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________________ परिशिष्ट-३ : भाष्य-विषयानुक्रम ४७० भगवई औदारिक शरीर प्रयोग बंध की अवस्थाएं ८/३७३-३७५ औदारिक शरीर बन्धक का अल्प बहुत्व ८/३८५ ज्ञान-अज्ञान (अंतराल गति की अपेक्षा) ८/१११-११३ औदारिक शरीर बन्ध का अन्तरकाल ८/३७९-३८१,३८३,३८४ ज्ञान-अज्ञान (आहारक-अनाहारक की अपेक्षा) ८/१८२-१८३ ज्ञान-अज्ञान (इंद्रिय की अपेक्षा) ८/११५-११७ कर्म प्रकृति और परीषह का सम्बन्ध ८/३१५-३२८ ज्ञान-अज्ञान (इन्द्रिय लब्धि की अपेक्षा ८/१६६-१६८ कर्म बन्ध की भूमिकाएं ८/३१५-३२८ ज्ञान-अज्ञान (काय की अपेक्षा) ८/११८-११९ कर्म बन्ध के हेतु ८/४१९-४३३ ज्ञान-अज्ञान (चारित्र लब्धि अलब्धि की अपेक्षा)८/१६१-१६२ कर्म से आशीविष ८/९२ ज्ञान-अज्ञान (तिर्यक पंचेंद्रिय) ८/१२५ कर्मों का अविभाग परिच्छेद ८/४७७-४८४ ज्ञान-अज्ञान (दर्शन लब्धि की अपेक्षा) ८/१५९-१६० कषाय की क्षीणता व अवधिज्ञान ९/६५ ज्ञान-अज्ञान (दान-वीर्यलब्धि की अपेक्षा) ८/१६५ कार्मण शरीर ८/३६६ ज्ञान-अज्ञान (सूक्ष्म-बादर की अपेक्षा) ८/१२०-१२२ कालातिक्रान्त ९/२२४ ज्ञान-अज्ञान, अपर्याप्त अवस्था में ८/१२६ क्रियमाणकृत ९/२२६-२२९ ज्ञान-अज्ञान का अंतरकाल ८/२००-२०४ क्रिया (शरीर और शरीरयुक्त जीव की अपेक्षा) ८/२५८-२६९ ज्ञान-अज्ञान की जघन्य उत्कृष्ट स्थिति ८/२००-२०४ क्रिया का अल्प बहुत्व ८/२२८ ज्ञान-अज्ञान के पर्यवों का अल्प-बहुत्व ८/२०८-२१४ क्रिया काल और निष्ठा काल ८/२७१-२८४ ज्ञान-अज्ञान द्वीन्द्रिय में ८/१२८ क्रिया की सापेक्षता ८/२५६-२५७ ज्ञान-अज्ञान नैरयिक में ८/१२७ क्रियावाद ८/४४९.४५० ज्ञान-अज्ञान मनुष्य में ८/१२९ क्षपक श्रेणी और कर्म क्षय की प्रक्रिया ९/४६ ज्ञान का प्रतिपक्ष ८/१५३ क्षपक श्रेणी के आरोहण की प्रक्रिया ९/४६ ज्ञान की विषय (ज्ञेय) वस्तु का प्रतिपादन ८/१८४-१८८ क्षुल्लक भव ८/३७६-३७८ ज्ञान के प्रकार ८/९७-१०३ ग ज्ञान छद्मस्थ-वीतराग में ८/१८० गति उत्पत्ति के परोक्ष हेतु ९/१२५-१३२ ज्ञान पर्यवों का अल्प-बहुत्व ८/२०८-२१४ गति उत्पत्ति के प्रत्यक्ष हेतु ९,१२५-१३२ ज्ञानवाद ८/४४९-४५० गति के आधार पर हिंसा-अहिंसा ८/२८५-२९४ ज्ञानाराधना ८/४५१-४६६ गति में उत्पत्ति के हेतु ९/१२५-१३२ ज्ञानावरणीय कर्म ४१९.४३३ गोत्र कर्म ८/४३१-४३२ ज्ञानी-अज्ञानी (ज्ञान लब्धि की अपेक्षा) ८/१५० ज्ञानी-अज्ञानी का अल्प बहुत्व ८/२०८-२१४ चतुर्याम धर्म और पंच महाव्रत धर्म ९/१३३-१३५ ज्ञानी और अज्ञानी ८/१०४ चरम-अचरम ८/२२४-२२६ ज्ञानी का अल्प-बहुत्व ८/२०५-२०७ चारित्र अवस्था और कषायोदय ९/४३ ज्ञानी की कालावधि ८/१९२-१९९ चारित्राराधना ८/४५१-४६६ झल्लरी, मृदंग ११/९० छद्मस्थ और केवली ८/९६ तीर्थंकर की वाणी ९/१४९ जमाली जीवन चरित्र ९/२२६-२२९ तेजस और कार्मण शरीर का प्रमाण ८/४३९-४४४ जम्बूद्वीप आदि में चन्द्रमा आदि की संख्या ९/३.५ जिह्वा की अलब्धि वाले जीव ८/१७१ दर्शनाराधना ८/४५१-४६६ जीव की उत्पत्ति, उद्वर्तना व गत्यंतर में प्रवेश ९/७९-८६ दर्शनावरणीय कर्म ८/४१९-४३३ जीव के प्रदेश और कर्म पुद्गलों का संबंध ८/४७७-४८४ दान के तीन रूप ८/२४५-२४७ जीव प्रदेश ८/२२२-२२३ दिशाएं व द्रव्यों का अस्तित्व १०/१-७ जीवों के रत्नप्रभा आदि के भंग ९/८८-९०,९१,९२,९३,९४, | दिशा चक्रवाल तपःकर्म ११/५९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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