________________
भगवई
४३५
श. ११ : उ. ११ : सू. १५८,१५९
हुई, सदृश राजकुलों से आई हुई आठ प्रवर राजकन्याओं के साथ महाबल कुमार का पाणिग्रहण करवाया।
१५९. तए णं तस्स महाबलस्स कुमारस्स ततः तस्य महाबलस्य कुमारस्य १५९. महाबल कुमार के माता पिता ने इस
अम्मापियरो अयमेयारुवं पीइदाणं अम्बापितरौ इदमेतद्रूपं प्रीतिदानं दत्तः, आकार वाला प्रीतिदान किया, जैसे-आठ दलयंति, तं जहा-अट्ठ हिरणकोडीओ, तद्यथा-अष्ट हिरण्यकोटीः, अष्ट सुवर्ण- करोड़ हिरण्य, आठ करोड़ स्वर्ण, मुकुटों में अट्ठ सुवण्ण-कोडीओ, अट्ठ मउडे कोटीः, अष्ट मुकुटान् मुकुटप्रवरान्, प्रवर आठ मुकुट, कुंडल युगलों में प्रवर मउडप्पवरे, अट्ठ कुंडलजोए कुंडल- अष्टकुण्डल जोए' कुण्डलजोयप्रवराणि अष्ट आठ कुंडल-युगल, हारों में प्रवर आठ हार, जोयप्पवरे अट्ट हारे हारप्पवरे, अट्ठ । हारान् हारप्रवरान् अष्ट अर्द्धहारान् अर्द्धहारों में प्रवर आठ अर्द्धहार, अद्धहारे अद्धहारप्पवरे, अट्ट एगा. अर्द्धहारप्रवरान्, अष्ट एकावलीः एकावली- एकावलियों में प्रवर आठ एकावली, इसी वलीओ एगावलिप्पवराओ, एवं मुत्ता- प्रवराः, एवं मुक्तावलीः, एवं कनकावलीः, प्रकार आठ मुक्तावली. इसी प्रकार आठ वलीओ, एवं कणगावलीओ, एवं एवं रत्नावलीः, अष्ट कटकयुगानि कटक- कनकावली, इसी प्रकार आठ रत्नावली, रयणावलीओ, अट्ठ कडगजोए कडग- युगप्रवराणि एवं ‘तुडिय' युगानि अष्ट कड़ों की जोड़ी में प्रवर आठ कड़ों की जोड़ी, जोयप्पवरे, एवं तुडियजोए, अट्ठ क्षौमयुगलानि क्षौमयुगलप्रवराणि, एवं इसी प्रकार आठ बाजूबंध की जोड़ी, क्षौमखोमजुयलाई खोमजुयलप्प-वराई, एवं 'वडग' युगलानि, एवं पट्ट- युगलानि, एवं युगल में आठ प्रवर क्षौम-युगल वस्त्र, आठ वडगजुयलाई, एवं पट्टजुयलाइं, एवं 'दुगुल्ल' युगलानि, अष्ट श्रियः, अष्ट हियः टसर-युगल (एक तरह का कड़ा, मोटा दुगुल्लजुयलाई, अट्ठ सिरीओ, अट्ठ। एवं धियः, कीर्तीः, बुद्धीः, लक्ष्मीः, अष्ट रेशम या उसका बना कपड़ा) इसी प्रकार हिरीओ एवं धिइओ, कित्तीओ, नन्दानि, अष्ट भद्रानि, अष्ट तलान् आठ पट्ट-युगल, इस प्रकार आठ वृक्ष छाल बुद्धीओ, लच्छीओ, अट्ठ नंदाई, अट्ठ तलप्रवरान् सर्वरत्नमयान् निज- से निष्पन्न वस्त्र-युगल, आठ श्री, आठ ही, भदाई, अट्ठ तले तलप्पवरे कवरभवनकेतून् अष्ट ध्वजान् ध्वजप्रवरान, इस प्रकार आठ धृति, कीर्ति, बुद्धि, सव्वरयणामए, नियगवरभवणकेऊ अट्ठ । अष्ट व्रजान् व्रजप्रवरान् दशगोसाहसिकेण लक्ष्मी, रत्नमय आठ नंद-मंगल वस्तुएं, झए झयप्पवरे, अट्ठ वए बयप्पवरे व्रजेन, अष्ट नाटकानि नाटकप्रवराणि आठ भद्र-मूढ आसन और ताल में प्रवर दसगोसाहस्सिएणं वएणं, अट्ठ नाडगाइं द्वात्रिंशद्बद्धेन नाटकेन, अष्ट अश्वान् आठ तालवृक्ष, निज