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________________ भगवई १. सूत्र १६५ सिद्ध दान की लब्धि से शून्य होते हैं। दान के अलब्धि वालों में एक ही ज्ञान केवलज्ञान होता है। बाल वीर्य लब्धि वाले असंयमी होते हैं। वे सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि- दोनों प्रकार के होते हैं। सम्यग्दृष्टि में तीन ज्ञान और मिथ्यादृष्टि में तीन अज्ञान की भजना है। पण्डित वीर्य की अलब्धि वाले तीन प्रकार के जीव होते हैं इंदियं पडुच्च१६६. इंदियलद्रिया णं भंते! जीवा किं नाणी ? अण्णाणी ? गोयमा ! चत्तारि नाणाई, तिण्णि य अण्णाणाई - भयणाए । १६७. तस्स अलद्रियाणं पुच्छा । गोयमा ! नाणी, नो अण्णाणी । नियमा एगनाणी - केवलनाणी ॥ १६८. सोइंदियलद्भिया णं जहा इंदियलदिया ॥ १६९. तस्स अलद्रियाणं पुच्छा । गोयमा ! नाणी वि, अण्णाणी वि । जे नाणी ते अत्थेगतिया दुण्णाणी, अत्थेगतिया एगनाणी । जे दुण्णाणी ते आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी । जे एगनाणी ते केवल नाणी । जे अण्णाणी ते नियमा दुअण्णाणी, तं जहा - मइअण्णाणी य सुयअण्णाणी य । चक्खिदिय - घाणिंदियाणं लद्धीया अलीया य जहेव सोइंदियस्स ॥ १७०. जिब्भिदियलद्रियाणं चत्तारि नाणाई तिष्णि य अण्णाणाई- भयणाए । १. सूत्र १६६-१६८ केवली में इन्द्रिय का उपयोग नहीं होता इसलिए इन्द्रिय लब्धि वाले जीवों में केवलज्ञान को वर्ज कर शेष चार ज्ञान तथा तीन अज्ञान की भजना है। श्रोत्रेन्द्रिय की अलब्धि वाले जीव ज्ञानी और अज्ञानी दोनों प्रकार के होते हैं। Jain Education International ५५ भाष्य इन्द्रियं प्रतीत्यइन्द्रियलब्धिकाः भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः ? अज्ञानिनः ? गौतम चत्वारि ज्ञानानि त्रीणि च अज्ञानानि - भजनया । असंयत, संयतासंयत और सिद्ध असंयत में तीन ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना । संयताऽसंयत में तीन ज्ञान की भजना | सिद्धों में एक ज्ञान - केवलज्ञान । मनः पर्यवज्ञान पंडित वीर्य लब्धि वालों के ही होता है। इसलिए पंडित वीर्य के अलब्धि वालों में उसकी वर्जना की गई है। तस्य अलब्धिकानां पृच्छा । गौतम! ज्ञानिनः, नो अज्ञानिनः । नियमात् एकज्ञानिनः - केवलज्ञानिनः । १. भ. वृ. ८. १६५ - तस्स अलद्धियाणं ति असंयतानां संयतासंयतानां सिद्धानां चेत्यर्थः तत्रासंग्रतानामाद्यं ज्ञानत्रयमज्ञानत्रयं च भजनया, संयतासंयतानां बाल पण्डित वीर्य के लब्धि वाले संयतासंयत होते हैं। उनमें तीन ज्ञान की भजना है। श्रोत्रेन्द्रियलब्धिकाः यथा इन्द्रियलब्धिकाः । भाष्य होते हैं। तस्य अलब्धिकानां पृच्छा। गौतम! ज्ञानिनोऽपि, अज्ञानिनोऽपि। ये ज्ञानिनः ते अस्त्येकके द्वि-ज्ञानिनः, अस्त्येकके एकज्ञानिनः । ये द्वि-ज्ञानिनः ते आभिनिबोधिकज्ञानिनः, श्रुतज्ञानिनः । ये एकज्ञानिनः ते केवलज्ञानिनः । ये अज्ञानिनः ते नियमात् द्वि अज्ञानिनः, तद्यथा-मतिअज्ञानिनश्च श्रुत- अज्ञानिनश्च । चक्षुरिन्द्रिय- घ्राणेन्द्रिययोः लब्धिकाः अलब्धिकाश्च यथैव श्रोत्रेन्द्रियस्य । श. ८ : उ. २ : सू. १६६-१७० जिह्वेन्द्रियाणां चत्वारि ज्ञानानि त्रीणि च अज्ञानानि - भजनया । इन्द्रिय की अपेक्षा १६६. भंते! इन्द्रियलब्धि वाले जीव क्या ज्ञानी हैं ? अज्ञानी हैं ? गौतम ! चार ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना है। ज्ञानी- १. केवलज्ञानी-एक ज्ञान - केवल ज्ञान । २. विकलेन्द्रिय ( द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय) अपर्याप्तक अवस्था में सास्वादन सम्यग-दर्शनी होते हैं इसलिए उनमें द्विज्ञानी हैं- मतिज्ञानी और श्रुतज्ञानी । अज्ञानी- अज्ञानी में दो अज्ञान मति अज्ञान और श्रुत अज्ञान For Private & Personal Use Only १६७. इन्द्रिय के अलब्धिकों की पृच्छा । गौतम! ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं हैं। नियमतः एक ज्ञान - केवलज्ञान वाले हैं। १६८. श्रोत्रेन्द्रियलब्धि वालों की वक्तव्यता इन्द्रियलब्धि वालों की भांति ज्ञातव्य है । १६९. श्रोत्रेन्द्रिय के अलब्धिकों की पृच्छा । गौतम! वे ज्ञानी भी हैं अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी हैं उनमें कुछेक दो ज्ञान वाले हैं, कुछेक एक ज्ञान वाले हैं। जो दो ज्ञान वाले हैं, वे आभिनिबोधिकज्ञानी और श्रुतज्ञानी हैं। जो एक ज्ञान वाले हैं, वे केवलज्ञानी हैं। जो अज्ञानी हैं, वे नियमतः दो अज्ञान वाले हैं, जैसे-मति अज्ञानी और श्रुत अज्ञानी । चक्षुरिन्द्रिय और घ्राणेन्द्रिय वाले जीवों के लब्धिकों और अलब्धिकों की वक्तव्यता श्रोत्रेन्द्रिय की भांति वक्तव्य है। १७०. जिह्वेन्द्रियलब्धि वालों के चार ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना है। तु ज्ञानत्रयं भजनयैव भवति, सिद्धानां तु केवलज्ञानमेव, मनः पर्यायज्ञानं तु पण्डितवीर्यलब्धिमतामेव भवति नान्येषाम् । www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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