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श.८: उ.२: सू. १२६-१३०
भगवई
भाष्य १. सूत्र १२५
मिथ्यादृष्टि जीवों में विभंगज्ञान होता है. कुछ में नहीं होता. इस अपेक्षा तिर्यपंचेन्द्रिय-कुछ सम्यगदृष्टि जीवों में अवधिज्ञान होता है, से उनमें तीन अज्ञान की भजना है। कुछ में नहीं होता, इस अपेक्षा से तीन ज्ञान की भजना है। कुछ १२६. अपज्जत्ता णं भंते! जीवा किं अपर्याप्ताः भदन्त! जीवाः किं ज्ञानिनः? १२६. 'भन्ते! अपर्याप्त जीव क्या ज्ञानी हैं? नाणी? अण्णाणी? अज्ञानिनः?
अज्ञानी हैं? तिण्णि नाणा, तिण्णि अण्णाणा- त्रीणि ज्ञानानि. बीणि अज्ञानानि-भजनया। तीन ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना है। भयणाए॥
भाष्य १. सूत्र १२६
अपर्याप्तक अवस्था में अवधिज्ञान और विभंगज्ञान की भजना है। देखें सूत्र १११-११३ का भाष्य। १२७. अपज्जत्ता णं भंते! नेरइया किं अपर्याप्ताः भदन्त ! नैरयिकाः किं ज्ञानिनः? १२७. 'भन्ते ! अपर्यास नैरयिक क्या ज्ञानी नाणी? अण्णाणी? अज्ञानिनः?
है? अज्ञानी है? तिण्णि नाणा नियमा, तिण्णि अण्णाणा त्रीणि ज्ञानानि नियमात. त्रीणि अज्ञानानि तीन ज्ञान नियमतः होते हैं, तीन अज्ञान भयणाए। एवं जाव थणियकुमारा। भजनया। एवं यावत् स्तनितकुमाराः। की भजना है। इस प्रकार यावत् पुढविक्काइया जाव वणस्सइकाइया पृथ्वीकायिकाः यावत् वनस्पतिकायिकाः स्तनितकुमार की वक्तव्यता। जहा एगिंदिया॥ यथा एकेन्द्रियाः।
पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक की
वक्तव्यता एकेन्द्रिय की भांति ज्ञातव्य है।
भाष्य १. सूत्र १२७
नैरथिक में तीन ज्ञान का नियम और तीन अज्ञान की भजना। देखें सूत्र १११.११३ का भाष्य। १२८. बेइंदियाणं पुच्छा। दीन्द्रियाणां पृच्छा।
१२८. 'द्वीन्द्रिय की पृच्छा। दो नाणा, दो अण्णाणा-नियमा। एवं द्वे ज्ञाने, द्वे अज्ञाने-नियमात्। एवं यावत दो ज्ञान और दो अज्ञान नियमतः होते हैं। जाव पंचिंदियतिरिक्ख-जोणियाणं॥ पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानाम्।
इस प्रकार यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक
की वक्तव्यता।
भाष्य १. सूत्र १२८
द्वीन्द्रिय में दो ज्ञान और दो अज्ञान का नियम। देखें सूत्र १०७-१०८ का भाष्य। १२९. अपज्जत्तगा णं भंते ! मणुस्सा किं अपर्याप्तकाः भदन्त ! मनुष्याः किं ज्ञानिनः? १२९. 'भन्ते ! अपर्याप्तक मनुष्य क्या ज्ञानी नाणी? अण्णाणी? अज्ञानिनः?
हैं? अज्ञानी है? तिण्णि नाणाई भयणाए, दो अण्ण- त्रीणि ज्ञानानि भजनया, द्वे अज्ञाने नियमात्। तीन ज्ञान की भजना है, दो अज्ञान णाई नियमा। वाणमंतरा जहा नेरइया। वानमन्तराः यथा नैरयिकाः। अपर्याप्तकानां नियमतः होते हैं। अपर्याप्त वानमन्तर की अपज्जत्तगाणं जोइ-सियवेमाणियाणं ज्योतिष्क-वैमानिकानां त्रीणि ज्ञानानि, वक्तव्यता नैरयिक की भांति ज्ञातव्य है। तिण्णि नाणा, तिण्णि अण्णाणा- त्रीणि अज्ञानानि नियमात् ।
अपर्याप्त ज्योतिष्क और वैमानिक के नियमा।
नियमतः तीन ज्ञान और तीन अज्ञान होते
भाष्य १. सूत्र १२९
वानमंतर की नैरयिक की भांति वक्तव्यता। देखें सूत्र १११. सम्यगदृष्टि अपर्याप्तक मनुष्यों में तीन ज्ञान की भजना और दो ११३ का भाष्य। अज्ञान का नियम । देखें सूत्र १११-११३ का भाष्य। १३०. नोपज्जत्तगा-नोअपज्जत्तगा णं नो पर्याप्तकाः-नो अपर्याप्तकाः भदन्त! १३०. भन्ते! नोपर्याप्तक-नोअपर्यासक जीव भंते! जीवा किं नाणी? जीवाः किं ज्ञानिनः?
क्या ज्ञानी है? जहा सिद्धा॥ यथा सिद्धाः।
सिद्धों की भांति वक्तव्यता।
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