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भगवई
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श. ११ : उ. ११ : सू. १५९,१६०
यावत् आसप्तमात् कुलवंशात् प्रकामं दातुं. प्रकामं भोक्तुं, प्रकामं परिभाजयितुम्।
मालाकारीओ, अट्ठ पेसणकारीओ, अण्णं वा सुबहुं हिरण्णं वा सुवण्णं वा कंसं वा दूसं वा विउलधण-कणगरयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिलप्पवालरत्तरयण-संतसार-सावएज्जं, अलाहि जाव आसत्त-माओ कुल-वंसाओ पकाम दाउं, पकामं भोत्तुं, पकामं परिभाएउं॥
चामर, आठ चामरधरिणी दासियां, आठ तालवृंत (वीजन), आठ तालवृतधारिणी दासियां, आठ करोटिका, आठ करोटिकाधारिणी दासियां, आठ क्षीरधात्रियां, आठ मजनधात्रियां, आठ मंडनधात्रियां, आठ खेलनकधात्रियां, आठ अंक-धात्रियां, आठ अंगमर्दिका, आठ उन्मर्दिका, आठ स्नान कराने वाली, आठ मंडन (प्रवर पोशाक पहनाने वाली) करने वाली, आठ चन्दन आदि घिसने वाली, आठ चूर्णक (तांबूल, गंधद्रव्य आदि) पीसने वाली, आठ क्रीड़ा कराने वाली, आठ परिहास करने वाली, आठ आसन के समीप रहने वाली, आठ नाटक करने वाली, आठ कौटुम्बिक आज्ञाकारिणी दासियां, आठ रसोई बनाने वाली, आठ भंडार की रक्षा करने वाली, आठ बालक का लालन-पालन करने वाली दासियां, आठ पुष्पधारिणी (पुष्प की रक्षा करने वाली), आठ पानी भरने वाली, आठ बलि करने वाली, आठ शय्या करने वाली, आठ आभ्यंतर प्रातिहारियां, आठ बाह्य प्रातिहारियां, आठ माला बनाने वाली, आठ आटा आदि पीसने वाली, इसके अतिरिक्त बहुत सारा हिरण्य, सुवर्ण, कांस्य, दृष्य (वस्त्र), विपुल वैभव, कनक, रत्न, मणि, मौक्तिक, शंख, मनःसिल, प्रवाल, लालरत्न और श्रेष्ठ सार-इन वैभवशाली द्रव्यों का प्रीतिदान किया, जो सातवीं पीढ़ी तक प्रकाम देने के लिए, प्रकाम भोगने और बांटने के लिए समर्थ
था।
१६०. तए णं से महब्बले कुमारे ततः सः महाबलः कुमारः एकैकस्यै भार्यायै १६०. महाबल कुमार ने प्रत्येक पत्नी को एगमेगाए भज्जाए एगमेगं हिरण्ण-कोडिं एकैकां हिरण्यकोटिं ददाति, एकैकां एक-एक कोटि हिरण्य दिया. एक-एक दलयइ, एगमेगं सुवण्णकोडिं दलयइ, सुवर्णकोटिं ददाति, एकैकां मुकुट मुकुटप्रवरं कोटि सुवर्ण दिया, एक-एक मुकुटों में प्रवर एगमेगं मउडं मउडप्पवरं दलयइ, एवं तं ददाति, एवं तत् चैव सर्वं यावत् एकैकां मुकुट दिया, इसी प्रकार संपूर्ण वर्णन चेव सव्वं जाव एगमेगं पेसणकारिं प्रेषणकारिकां ददाति, अन्यत् वा सुबहु पूर्ववत यावत् एक-एक आटा आदि पीसने दलयइ, अण्णं वा सुबहुं हिरण्णं वा हिरण्यं वा सुवर्ण वा कांस्यं वा दूष्यं वा वाली दासी दी। इसके अतिरिक्त बहुत सुवण्णं वा कंसं वा दूसं वा विउलधण- विपुलधन - कनक - रत्न - मणि-मौक्तिक- सारा हिरण्य, सुवर्ण. कांस्य. दृष्य (वस्त्र) कणग-रयण - मणि • मोत्तिय - संख- शंख-शिला - प्रवाल - रक्तरत्न - सत्सार- विपुल वैभव. कनक, रत्न, मणि, मौक्तिक, सिल-प्पवाल - रत्तरयण - संतसार- स्वापतेयम्, अलं यावत् आसप्तमात् शंख, मनःशिल, प्रवाल, लालरत्न और सावएज्ज अलाहि जाव आसत्तमाओ कुलवंशात् प्रकामं दातुं, प्रकामं भोक्तुं, श्रेष्ठसार-इन वैभवशाली द्रव्यों का कुल-वंसाओ पकामं दाउं, पकामं भोत्तुं, प्रकामं परिभाजयितुम्।
प्रीतिदान किया, जो सातवीं पीढ़ी तक
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