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________________ भगवई ४७१ परिशिष्ट-३ : भाष्य-विषयानुक्रम दिशा-विदिशा १०/१-७ देव की गति शक्ति १०/२३ देव की स्थावर जीव निकायों में उत्पत्ति ११/१२ देव निकाय व त्रायस्त्रिंशक १०/४६-५१ ।। देवों की त्वरित गति व रज्जु ११/१०९-११० दोष प्रतिसेवना व आराधना विराधना १०/१९-२१ दोहद के प्रकार ११/११९-१३० बोधि और दर्शनावरणीय कर्म ९/९-३२ ब्रह्मचर्यवास और चारित्रावरणीय कर्म ९/९-३२ भ भवनपति और व्यंतर देवों का अज्ञान ८/१०६ भारतीय दर्शनों (चार्वाक सांख्य आदि) में सृष्टिवाद ८/४३.८४ भिक्षु प्रतिमा १०/१८ धर्म का ज्ञान और ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम ९/९-३२ नाम कर्म ८/४२९-४३० निग्रंथ प्रवचन ९/१७७ नैरयिक का अज्ञान ८/१०५ प पंखा ९/१६९ पंचमुष्टिक लोच ९/२१४ पन्द्रह कर्मादान ८/२४१-२४२ परमाणु और प्रदेश ८/४७०-४७४ पलाश आदि की अवगाहना, उपपात, लेश्या, स्थिति ११/४२. मनःपर्यवज्ञान में अंतर ८/२००-२०४ मनुष्य शरीर व आधारभूत तत्त्व ९/१७२ महावीर और ऋषभ की अवगाहना ९/४० महावीर की परिषद् ९/१४९ महावीर की वाणी ९/१४९ महोत्सव ९/१५८ मिथ्यात्व का अभिनिवेष व भवभ्रमण ९/२४२-२४४ मिश्रपरिणत ८/१, ४०-४१ मुनि ९/१४९ मेरु पर्वत की अवगाहना व लोक का स्पर्श ११/९९ मोहनीय कर्म ८/४२४ योनि १०/१५ लब्धि ८/१३९-१४६ लब्धियों की प्राप्ति में उपयोग ९/३७ लोक-प्रमाण व संस्थान ११/९० लोकाकाश में जीव प्रदेश ११/११३ पांच व्यवहार ८/३०१ पुद्गल और पुद्गली ८/४९९-५०३ पुद्गल के प्रकार ८/१ पुद्गल परिणाम ८/४६७-४६८ पुद्गल परिवर्त ८/३८४ पुद्गलास्तिकाय ८/१७०-४७४ पुनर्जन्म की व्यवस्था का हेतु ९/१२५-१३२ पूजा ९/१५८ प्रज्ञापनी भाषा, व्यवहार भाषा १०/४० प्रत्यनीकों का वर्गीकरण ८/२९५-३०० प्रत्याख्यान के भंग ८/२३६-२४० प्रदेश परिमाण ८/४७५-४७६ प्रमाणातिक्रान्त ९/२२४ प्रयोगपरिणत ८/१,२-३९ प्रयोग बन्ध ८/३५४ प्रशस्त वनस्पति व देवोत्पत्ति ११/४२.५५ वध और वैर ९/२५१-२५२ वनस्पति ८/२१६-२२१ वनस्पति की अवगाहना ११/५ वनस्पति की कायस्थिति व तरुकाल ११/३२ वनस्पति व आहार ग्रहण की दिशाएं ११/३५ विनय प्रतिपत्तियां ८/३०१ विमोहन १०/२४-३८ विसदृश बन्ध का नियम ८/३४५-३५३ विस्रसा परिणत ८/१,४२ विससा बन्ध ८/३४५-३५३ वीचि अवीचि पथ व सांपरायिकी ऐयापथिकी क्रिया १०/११-१४ वेदना १०/१६-१७ वेदनीय कर्म ८/४२२-४२३ वैक्रिय शरीर के बंधक का अल्प बहुत्व ८/४०४ वैक्रिय शरीर प्रयोग बंध ८/३९७, ३९८ वैरानुबन्धी वैर ९/२५१-२५२ बन्ध का विश्लेषण (विभिन्न परम्पराओं में) ८/३४५-३५३ बहुकरणजुत्तजोइय ९/१४१ बहुनिर्जरा अल्पपाप ८/२४५-२४७ बहुरतवाद ९/२२६-२२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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