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________________ श. ११ : उ. ११ : सू. १५९ सोवणिए थाले अट्ठ सुवण्णरुप्पामए थाले, अट्ठ रुप्पामए थाले, अट्ठ सोवण्णियाओ पत्तीओ ३. अट्ठ सोवण्णियाई थासगाई ३, अट्ठ सोवण्णियाई मल्लगाई ३, अट्ठ सोवण्णियाओ तलियाओ ३, अट्ठ सोवण्णियाओ कविचियाओ ३, अट्ठ सोवण्णिए अवएडए ३, अट्ठ सोवण्णियाओ अवयक्काओ ३, अट्ठ सोवण्णिए पायपीढए ३, अट्ठ सोवण्णियाओ भिसियाओ ३, अट्ठ सोवण्णियाओ करोडियाओ ३, अट्ठ सोवण्णिए पल्लंके ३, अट्ठ सोवण्णियाओ पडिसेज्जाओ ३, अट्ठ हंसा-सणाई, अट्ट कोंचासणाई, एवं गरुलासणाई, उन्नयासणाई, पणयासणाई, दीहासणाई, भद्दास - णाई, पक्खासणाई, मगरासणाई, अट्ठ पउमासणाई, अट्ठ दिसा - सोवत्थिया - सणाई, अट्ठ तेल्ल - समुग्गे, अट्ठ कोट्ठसमुग्गे, एवं पत्त- चोयग - तगर - एल-हरियाल - हिंगुलय-मणो सिलअंजण - समुग्गे, अट्ठ सरिसव - समुग्गे, अट्ठ खुज्जाओ जहा ओववाइए जाव अट्ट पारिसीओ अट्ठ छत्ते, अट्ठ छत्तधारीओ चेडीओ, अट्ठ चामराओ, अट्ठ चामरधारीओ चेडीओ अट्ठ तालियंते, अट्ठ तालियंटधारीओ चेडीओ, अट्ठ करोडियाओ, अट्ठ करोडिया धारीओ चेडीओ, अट्ठ खीरधाईओ, अट्ठ मज्जणधाईओ, अट्ट मंडणधाईओ अट्ट खेल्लावण-धाईओ, अट्ट अंकधाईओ, अट्ठ अंगमद्दियाओ, अ उम्महियाओ अट्ठ ण्हावियाओ, अट्ठ पसा-हियाओ, अट्ठ वण्णगपेसीओ अट्ठ चुगपेसीओ अट्ठ कीडागारीओ, अट्ठ दवकारीओ, अट्ठ उवत्था - णियाओ, अट्ठ नाडइज्जाओ, अट्ठ कोडुंबणीओ, अट्ट महाणसिणीओ, अट्ठ भंडागारिणीओ, अब्भा - धारिणीओ, अट्ठपुप्फघरणीओ, अट्ठ पाणिघरणीओ, अट्ठ बलिका- रीओ, अट्ठ सेज्जाकारीओ, अट्ठ अब्भितरियाओ पडिहारीओ अट्ठ बाहिरियाओ पडिहारीओ, अट्ठ अट्ठ Jain Education International ४३६ रूप्यकमयान् स्थालान्, अष्ट सुवर्णरूप्य कमयान् स्थालान्, अष्टा सौवर्णिकाः पात्रीः ३, अष्ट सौवर्णिकानि 'थासगाई' ३ अष्ट सौवर्णिकानि सौवर्णिका: 'मल्ल गाई' ३, अष्ट 'तलियाओ' ३. अष्ट सौवर्णिका: 'कविचियाओ' ३, अष्ट सौवर्णिकान् 'अवएडए' ३, अष्ट सौवर्णिकाः 'अवयक्काओ', ३, अष्ट सौवर्णिकान् पादपीठान् ३, अष्ट सौवर्णिकाः 'भिसियाओ' ३. अष्ट सौवर्णिकाः 'करोडियाओ' ३, अष्ट सौवर्णिकान् पर्यकान् ३, अष्ट सौवर्णिकाः प्रतिशयाः ३, अष्ट हंसासनानि, अष्टानि क्रौंचासनानि, एवं गरुडासनानि, उन्नतासनानि, प्रणतासनानि दीर्घासनानि, भद्रासनानि, पक्षासनानि, मकरासनानि, अष्ट, पद्मासनानि, अष्टानि दिशासौवस्तिकासनानि, अष्ट तैलसमुद्वान्, अष्ट कोष्ठसमुद्गान् एवं पत्र'चोयग' - तगर - एला - हरिताल - हिंगुलकमनःशिला - अंजन-समुद्वान्, अष्ट सर्षपसमुद्गान्, अष्ट 'खुज्जाओ' यथा औपपातिके यावत् अष्ट पारसीः, अष्टानि छत्राणि, अष्ट छत्रधारी: चेटी, अष्ट चामराणि, अष्ट चामरधारिकाः चेटीः, अष्ट तालवृन्तानि, अष्ट तालवृन्तधारिकाः