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________________ भगवई ४७ श.८: उ.२: सू. १३१-१३९ भवत्थं पड़च्च१३१. निरयभवत्था णं भंते! जीवा किं नाणी? अण्णाणी? जहा निरयगतिया॥ भवस्थं प्रतीत्य भवस्थ की अपेक्षा निरयभवस्थाः भदन्त! जीवाः किं ज्ञानिनः? १३१. भन्ते ' नैरयिक के भव में स्थित जीव अज्ञानिनः? क्या ज्ञानी है ? अज्ञानी हैं? यथा निरयगतिकाः। नरक की अंतराल गति में विद्यमान जीव की भांति वक्तव्यता। १३२. तिरियभवत्था णं भंते! जीवा किं तिर्यग्भवस्थाः भदन्त ! जीवाः किं नाणी? अण्णाणी? ज्ञानिनः? अज्ञानिनः? तिण्णि नाणा, तिणि अण्णाणा- त्रीणि ज्ञानानि, त्रीणि अज्ञानानि-भजनया। भयणाए। १३२. भन्ते! तिर्यंच के भव में स्थित जीव क्या ज्ञानी हैं? अज्ञानी हैं? तीन ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना है। १३३. मणुस्सभवत्था? जहा सकाइया॥ मनुष्यभवस्थाः? यथा सकायिकाः। १३३. मनुष्य के भव में स्थित जीव क्या ज्ञानी हैं? अज्ञानी हैं? सकायिक की भांति वक्तव्यता। १३४. देवभवत्था णं भंते। देवभवस्थाः भदन्त! जहा निरयभवत्था। अभवत्था जहा यथा निरयभवस्थाः। अभवस्थाः यथा सिद्धा॥ सिद्धाः। १३४. भन्ते! देव के भव में स्थित जीव क्या ज्ञानी हैं? अज्ञानी हैं? नैरयिक के भव में स्थित जीव की भांति वक्तव्यता। अभवस्थ की वक्तव्यता सिद्ध की भांति ज्ञातव्य है। भवसिद्धियाभवसिद्धियं पडुच्च१३५. भवसिद्धिया णं भंते! जीवा किं नाणी? जहा सकाइया। भवसिद्धिकाभवसिद्धिकं प्रतीत्य- भवसिद्धिक, अभवसिद्धिक की अपेक्षा भवसिद्धिकाः भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः? १३५. भंते! भवसिद्धिक जीव क्या ज्ञानी हैं? यथा सकायिकाः। सकायिक की भांति वक्तव्यता। १३६. अभवसिद्धियाणं पुच्छा। अभवसिद्धिकानां पृच्छा। गोयमा! नो नाणी, अण्णाणी; तिण्णि गौतम! नो ज्ञानिनः, अज्ञानिनः. त्रीणि अण्णाणाई भयणाए। अज्ञानानि भजनया। १३६. अभवसिद्धिकों की पृच्छा। गौतम! ज्ञानी नहीं हैं, अज्ञानी हैं, तीन अज्ञान की भजना है। १३७. नोभवसिद्धिया - नोअभव-सिद्धिया णं भंते! जीवा किं नाणी? जहा सिद्धा।। नो भवसिद्धिका-नो अभवसिद्धिकाः १३७. भंते! नोभवसिद्रिक-नोअभवभदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः? सिद्धिक जीव क्या ज्ञानी है? यथा सिद्धाः। सिद्धों की भांति वक्तव्यता। सण्णि-असण्णिं पडुच्च१३८. सण्णीणं पुच्छा। जहा सइंदिया। असण्णी जहा बेइंदिया। नोसण्णी-नोअसण्णी जहा सिद्धा॥ संज्ञि-असंज्ञिनौ प्रतीत्य संज्ञिनां पृच्छा। यथा स-इन्द्रियाः। असंज्ञी यथा द्वीन्द्रियाः। नो संज्ञी-नो असंज्ञी यथा सिद्धाः। संज्ञी असंज्ञी की अपेक्षा १३८. संजी जीवों की पृच्छा। सइन्द्रिय जीवों की भांति वक्तव्यता। असंज्ञी की द्वीन्द्रिय की भांति वक्तव्यता। नोसंज्ञी - नोअसंज्ञी की सिद्धों की भांति वक्तव्यता। लद्धि-पदं १३९. कतिविहा णं भंते! लद्धी पण्णत्ता? लब्धि -पदम् कतिविधा भदन्त ! लब्धिः प्रज्ञप्ला? लब्धि -पद १३९. 'भंते! लब्धि कितने प्रकार की प्रज्ञप्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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