घर के लिए केतु रूप नाडगप्पवराई बत्तीस-इबद्धेणं नाडएणं, अश्वप्रवरान् सर्वरत्नमयान् श्रीगृह- ध्वजों में प्रवर आठ ध्वज, दस दस हजार अट्ठ आसे आसप्पवरे सव्वरयणामए प्रतिरूपकान, अष्ट हस्तिनः हस्तिप्रवरान् । गायों वाले गोकुलों में प्रवर आठ गोकुल, सिरिघर- पडिरूवए, अट्ट हत्थी सर्वरत्नमयान् श्रीगृहप्रतिरूपकान्, अष्टानि बत्तीस व्यक्तियों द्वारा किए जाने वाले हत्थिप्पवरे सव्वरयणामए सिरिघर- यानानि यानप्रवराणि, अष्ट युगानि नृत्य में प्रवर आठ नृत्य, अश्वों में प्रवर पडिरूवए, अट्ठ जाणाई जाणप्पवराई, युगप्रवराणि, एवं शिबिकाः, एवं स्यन्द- श्रीगृह रूप आठ रत्नमय अश्व, हस्तियों में अट्ठ जुगाई जुगप्पवराई, एवं सिबि- मानिकाः, एवं गिल्लीओ, 'थिल्लीओ', प्रवर श्रीगृह रूप आट रत्नमय हस्ती, यानों याओ, एवं संदमाणीओ, एवं गिल्लीओ। अष्ट विकट-यानानि विकटयानप्रवराणि, में प्रवर आठ यान, युग्यों में प्रवर आठ थिल्लीओ, अट्ठ वियडजाणाई वियड- अष्ट रथान् पारियानिकान्, अष्ट रथान् युग्य-वाहन, इस प्रकार शिविका, इस जाणप्पवराई, अट्ठ रहे पारिजाणिए, सांग्रामिकान्, अष्ट अश्वान् अश्वप्रवरान्, प्रकार स्यंदमानिका, इसी प्रकार डोली, दो अट्ठ रहे संगामिए, अट्ठ आसे अष्ट हस्तिनः हस्तिप्रवरान्, अष्ट ग्रामान् खच्चरों वाली बग्घी, विकट यान में आठ आसप्पवरे, अठ्ठ हत्थी हत्थिप्पवरे, अट्ठ ग्रामप्रवरान् दशकुलसाहस्रिकेण ग्रामेण, प्रवर विकट (खुले) यान, आठ गामे गामप्पवरे दसकुलसाहस्सिएणं अष्ट दासान् दासप्रवरान्, एवं दासीः, एवं पारियानिक रथ. आठ सांग्रामिक रथ, गामेणं, अट्ठ दासे दासप्पवरे, एवं किंकरान्, एवं कंचुकीयान्, एवं वर्षधरान्, अश्वों में प्रवर आठ अश्व, हस्तियों में प्रवर दासीओ, एवं किंकरे, एवं कंचुइज्जे, एवं एवं महत्तरकान् अष्ट सौवर्णिकान् आठ हस्ति, दस हजार कुलों (परिवारों) से वरिसधरे, एवं महत्तरए, अट्ट सोवण्णिए अवलम्बनदीपान्, अष्ट रूप्यकमयान् युक्त एक ग्राम होता है ऐसे ग्रामों में प्रवर
ओलंबणदीवे, अट्ठ रुप्पामए ओलबंण- अवलम्बनदीपान्, अष्ट सुवर्ण-रूप्यकमयान् आठ ग्राम, दासों में प्रवर आठ दास, इसी दीवे, अट्ट सोवण्णरुप्पामए ओलंबण- अवलम्बनदीपान्, अष्ट सौवर्णिकान् प्रकार दासी, किंकर, कंचुकी-पुरुष, दीवे, अट्ठ सोवण्णिए उक्कंबण-दीवे, अवकम्बनदीपान एवं चैव त्रीन् अपि, अष्ट वर्षधर (अंतःपुर रक्षक) और महत्तरक, एवं चेव तिण्णि वि, अट्ट सोवण्णिए सौवर्णिकान् पञ्जरदीपान् एवं चैव त्रीन् आठ सोने के अवलंबक दीपक, आठ चांदी पंजरदीवे, एवं चेव तिण्णि वि, अट्ठ अपि, अष्ट सौवर्णिकान स्थालान्, अष्ट के अवलंबक दीपक, आठ स्वर्ण-रजत के
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org