________________
परिशिष्ट-३
भाष्य-विषयानुक्रम
आलीनकरण बन्ध ८/३५६-३६२ अक्षीण प्रतिभोजी ८/२४१-२४२
आलोचनाभिमुख का आराधक पद ८/२५१-२५५ अज्ञान ८/१८९-१९१
आशीविष के प्रकार ८/८६-९१ अध्यात्म के सूत्र ९/९-३२
आहारक शरीर प्रयोग बंध ८/४०८-४११ अनगारिता और धर्मान्तरायिक कर्म ९/९-३२ अनुत्तर विमान देव ८/४०३
ईर्यापथिक बन्ध ८/३०२-३१४ अन्तराय कर्म ८/४३३ अन्तर्वीप ९/७
उत्पत्ति (द्रव्यार्थिक व पर्यायर्थिक नय से) ९/१२१ अन्ययूथिक संवाद अदत्त की अपेक्षा ८/२७१-२८४
उत्पल के एक पत्ते में जीव ११/१ अन्यलिंगी एक समय में सिद्ध ९/५१
उत्पल जीव उच्छ्वास निश्वास ११/१८ अप्रशस्त वनस्पति व देवों की अनुत्पत्ति ११/४२-५५ उत्पल जीव और कर्म बन्धन ११/६-११ अभिनिष्क्रमण व केशकर्तन ९/१८८
उत्पल जीव और काय संवेध ११/३० अलेश्य ८/१७८
उत्पल व आहारग्रहण ११/३४ अवधिज्ञान और लेश्या ९/५६
उत्पल जीव व कर्म बन्धक व अबंधक भंग ११/६-११ अवेदक ८/१८१
उत्पल जीव व स्थिति ११/३०, ३४ अश्रुत्वा पुरुष के आध्यात्मिक विकास के साधन ९/९-३३,३४ | उत्पल पत्र के जीवों का परिमाण ११-३-४ अश्रुत्वा पुरुष के लिए स्त्री वेद का निषेध ९/४२
उत्पल पत्र के जीवों की आगति ११/२ अश्रुत्वा पुरुष के अवधिज्ञान में वेद अवेद ९/६४
उत्पल पत्र में जीवों की उत्पत्ति ११/३-४ अश्रुत्वा श्रुत्वा पुरुष में ज्ञान की भिन्नता ९/५७
उपनिमंत्रित पिण्डादि परिभोग विधि ८/२४८.२५० अश्रुत्वा श्रुत्वा पुरुष में ज्ञान दर्शन की भिन्नता ९/५५ अश्रुत्वा पुरुष में द्रव्य लेश्या भाव लेश्या ९/५६
ऋषभदत्त और परम्परा ९/१३७ अष्टमंगल ९/२०४
ऋषि के वध में अनंत जीवों का वध ९/२४९. २५० असोच्चा और सोच्चा ९/९-३२ आ
एक एक आकाश प्रदेश में जीवों के प्रदेश ११/११३ आजीवक उपासकों की विशेषताएं ८/२४१-२४२
एक के वध में अनेक जीवों का वध ९/२४६-२४८ आजीवक संप्रदाय ८/२३०-२३५
एक समय में योग ९/३६ आठ कर्मों में परस्पर नियमा, भजना ८/४८५-४९८ आन्तरिक शुद्धि के सूत्र ९/९-३२
ऐपिथिकी क्रिया और संवृत अनगार १०/११-१४ आभिनिबोधिक ज्ञान और श्रुतज्ञान ९/९-३२
औ आयुष्य ८/४२५-४२८
औदारिक आदि शरीर बंधक और अबंधक ८/४३९-४४६ आराधक विराधक ८/२५१-२५५
औदारिक आदि शरीर बंध का अल्प बहुत्व ८/४४७ आराधना ८/४५१-४६६
औदारिक-वैक्रिय शरीर प्रयोग बन्ध की स्थिति एवं अन्तरकाल आलापन बंध के साधन ८/३५५
८/४१५
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International