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________________ भगवई श.८ : उ. २ : सू. १६०-१६२ मिथ्यादर्शनलब्धि वालों के तीन अज्ञान की भजना है। उसके अलब्धिकों के पांच ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना है। मिच्छादसणलद्धियाणं तिणि मिथ्यादर्शनलब्धिकानां त्रीणि अज्ञानानि अण्णाणाई भयणाए। तस्स अल- भजनया। तस्य अलब्धिकानां पञ्चद्धियाणं पंच नाणाई, तिण्णि य ज्ञानानि, वीणि च अज्ञानानि-भजनया। अण्णाणाई-भयणाए। सम्मामिच्छादसणलद्धिया, अल-द्धिया सम्यगमिथ्यादर्शनलब्धिकाः अलब्धिय जहा मिच्छादसणलद्धिया अलद्धिया काश्च यथा मिथ्यादर्शनलब्धिकाः तहेव भाणियव्वा॥ अलब्धिकाः तथैव भणितव्याः। सम्यमिथ्यादर्शनलब्धि वाले और उसके अलब्धिकों की वक्तव्यता मिथ्यादर्शनलब्धि वाले और उसके अलब्धिकों की भांति ज्ञातव्य है। भाष्य १. सूत्र १५९-१६० दर्शनलब्धि वाले जीव सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि-दोनों प्रकार के होते हैं। सम्यग्दृष्टि जीवों में पांच ज्ञान की भजना है। मिथ्यादृष्टि जीवों में तीन अज्ञान की भजना है। कोई भी जीव दर्शनलब्धि से शून्य नहीं होता इसलिए उसका अलब्धिक कोई नहीं है। मिथ्यादर्शन की अलब्धि वाले जीव सम्यग्दृष्टि और मिश्रदृष्टि दोनों प्रकार के होते हैं। सम्यगदृष्टि में पांच ज्ञान और मिश्रदृष्टि में तीन अज्ञान की भजना है। चरित्तं पडुच्च चरित्रं प्रतीत्य१६१. चरित्तलद्धिया णं भंते! जीवा किं चरित्रलब्धिकाः भदन्त! जीवाः किं नाणी? अण्णाणी? ज्ञानिनः? अज्ञानिनः? गोयमा! पंच नाणाई भयणाए। गौतम ! पञ्च ज्ञानानि भजनया। तस्स अलद्धीयाणं मणपज्जव- तस्य अलब्धिकानां मनःपर्यवज्ञानवानि नाणवज्जाई चत्तारि नाणाई, तिण्णि य । चत्वारि ज्ञानानि, त्रीणि च अज्ञानानि अण्णाणाई भयणाए। भजनया। चरित्र की अपेक्षा १६१. 'भंते! चरित्रलब्धि वाले जीव क्या ज्ञानी हैं? अज्ञानी हैं? गौतम! पांच ज्ञान की भजना है। उस (चरित्र) के अलब्धिकों के मनःपर्यवज्ञान को छोड़कर चार ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना है। १६२. सामाइयचरित्तलद्धिया णं भंते! सामायिकचरित्रलब्धिकाः भदन्त! जीवाः १६२. भंते! सामायिक चरित्र की लब्धि जीवा किं नाणी? अण्णाणी? . किं ज्ञानिनः? अज्ञानिनः? । वाले जीव क्या ज्ञानी है? अज्ञानी हैं? गोयमा! नाणी-केवलवज्जाई चत्तारि गौतम! ज्ञानिनः-केवलवानि चत्वारि गौतम! ज्ञानी हैं-केवलज्ञान को छोड़कर नाणाई भयणाए। तस्स अलद्धियाणं पंच ज्ञानानि भजनया। तस्य अलब्धिकानां पञ्च चार ज्ञान की भजना है। उस (सामायिक नाणाई, तिण्णि य अण्णाणाई-भयणाए। ज्ञानानि, त्रीणि च अज्ञानानि-भजनया। एवं चरित्र) के अलब्धिकों के पांच ज्ञान और एवं जहा सामाइयचरित्तलद्धिया अल- यथा सामायिकचरित्रलब्धिकाः अलब्धि- तीन अज्ञान की भजना है। इस प्रकार द्धीया य भणिया, एवं जाव अहक्खाय काश्च भणिताः, एवं यावत् यथाख्यात- जैसी सामायिक चरित्र की लब्धि वाले चरित्तलद्धीया अलद्धीया य भाणियव्वा, चरित्रलब्धिकाः अलब्धिकाश्च भणितव्याः। और अलब्धिकों की वक्तव्यता वैसी ही नवरं-अहक्खाय-चरित्तलद्धीयाणं पंच। नवरं यथाख्यातचरित्रलब्धिकानां पञ्च यावत् यथाख्यात चरित्र की लब्धिवाले नाणाई भयणाए॥ ज्ञानानि भजनया। और अलब्धिकों की वक्तव्यता ज्ञातव्य है। केवल इतना विशेष है-यथाख्यात चरित्र की लब्धि वालों के पांच ज्ञान की भजना है। भाष्य १. सूत्र. १६१-१६२ चरित्र लब्धि वाले जीव ज्ञानी ही होते हैं इसलिए उनमें पांच ज्ञान की भजना है। मनःपर्यवज्ञान केवल चारित्री में ही होता है इसलिए चरित्र की अलब्धि वाले जीवों में उसे छोड़कर चार ज्ञान की भजना है। असंयमी सम्यग्दृष्टि में दो ज्ञान अथवा तीन ज्ञान। सिद्ध चरित्रलब्धि शून्य होते हैं। न चारित्री होते हैं और न अचारित्री। उनमें केवल एक ज्ञान केवलज्ञान होता है। चरित्र की अलब्धि वाले अज्ञानी जीवों में तीन अज्ञान की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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