्ञानिनां, मनः पर्यवज्ञानिनां केवलज्ञानिनां च कतरे कतरेभ्यः अल्पाः वा? बहुकाः वा? तुल्याः वा ? विशेषाधिकाः वा?
गौतम! सर्वस्तोकाः जीवाः मनः पर्यवज्ञानिनः, अवधिज्ञानिनः असंख्येयगुणाः,
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भाव
अनंत भावों को ही जानतादेखता है। सब भावों के अनंतवें भाग को ही जानतादेखता है।
उत्कृष्ट स्थिति
कुछ अधिक छासठ सागरोपम
भगवई
कुछ अधिक छासठ सागरोपम
देशोन पूर्वकोटि
सादि सपर्यवसित की
अपेक्षा अनंत काल
अनंत उत्सर्पिणी
अवसर्पिणी
देशोन पूर्व कोटि अधिक तैतीस सागरोपम
ज्ञानी का अल्प बहुत्व- पद २०५. भंते! इन आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी अवधिज्ञानी, मनः पर्यवज्ञानी, केवलज्ञानी जीवों में कौन किससे अल्प, बहु, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं?
गौतम! मनः पर्यवज्ञानी जीव सबसे अल्प, अवधिज्ञानी उनसे असंख्येय गुण अधिक,
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