________________
श. ८ : उ. २ : सू. ९३,९४
कालीन अपर्याप्त अवस्था में कर्म से आशीविष ऋद्धि को स्वीकार किया गया है। वृत्तिकार के अनुसार आशीविष ऋद्धि वाले जीव आठवें कल्प तक उत्पन्न होते हैं इसलिए सहस्रार नामक आठवें कल्प
यदि
९३. जर तिरिक्खजोणियकम्मासी-विसे किं एगिंदियतिरिक्खजोणिय कम्मासीविसे जाव पंचिंदिय-तिरिक्खजोणियकम्मा-सीविसे ? गोयमा ! नो एगिंदियतिरिक्खजोणियकम्मासीविसे जाव नो चउरिंदियतिरिक्ख - जोणियकम्मा
सीविसे, पंचिंदियतिरिक्खजोणिय
कम्मासीविसे ।
जइ
पंचिदियतिरिक्खजोणियकम्मासीविसे किं संमुच्छिमपंचिंदिय तिरिक्खजोणियकम्मासीविसे ? गब्भवक्कंतियपंचिंदिय-तिरिक्खजोणियकम्मासीविसे ?
एवं जहा वेउव्वियसरीरस्स भेदो जाव पज्जत्तासंखेज्जवासाउय-गब्भवक्कं
तियपंचिंदियतिरिक्ख जोणियकम्मासीविसे, नो अपज्जत्तासंखेज्जवासाउय जाव कम्मासीविसे ॥
९४. जइ मणुस्सकम्मासीविसे किं संमुच्छिममणुस्सकम्मासीविसे? गब्भवक्कंतियमणुस्सकम्मासीविसे ? गोयमा ! नो संमुच्छिममणुस्सकम्मासीविसे गब्भवक्कंतिय-मणुस्सकम्मासीविसे, एवं जहा वेउब्वियसरीरं जाव पज्जत्त संखेज्जवासाउयकम्मभूमागब्भ-वक्कं तियमणुस्सकम्मासीविसे, नो अपज्जत्ता जाव कम्मासीविसे ?
Jain Education International
३४
भगवई
पर्यन्त अपर्याप्त अवस्था में पूर्वानुभूत भाव की दृष्टि से देवों में कर्माशीविष का उल्लेख किया गया है।"
तिर्यग्योनिककर्माशीविषः किम् एकेन्द्रियतिर्यग्योनिककर्माशीविषः यावत् पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिककर्माशीविषः ?
गौतम ! नो एकेन्द्रियतिर्यग्योनिककर्माशीविषः यावत् नो चतुरिन्द्रियतिर्यग्योनिककर्माशीविषः पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिककर्माशीविषः ।
यदि पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिककर्माशीविषः किं सम्मूर्च्छिमपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिककर्माशी - विषः ? गर्भावक्रान्तिकपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिककर्माशीविषः ?
१.भ. वृ. ८ ८६-८७- एते चाशीविषलब्धिस्वभावात् सहस्रारान्तदेवेष्वेवोत्पद्यन्ते देवास्त्वंत एव ये देवत्वेनोत्पन्नास्तेऽपर्याप्तकावस्थाया
एवं यथा वैक्रियशरीरस्य भेदः यावत् पर्याप्तक-संख्येयवर्षायुष्कगर्भावक्रान्तिकपञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिककर्माशीविषः, नो अपर्याप्तक संख्येयवर्षायुष्क यावत् कर्माशीविषः ।
यदि मनुष्यकर्माशीविषः किं सम्मूर्च्छिममनुष्यकर्माशीविषः ? गर्भावक्रान्तिक मनुष्यकर्माशीविषः ? गौतम ! नो सम्मूर्च्छिममनुष्यकर्माशीविषः गर्भावक्रान्तिकमनुष्यकर्माशीविषः, एवं यथा वैक्रियशरीरं यावत् पर्याप्तसंख्येयवर्षायुष्ककर्मभूमकगर्भावक्रान्तिकमनुष्यकर्माशीविषः, नो अपर्याप्तक यावत् कर्माशीविषः ।
९३. यदि तिर्यक्योनिक कर्मआशीविष है तो क्या एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक कर्मआशीविष है यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यक योनिक कर्मआशीविष है? गौतम! एकेन्द्रियतिर्यक्योनिक कर्मआशीविष नहीं है यावत् चतुरिन्द्रिय तिर्यक्रयोनिक कर्मआशीविष नहीं है। पंचेन्द्रिय तिर्यक्रयोनिक कर्मआशीविष है।
For Private & Personal Use Only
यदि पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक कर्मआशीविष है तो क्या संमूर्च्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक कर्मआशीविष है? अथवा गर्भावक्रान्तिक पंचेन्द्रिय तिर्यक् योनिककर्म आशीविष है?
इस प्रकार जैसी प्रज्ञापना (२१ / ५३) में वैक्रियशरीर के भेद की वक्तव्यता है वैसे ही यहां वक्तव्य है यावत पर्याप्त संख्येय वर्ष आयुष्य 'वाले गर्भावक्रान्तिक पंचेन्द्रिय तिर्यक्ोनिक कर्मआशीविष है, अपर्याप्त संख्ये वर्ष आयुष्य वाले गर्भावक्रान्तिक पंचेन्द्रिय तिर्यक योनिक कर्मआशीविष नहीं है।
९४. यदि मनुष्य कर्मआशीविष है तो क्या संमूर्च्छिम मनुष्य कर्मआशीविष है? अथवा गर्भावक्रान्तिक मनुष्य कर्मआशीविष है? गौतम! संमूर्च्छिम मनुष्य कर्म आशीविष नहीं है, गर्भावक्रान्तिक मनुष्य कर्मआशीविष है। इस प्रकार जैसी प्रज्ञापना (२१/५४) में मनुष्य पंचेन्द्रियवैक्रियशरीर की वक्तव्यता हैं वैसे ही यहां वक्तव्य है यावत् पर्याप्त संख्येय वर्ष आयुष्य वाले कर्मभूमिज गर्भावक्रान्तिक मनुष्य कर्मआशीविष है, अपर्याप्त संख्येय वर्ष आयुष्य वाला कर्मभूमिज गर्भावक्रान्तिक मनुष्य कर्मआशीविष नहीं है।
मनुभूतभावतया कर्माशीविषा इति ।
www.jainelibrary.org