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________________ श.८ : उ. २ : सू. ११५-११९ भगवई इंदियं पडुच्च११५. सइंदिया णं भंते! जीवा किं नाणी! गी! अण्णाणी? गोयमा! चत्तारि नाणाई, तिण्णि अण्णाणाई भयणाए। इन्द्रियं प्रतीत्य इन्द्रिय की अपेक्षा से स-इन्द्रियाः भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः? । स-इन्द्रियाः भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः? ११५. भन्ते! स-इन्द्रिय जीव क्या ज्ञानी अज्ञानिनः? हैं ? अज्ञानी है? गौतम! चत्वारि ज्ञानानि, त्रीणि गौतम ! चार ज्ञान और तीन अज्ञान की अज्ञानानि भजनया भजना है। ११६. एगिदिया ण भंते! जीवा किं एकेन्द्रियाः भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः? नाणी? जहा पुढविकाइया। बेइंदिय-तेइंदिय- यथा पृथ्वीकायिकाः। द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रियचउरिंदिया णं दो नाणा, दो अण्णाणा चतुरिन्द्रियाः द्वे ज्ञाने, द्वे अज्ञाने नियमात्। नियमा। पंचिदिया जहा सइंदिया॥ पञ्चेन्द्रियाः यथा स-इन्द्रियाः। ११६. भन्ते! एकेन्द्रिय जीव क्या ज्ञानी हैं? अज्ञानी हैं? पृथ्वीकायिक जीवों की भांति वक्तव्यता। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के नियमतः दो ज्ञान और दो अज्ञान होते हैं। पंचेन्द्रिय जीव सइन्द्रिय जीवों की भांति वक्तव्य हैं। अनिन्द्रियाः भदन्त! जीवाः किं ज्ञानिनः? ११७. अणिदिया णं भंते! जीवा किं नाणी? जहा सिद्धा॥ ११७. भन्ते! अनिन्द्रिय जीव क्या ज्ञानी हैं। अज्ञानी हैं। सिद्धों की भांति वक्तव्यता। यथा सिद्धाः। भाष्य १. सूत्र ११५-११७ ज्ञान के ये विकल्प लब्धि की दृष्टि से किए गए हैं। उपयोग की ज्ञान के विकास की दो अवस्थाएं हैं- स-इन्द्रिय और दृष्टि से सब जीवों के एक ही ज्ञान होता है।' अनिन्द्रिय। मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्यव-ये चार ज्ञान सेन्द्रिय इन्द्रिय चेतना वाले जीव में ज्ञान के तीन विकल्प होते हैं-- कोटि के ज्ञान हैं। मति और श्रुत-इन दो ज्ञानों में इन्द्रिय ज्ञान का १. दो ज्ञान प्रत्यक्ष उपयोग रहता है। अवधि और मनःपर्यव में इन्द्रिय ज्ञान का २. तीन ज्ञान परोक्ष उपयोग रहता है। ये अतीन्द्रिय ज्ञान हैं। फिर भी सर्वथा इन्द्रिय ३.चार ज्ञान निरपेक्ष नहीं हैं। केवलज्ञान अतीन्द्रियज्ञान है। वह इन्द्रिय के उपयोग अनिन्द्रिय चेतना वाले जीव में एक ही ज्ञान-केवलज्ञान से सर्वथा निरपेक्ष है। होता है। वास्तव में अतीन्द्रिय कोटि का ज्ञान केवलज्ञान ही है। कायं पडुच्चकार्य प्रतीत्य काय की अपेक्षा ११८. सकाइया णं भंते! जीवा किं सकायिकाः भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः? ११८. 'भन्ते! सकायिक जीव क्या ज्ञानी नाणी? अण्णाणी? अज्ञानिनः? हैं ? अज्ञानी हैं ? गोयमा! पंच नाणाई, तिण्णि गौतम! पञ्च ज्ञानानि, त्रीणि अज्ञानानि- गौतम ! पांच ज्ञान और तीन अज्ञान की अण्णाणाई-भयणाए। पुढविक्का-इया भजनया। पृथ्वीकायिकाः यावत् वनस्पति- भजना है। पृथ्वीकायिक यावत् जाव वणस्सइकाइया नो नाणी, कायिकाःनो ज्ञानिनः, अज्ञानिनः, नियमात वनस्पति-कायिक जीव ज्ञानी नहीं हैं, अण्णाणी, नियमा दुअण्णाणी, तं द्वि-अज्ञानिनः, तद्यथा-मति-अज्ञानिनश्च अज्ञानी हैं, नियमतः दो अज्ञान वाले हैं, जहा-मइअण्णाणी य सुयअण्णाणी य। श्रुत-अज्ञानिनश्च। सकायिकाः यथा जैसे- मति-अज्ञान और श्रुतअज्ञान तसकाइया जहा सकाझ्या॥ सकायिकाः। वाले। त्रसकायिक जीव सकायिक जीवों की भांति वक्तव्य हैं। १११. अकाइया णं भंते! जीवा किं नाणी? अकायिकाः भदन्त! जीवाः किं ज्ञानिनः? ११९. भन्ते! अकायिक जीव क्या ज्ञानी हैं? अज्ञानी हैं? सिद्धों की भांति वक्तव्यता। जहा सिद्धा। यथा सिद्धाः। १. भ. वृ. ८/११५ व्यादिभावश्च ज्ञानानां लब्ध्यपेक्षया उपयोगापेक्षया तु सर्वेषामेकदैकमेव ज्ञानम्। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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