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श. ८ : उ. २ : सू. १६३-१६५
भजना है।
सामायिक चरित्र लब्धि वाले जीवों में चार ज्ञान की भजना है । केवलज्ञान यथाख्यात चरित्र वालों में ही होता है इसलिए सामायिक चरित्र में उसका वर्जन है।
सामायिक चरित्र के अलब्धि वाले जीव छेदोपस्थापनीय
चरित्ताचरितं पडुच्च१६३. चरित्ताचरित्तलद्धिया णं भंते! जीवा किं नाणी ? अण्णाणी ? गोयमा ! नाणी, नो अण्णाणी । अत्थेगतिया दुण्णाणी, अत्थेगतिया तिण्णाणी । जे दुण्णाणी ते अभिणिबोहियनाणी य सुयनाणी य। जे तिण्णाणी ते आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी, ओहिनाणी ।
तस्स अलद्रियाणं पंच नाणाई, तिण्णि अण्णाणाई - भयणाए ॥
दाणाई पडुच्च
१६४. दाणलद्धियाणं पंच नाणाई, तिण्णि अण्णाणाई - भयणाए ।
१६५. तस्स अलद्धीयाणं पुच्छा ।
गोयमा ! नाणी, नो अण्णाणी । नियमा एगनाणी - केवलनाणी । एवं जाव वीरियस्स लदीया अलीया य भाणियव्वा ।
बालाइवीरियं पडुच्चबालवीरियलद्धियाणं तिण्णि नाणाई, तिण्णि अण्णाणाई - भयणाए । तस्स अलद्धियाणं पंच नाणाई भयणाए । पंडियवीरियलद्रियाणं पंच नाणाई भयणाए । तस्स अलब्द्धीयाणं मणपज्जवनाणवज्जाई नाणाई, अण्णाणाणि य भयणाए । बालपंडियवी रियलद्धियाणं तिण्णि नाणाई भयणा । तस्स अलब्द्धीयाणं पंच नाणाई, तिणि अण्णाणाई - भयणाए ।
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भगवई
आदि चार चरित्र वाले अथवा सिद्ध होते हैं उनमें पांच ज्ञान की भजना है। सामायिक चरित्र की अलब्धि वाले अज्ञानी जीवों में तीन अज्ञान की भजना है।
यथाख्यात चरित्र लब्धि वाले जीव छद्मस्थ और केवली दोनों प्रकार के होते हैं इसलिए उनमें पांच ज्ञान की भजना है।
चरित्राचरित्रं प्रतीत्यचरित्राचरित्रलब्धिकाः भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः ? अज्ञानिनः ? गौतम ! ज्ञानिनः, नो अज्ञानिनः । अस्त्येकके द्वि-ज्ञानिनः अस्त्येकके विज्ञानिनः । ये द्विज्ञानिनः ते आभिनिबोधिकज्ञानिनश्च श्रुतज्ञानिनश्च । ये विज्ञानिनः ते आभिनिबांधिकज्ञानिनः, श्रुतज्ञानिनः, अवधिज्ञानिनः ।
तस्य अलब्धिकानां पञ्च ज्ञानानि त्रीणि अज्ञानानि-भजनया ।
१. भ. बृ. ८ / १६१ - चरित्रलब्धिका ज्ञानिन एव तेषां च पंच ज्ञानानि भजनया, यतः केवल्यपि चारित्री | चारित्रलब्धिकास्तु ये ज्ञानिनस्तेषां मनः पर्यववयनि चत्वारि ज्ञानानि भजनया भवन्ति कथम् ? असंयतत्वे आद्यं ज्ञानद्वयं तत्त्रयं
दानानि प्रतीत्यदानलब्धिकानां पञ्च ज्ञानानि त्रीणि अज्ञानानि - भजनया |
तस्य अलब्धिकानां पृच्छा।
गौतम! ज्ञानिनः, नो अज्ञानिनः । नियमात् एकज्ञानिनः केवलज्ञानिनः । एवं यथा वीर्यस्य लब्धिकाः अलब्धिकाः च भणितव्याः ।
बालादिवीर्यं प्रतीत्यबालवीर्यलब्धिकानां त्रीणि ज्ञानानि, त्रीणि अज्ञानानि-भजनया । तस्य अलब्धिकानां पञ्च ज्ञानानि भजनया । पण्डितवीर्यलब्धिकानां पञ्च ज्ञानानि भजनया। तस्य अलब्धिकानां मनः पर्यवज्ञानवर्ज्यानि ज्ञानानि, अज्ञानानि च
भजनया ।
बालपण्डितवीर्यलब्धिकानां त्रीणि ज्ञानानि भजेनया । तस्य अलब्धिकानां पञ्च ज्ञानानि त्रीणि अज्ञानानि-भजनया !
चरित्राचरित्र की अपेक्षा
१६३. भंते! चरित्राचरित्र की लब्धि वाले जीव क्या ज्ञानी हैं? अज्ञानी हैं? गौतम! वे ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं हैं। उनमें कुछ दो ज्ञान वाले और कुछ तीन ज्ञान वाले हैं। जो दो ज्ञान वाले हैं वे आभिनिबोधिकज्ञान और श्रुतज्ञान वाले हैं। जो तीन ज्ञान वाले हैं वे आभिनिबोधिक ज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान वाले हैं। उस (चरित्राचरित्र) के अलब्धिकों के पांच ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना है।
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दान आदि की अपेक्षा
१६४. दानलब्धि वालों के पांच ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना है।
१६५. दानलब्धि के अलब्धिकों की पृच्छा !
गौतम! ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं हैं। नियमतः एक ज्ञानी - केवलज्ञानी हैं। इसी प्रकार यावत् वीर्य के लब्धिकों और अलब्धिको की वक्तव्यता ज्ञातव्य है ।
बाल आदि वीर्य की अपेक्षा बालवीर्यलब्धि वालों के तीन ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना है। उसके अलब्धिकों के पांच ज्ञान की भजना है।. पण्डितवीर्यलब्धि वालों के पांच ज्ञान की भजना है। उसके अलब्धिकों के मनः पर्यवज्ञान को छोड़कर ज्ञान और अज्ञान की भजना है। बालपण्डितवीर्यलब्धि वालों के तीन ज्ञान की भजना है। उसके अलब्धिकों के पांच ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना है।
वा, सिद्धत्वे च केवलज्ञानं सिद्धानामपि चरित्रलब्धिशून्यत्वाद, यतस्तं नोचारित्रिणो नो अचारित्रिण इति ये त्वज्ञानिनस्तेषां त्रीण्यज्ञानानि भजनया ।
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