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________________ 130 भगवई श.८ : उ.२ : सू. १५०-१५३ नाणस्स अलद्धीया॥ अलब्धिकाः। जीवों की वक्तव्यता आभिनिबोधिक ज्ञान के अलब्धिक जीवों की भांति ज्ञातव्य है। भाष्य १.सूत्र १५० आभिनिबोधिक की अलब्धि वाले जीवों में एक केवलज्ञान ही हो आभिनिबोधिक ज्ञान और श्रुतज्ञान दोनों का ज्ञान पंचक में सकता है। आदि स्थान है। जिनभद्र ने बतलाया है-इनके होने पर शेष ज्ञान होते __आभिनिबोधिक की अलब्धि वाले जीवों में अज्ञान दो होते हैं हैं। इनके अभाव में कोई भी ज्ञान नहीं होता। आभिनिबोधिक ज्ञान अथवा तीन भी हो सकते हैं। के अभाव में श्रुत, अवधि और मनःपर्यव ज्ञान नहीं हो सकते। इसलिए १५१. ओहिनाणलद्धियाणं पुच्छा। अवधिज्ञानलब्धिकानां पृच्छा। १५१. अवधिज्ञानलब्धि वाले जीवों की पृच्छा। गोयमा! नाणी, नो अण्णाणी। अत्थे. गौतम ज्ञानिनः, नो अज्ञानिनः। अस्त्येकके गौतम! वे ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं हैं। कुछ गतिया तिण्णाणी, अत्थेगतिया त्रिज्ञानिनः, अस्त्येकके चतुर्जानिनः। ये तीन ज्ञान वाले हैं, कुछ चार ज्ञान वाले चउनाणी। जे तिण्णाणी ते । त्रिज्ञानिनः ते आभिनिबोधिकज्ञानिनः । हैं। जो तीन ज्ञान वाले हैं वे आभिनिआभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी, ओहि- श्रुतज्ञानिनः, अवधिज्ञानिनः। ये बोधिक-ज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान नाणी। जे चउनाणी ते आभि- चतुर्जानिनः, ते आभिनिबोधिकज्ञानिनः, वाले हैं। जो चार ज्ञान वाले हैं वे णिबोहियनाणी, सुयनाणी, ओहिनाणी, श्रुतज्ञानिनः, अवधिज्ञानिनः, मनःपर्यव- आभिनिबोधिक ज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिमणपज्जवनाणी॥ ज्ञानिनः। ज्ञान और मनःपर्यवज्ञान वाले हैं। १५२. तस्स अलद्धियाणं पुच्छा। तस्य अलब्धिकानां पृच्छा। गोयमा! नाणी वि, अण्णाणी वि। एवं गौतम! ज्ञानिनोऽपि, अज्ञानिनोऽपि। एवं ओहिनाणवज्जाइं चत्तारि नाणाइं, तिण्णि अवधिज्ञानवानि चत्वारि ज्ञानानि, त्रीणि अण्णाणाई-भयणाए॥ अज्ञानानि-भजनया। १५२. अवधिज्ञान के अलब्धिकों की पृच्छा । गौतम! वे ज्ञानी भी हैं, अज्ञानी भी है। इस प्रकार अवधिज्ञान को छोड़कर चार ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना है। १५३. मणपज्जवनाणलद्धियाणं पुच्छा। मनःपर्यवज्ञानलब्धिकानां पृच्छा। गोयमा! नाणी, नो अण्णाणी। अत्थे- गौतम ! ज्ञानिनः, नो अज्ञानिनः। अस्त्येकके गतिया तिण्णाणी, अत्थेगतिया त्रिज्ञानिनः, अस्त्येकके चतुर्जानिनः। ये चउनाणी। जे तिण्णाणी ते आभिणि- त्रिज्ञानिनः ते आभिनिबोधिकज्ञानिनः, बोहियनाणी, सुयनाणी, मणपज्जव. श्रुतज्ञानिनः मनःपर्यवज्ञानिनः। ये नाणी। जे चउनाणी ते आभिणि- चतुर्जानिनः, ते आभिनिबोधिकज्ञानिनःः, बोहियनाणी, सुयनाणी, ओहिनाणी श्रुतज्ञानिनः, अवधिज्ञानिनः, मनःपर्यवमणपज्जवनाणी। ज्ञानिनः। १५३. 'मनःपर्यवज्ञानलब्धि वालों की पृच्छा । गौतम! वे ज्ञानी हैं. अज्ञानी नहीं हैं। उनमें कुछ तीन ज्ञान वाले हैं, कुछ चार ज्ञान वाले हैं। जो तीन ज्ञान वाले हैं वे आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और मनःपर्यवज्ञान वाले हैं। जो चार ज्ञान वाले हैं वे आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मनःपर्यवज्ञान वाले हैं। भाष्य १. सूत्र १५३ केवल संयमी मुनि के ही होता है इसलिए उसके प्रतिपक्ष रूप में मति, श्रुत और अवधि ज्ञान का प्रतिपक्ष है-मतिअज्ञान, श्रुत- अज्ञान नहीं है। अज्ञान और विभंगज्ञान मनःपर्यवज्ञान का कोई प्रतिपक्ष नहीं है। वह १. (क) वि. भा. गा.८५ तब्भावे सेसाणि य तेणाईए महसुयाई॥ (ख) वि. भा. गा. ८५ मल्लधारी वृत्तिनदभावे मतिश्रुतज्ञानसद्भाव एव शेषाण्यवध्यादीनि ज्ञानान्यवाप्यन्तेः नान्यथा न हि स कश्चित् प्राणी भूतपूर्वः अस्ति भविष्यति वा यो मतिश्रुतज्ञाने अनासाद्य प्रथममेवाऽवध्यादीनि शेषज्ञानानि प्राप्तवान प्राप्नोति प्राप्स्यति वेति भावः ततस्तदवासी शेषज्ञानाध्वासेश्चादी मतिश्रुतोपन्यासः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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