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________________ श. ८ : उ.२: सू. १७१-१७४ भगवई १७१. तस्स अलद्धियाणं पुच्छा। तस्य अलब्धिकानां पृच्छा। १७१. जिह्वेन्द्रिय के अलब्धिकों की गोयमा! नाणी वि, अण्णाणी वि। जे गौतम! ज्ञानिनोऽपि, अज्ञानिनोऽपि। ये । नाणी ते नियमा एगनाणी-केवलनाणी। ज्ञानिनः ते नियमात् एकज्ञानिनः-केवल- जे अण्णाणी ते नियमा दुअण्णाणी, तं ज्ञानिनः। ये अज्ञानिनः ते नियमात् द्विजहा- मइअण्णाणी य सुयअण्णाणी य। अज्ञानिनः, तद्यथा-मति-अज्ञानिनश्च फासिंदिय-लन्द्रीया अलब्द्धीया य जहा श्रुत-अज्ञानिनश्च। स्पर्शनेन्द्रियलब्धिकाः इंदिय-लद्धिया अलद्धिया य॥ अलब्धिकाश्च यथा इन्द्रियलब्धिकाः अलब्धिकाश्च। गौतम ! जिह्वेन्द्रिय के अलब्धिक ज्ञानी भी हैं, अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी हैं, वे नियमतः एक ज्ञान वाले-केवलज्ञानी है। जो अज्ञानी हैं, वे नियमतः दो अज्ञान वाले हैं, जैसे–मति अज्ञानी और श्रुत अज्ञानी। स्पर्शनन्द्रिय के लब्धिकों और अलब्धिकों की वक्तव्यता इन्द्रिय के लब्धिकों और अलब्धिकों के समान है। भाष्य १.सूत्र १७१ जिह्वा की अलब्धि वाले जीव दो प्रकार के होते हैं केवली और एकेन्द्रिय।' उवउत्ताणं नाणि-अण्णाणित्त-पदं उपयुक्तानां ज्ञानि-अज्ञानित्व-पदम१७२. सागारोवउत्ता णं भंते! जीवा किं साकारोपयुक्ताः भदन्त! जीवाः किं नाणी? अण्णाणी? ज्ञानिनः? अज्ञानिनः? पंच नाणाई, तिण्णि अण्णाणाई- पञ्च ज्ञानानि, त्रीणि अज्ञानानि-भजनया। भयणाए। जीवों का ज्ञानित्व और अज्ञानित्व-पद १७२. भंते ! साकारोपयुक्त जीव क्या ज्ञानी हैं? अज्ञानी हैं? गौतम! साकारोपयुक्त जीवों के पांच ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना है। १७३. आभिणिबोहियनाणसागारो-वउत्ता आभिनिबोधिक ज्ञानसाकारोपयुक्ताः णं भंते? भदन्त? चत्तारि नाणाई भयणाए। एवं चत्वारि ज्ञानानि भजनया। एवं श्रुतज्ञानसुयनाणसागारोवउत्ता वि। ओहि- साकारोपयुक्ताः अपि। अवधिज्ञाननाणसागारोवउत्ता जहा ओहि. साकारोपयुक्ताः यथा अवधिज्ञाननाणलद्धिया। मणपज्जवनाण- लब्धिकाः। मनःपर्यवज्ञानसाकारोपयुक्ताः सागारोवउत्ता जहा मणपज्जव- यथा मनः- पर्यवज्ञानलब्धिकाः। केवलज्ञाननाणलद्धीया। केवलनाणसागारो-वउत्ता साकारोपयुक्ताः यथा केवलज्ञानलब्धिकाः। जहा केवलनाणलद्धीया। मति-अज्ञानसाकारोपयुक्तानां त्रीणि मइअण्णाणसागारोवउत्ताणं तिणि अज्ञानानि भजनया। एवं श्रुत-अज्ञानअण्णाणाई भयणाए। एवं सुय- साकारोपयुक्ताः अपि। विभंगज्ञानअण्णाणसागारोवउत्ता वि। विभंग- साकारोपयुक्तानां त्रीणि अज्ञानानि नाणसागारोव-उत्ताणं तिण्णि अण्णाणाई नियमात!। नियमा॥ १७३. भंते! आभिनिबोधिकज्ञान साका रोपयुक्त जीव क्या ज्ञानी हैं? अज्ञानी हैं? गौतम ! आभिनिबोधिकज्ञान साकारोपयुक्त जीवों के चार ज्ञान की भजना है। इसी प्रकार श्रुतज्ञान साकारोपयुक्त जीवों की वक्तव्यता। अवधिज्ञान साकारोपयुक्त जीवों की वक्तव्यता अवधिज्ञान लब्धिकों के समान है। मनःपर्यवज्ञान साकारोपयुक्त जीवों की वक्तव्यता मनःपर्यवज्ञानलब्धिकों के समान है। केवलज्ञान साकारोपयुक्त जीवों की वक्तव्यता केवलज्ञान लब्धिकों के समान है। मतिअज्ञान साकारोपयुक्त जीवों के तीन अज्ञान की भजना है। इसी प्रकार श्रुतअज्ञान साकारोपयुक्त जीवों की वक्तव्यता। विभंगज्ञान साकारोपयुक्त जीवों के नियमतः तीन अज्ञान होते हैं। १७४. अणागारोवउत्ता णं भंते ! जीवा किं अनाकारोपयुक्ताः भदन्त! जीवाः किं नाणी? अण्णाणी? ज्ञानिनः? अज्ञानिनः? पंच नाणाई, तिण्णि अण्णाणाई- पञ्च ज्ञानानि, त्रीणि अज्ञानानि-भजनया। भयणाए। एवं चक्खुदंसणअचक्खु. एवं चक्षुर्दर्शन-अचक्षुर्दर्शनानाकारोपयुक्ताः १. भ. वृ. ८/१७०-१७१-ते च केवलिन एकेन्द्रियाश्च। १७४. भंते ! अनाकारोपयुक्त जीव क्या ज्ञानी हैं ? अज्ञानी हैं? गौतम! अनाकारोपयुक्त जीवों के पांच ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना है। इसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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