चेटीः, अष्ट 'करोडियाओ', अष्ट 'करोडियाधारीः ' चेटीः, अष्ट क्षीरधात्री, अष्ट मज्जनधात्रीः, अष्ट मण्डनधात्री, अष्ट खेलनकधात्रीः, अष्ट अंकधात्रीः, अष्ट अंगमर्दिकाः, अष्ट उन्मर्दिकाः अष्ट स्नापिकाः, अष्ट प्रसाधिकाः, अष्ट वर्णकपेषिकाः, अष्ट चूर्णकपेषिकाः, अष्ट क्रीडाकारिकाः, अष्ट 'दवकारीओ', अष्ट उपस्थानिकाः, अष्ट नाटकीयाः, अष्ट कौटुम्बिनीः अष्ट महानसिनीः, अष्ट भाण्डागारिणीः, अष्ट अर्भकधारिणीः, अष्ट पुष्पगृहिणीः, अष्ट पानीयगृहिणीः, अष्ट बलिकारिकाः, अष्ट शय्याकारिकाः, अष्ट अभ्यन्तरिकाः प्रतिहारिकाः, अष्ट बाहिरिकाः, प्रतिहारिकाः, अष्ट मालाकारिकाः, अष्ट प्रेषणकारिकाः, अन्यत् वा सुबहु हिरण्यं वा सुवर्णं वा, कांस्यं वा दूष्यं वा विपुलधनकनकरत्नमणि- मौक्तिक शंख-शिलाप्रवाल- रक्तरत्न-सत्सारस्वापतेयम्, अलं For Private & Personal Use Only भगवई अवलंबक दीपक, आठ स्वर्ण के उत्कंचक (ऊर्ध्व दंड युक्त) दीपक, इसी प्रकार रजत और स्वर्ण रजत के उत्कंचक दीपक, आठ स्वर्ण के पंजर (अभ्रपटल युक्त) दीपक, इसी प्रकार रजत और स्वर्ण रजत के आठ पंजर दीपक, आठ स्वर्ण की थाली, आठ रजत की थाली, आठ स्वर्ण रजत की थाली, आठ स्वर्ण परात, आठ रजत परात, आठ स्वर्ण रजत परात आठ स्वर्ण स्थासक, आठ रजत स्थासक, आठ स्वर्णरजत स्थासक, आठ स्वर्ण मल्लक (कटोरे); आठ रजत मल्लक, आठ स्वर्णरजत मल्लक, आठ स्वर्ण तलिका (पात्रविशेष) आठ रजत तलिका, आठ स्वर्णरजत तलिका, आठ स्वर्ण कलाचिका, आठ रजत कलाचिका आठ स्वर्ण रजत कलाचिका, आठ स्वर्ण तापिकाहस्तक ( संडासी), आठ रजत तापिकाहस्तक, आठ स्वर्ण रजत तापिकाहस्तक, आठ स्वर्ण तवे, आठ रजत तवे, आठ स्वर्णरजत तवे, आठ स्वर्ण पादपीठ, आठ रजत पादपीठ, आठ स्वर्ण रजत पादपीठ, आठ स्वर्ण भीषिका (आसन-विशेष), आठ रजत भीषिका, आठ स्वर्ण-रजत भीषिका, आठ स्वर्ण करोटिका (लोटा) आठ रजत करोटिका, आठ स्वर्ण, रजत करोटिका, आठ स्वर्ण पर्यंक, आठ रजत पर्यक, आठ स्वर्ण, रजत पर्यंक, आठ स्वर्ण प्रतिशय्या, आठ रजत प्रतिशय्या, आठ स्वर्ण रजत प्रतिशय्या, आठ स्वर्ण, हंसासन, आठ रजत हंसासन, आठ स्वर्ण रजत हंसासन, आठ स्वर्ण क्रौंचासन, आठ रजत क्रौंचासन, आठ स्वर्ण रजत क्रौंचासन, इसी प्रकार आठ गरुड़ासन, उन्नतआसन, प्रणत- आसन, दीर्घ आसन, भद्रासन, पक्षासन. मकरासन, आठ पद्मासन, आठ दिक् स्वस्तिक आसन, आठ तेल के डिब्बे, आठ सुगंधित चूर्ण के डिब्बे, इसी प्रकार आठ नागर, धूमवास, तगर, इलायची, हरताल हिंगुर, मनःशिल और अंजन के डिब्बे, आठ सर्षप के डिब्बे, आठ कुब्जा दासियां औपपातिक की भांति वक्तव्यता यावत् आठ पारसी दासियां, आठ छत्र, आठ छत्रधारिणी दासियां, आठ www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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