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श. ८ : उ. २ : सू. १५४-१६०
भगवई
१५४. तस्स अलद्धीयाणं पुच्छा।
तस्य अलब्धिकानां पृच्छा।
गोयमा! नाणी वि. अण्णाणी वि। गौतम ! ज्ञानिनोऽपि, अज्ञानिनोऽपि। मनःमणपज्जवनाणवज्जाइं चत्तारि नाणाई, पर्यवज्ञानवानि चत्वारि ज्ञानानि, त्रीणि तिण्णि अण्णाणाई-भयणाए। अज्ञानानि-भजनया।
१५४. मनःपर्यवज्ञान के अलब्धिकों की पृच्छा । गौतम! वे ज्ञानी भी हैं. अज्ञानी भी हैं। मनःपर्यवज्ञान को छोड़कर चार ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना है।
१५५. केवलनाणलद्धिया णं भंते! जीवा केवलज्ञानलब्धिकाः भदन्त ! जीवाः किं किं नाणी? अण्णाणी?
ज्ञानिनः? अज्ञानिनः? गोयमा! नाणी, नो अण्णाणी। नियमा गौतम! ज्ञानिनः, नो अज्ञानिनः। नियमात एगनाणी-केवलनाणी॥
एकज्ञानिनः केवलज्ञानिनः।
१५५. भंते! केवलज्ञानलब्धि वाले जीव
क्या ज्ञानी है? अज्ञानी हैं ? गौतम! वे ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं। नियमतः एक ज्ञान-केवलज्ञान वाले हैं।
१५६. तस्स अलद्धियाणं पुच्छा। तस्य अलब्धिकानां पृच्छा। गोयमा! नाणी वि, अण्णाणी वि। गौतम ! ज्ञानिनोऽपि अज्ञानिनोऽपि। केवल- केवलनाणवज्जाई चत्तारि नाणाई, ज्ञानवानि चत्वारि ज्ञानानि, त्रीणि तिण्णि अण्णाणाई-भयणाए॥
अज्ञानानि-भजनया।
१५६. केवलज्ञान के अलब्धिकों की पृच्छा। गौतम! वे ज्ञानी भी हैं, अज्ञानी भी हैं। केवलज्ञान को छोड़कर चार ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना है।
१५७. अण्णाणलद्धियाणं पुच्छा। अज्ञानलब्धिकानां पृच्छा। गोयमा! नो नाणी, अण्णाणी। तिण्णि गौतम! नो ज्ञानिनः, अज्ञानिनः। त्रीणि अण्णाणाई भयणाए॥
अज्ञानानि भजनया
१५७. अज्ञानलब्धि वालों की पृच्छा। गौतम! वे ज्ञानी नहीं हैं, अज्ञानी हैं। तीन अज्ञान की भजना है।
१५८. तस्स अलद्धियाणं पुच्छा। तस्य अलब्धिकानां पृच्छा। गोयमा! नाणी, नो अण्णाणी। पंच गौतम! ज्ञानिनः, नो अज्ञानिनः। पञ्च नाणाई भयणाए। जहा अण्णाणस्स य ज्ञानानि भजनया। यथा अज्ञानस्य च लद्धिया अलद्धिया य भणिया, एवं लब्धिकाः अलब्धिकाश्च भणिताः, एवं मइअण्णाणस्स सुयअण्णाणस्स य मति-अज्ञानस्य श्रुत-अज्ञानस्य च लद्धिया अलद्धिया य भाणियव्वा। लब्धिकाः अलब्धिकाश्च भणितव्याः। विभंगनाणलद्धियाणं तिण्णि अण्णाणाई विभंगज्ञान-लब्धिकानां त्रीणि अज्ञानानि नियमा। तस्स अलद्धियाणं पंच नाणाई नियमात। तस्य अलब्धिकानां पञ्च ज्ञानानि भयणाए, दो अण्णाणाई नियमा। भजनया, द्वे अज्ञाने नियमात्।
१५८. अज्ञान के अलब्धिकों की पृच्छा। गौतम! ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं हैं। पांच ज्ञान की भजना है। जैसी अज्ञान के लब्धिकों और अलब्धिकों की वक्तव्यता है वैसी ही मतिअज्ञान और श्रुतअज्ञान के लब्धिकों और अलब्धिकों की वक्तव्यता ज्ञातव्य है। विभंगज्ञानलब्धि वाले के नियमतः तीन अज्ञान होते हैं। उसके अलब्धिकों के पांच ज्ञान की भजना है, दो अज्ञान नियमतः होते हैं।
दसणं पडुच्च
दर्शनं प्रतीत्य१५९. दंसणलद्धिया णं भंते! जीवा किं दर्शनलब्धिकाः भदन्त! जीवाः किं नाणी? अण्णाणी?
ज्ञानिनः? अज्ञानिनः? गोयमा! नाणी वि, अण्णाणी वि! पंच गौतम ! ज्ञानिनोऽपि, अज्ञानिनोऽपि। पञ्च नाणाई, तिण्णि अण्णाणाई-भयणाए॥ ज्ञानानि, त्रीणि अज्ञानानि-भजनया।
दर्शन की अपेक्षा १५९. 'भंते! दर्शनलब्धि वाले जीव क्या ज्ञानी हैं ? अज्ञानी हैं? गौतम ! ज्ञानी भी हैं, अज्ञानी भी हैं। पांच ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना है।
१६०. तस्स अलद्धिया णं भंते! जीवा किं तस्य अलब्धिकाः भदन्त! जीवाः किं नाणी? अण्णाणी?
ज्ञानिनः? अज्ञानिनः? गोयमा! तस्स अलद्धिया नत्थि। गौतम! तस्य अलब्धिकाः न सन्ति। सम्मदंसणलछियाणं पंच नाणाई सम्यग-दर्शनलब्धिकानां पञ्च ज्ञानानि भयणाए। तस्स अलद्धियाणं तिण्णि भजनया। तस्य अलब्धिकानां त्रीणि अण्णाणाईभयणाए।
अज्ञानानि भजनया।
१६०. भंते! दर्शन के अलब्धिक जीव क्या ज्ञानी हैं, अज्ञानी है? गौतम ! उसके अलब्धिक नहीं हैं। सम्यगदर्शनलब्धि वालों के पांच ज्ञान की भजना है। उसके अलब्धिकों के तीन अज्ञान की भजना है।
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